केदारघाटी में फूलदेई त्योहार आज से एक सप्ताह तक धूमधाम से मनाया जाता – क्या है इसके पीछे की मान्यताएं जानिएं

Team PahadRaftar

लक्ष्मण नेगी

ऊखीमठ :  केदारघाटी के सभी इलाकों में उत्तराखण्ड का लोक पर्व फूलदेई त्योहार उत्साह व उमंग से शुरू हो गया है। चैत्र मास की संक्रांति के दिन से नौनिहालों द्वारा ब्रह्म बेला पर घरों की चौखटों में फ्यूंली बुरांस सहित अनेक प्रजाति के पुष्प बिखेर कर बसन्त ऋतु आगमन का सन्देश दिया गया। इस दौरान नौनिहालों द्वारा पौराणिक पारम्परिक लोक गीतों के साथ घरों की चौखटों में बिखेरे तथा ग्रामीणों द्वारा नौनिहालों को गुड़, दाल चावल वितरित कर फुलारी नौनिहालों का उत्साहवर्धक किया गया। फूलदेई त्योहार कुछ इलाकों में फुलारी महोत्सव के रूप में भी मनाया जाने लगा है तथा विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा घोघा प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जानी लगी है। चैत्र मास की आठ गते तक चलने वाले फूलदेई त्योहार का समापन घोघा विसर्जित व सामूहिक भोज के साथ किया जाता है।

लोक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव अपनी शीतकालीन तपस्या में लीन हुए तो कई बर्ष बीत गए और ऋतुएं परिवर्तित होती रही लेकिन भगवान शिव जी की तंद्रा नहीं टूटी जिस कारण माँ पार्वती और नंदी आदि शिव गण कैलाश में नीरसता का अनुभव करने लगे, तब माता पार्वती जी ने भोलेनाथ जी की तंद्रा तोड़ने की एक अनोखी तरकीब निकाली। जैसे ही कैलाश में फ्योंली के पीले फूल खिलने लगे माता पार्वती ने सभी शिव गणों को प्योंली के फूलों से निर्मित पीताम्बरी जामा पहनाकर सबको छोटे-छोटे बच्चों का स्वरुप दिया और फिर सभी शिव गणों से कहा कि वे लोग देवताओं की पुष्प वाटिकाओं से ऐसे सुगंधित पुष्प चुन लायें जिनकी खुशबू पूरे कैलाश में फैल जाए। माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए सबने वैसा ही किया और सबसे पहले पुष्प भगवान शिव के तंद्रालीन स्वरूप को अर्पित किये जिसे “फूलदेई” कहा गया। साथ में सभी शिव गण एक सुर में गाने लगे “फूलदेई क्षमा देई” ताकि महादेव जी तपस्या में बाधा डालने के लिए उन्हें क्षमा कर दें। बाल स्वरूप शिवगणों के समूह स्वर की तीव्रता से भगवान शिव की तंद्रा टूट पड़ी परन्तु बच्चों को देखकर उन्हें क्रोध नहीं आया और वे भी प्रसन्न होकर फूलों की क्रीड़ा में शामिल हो गए और कैलाश में उल्लास का वातावरण छा गया।

मान्यता है कि उस दिन मीन संक्रांति का दिन था तभी से उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में “फूलदेई” को लोक-पर्व के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा, जिसे बच्चों का त्यौहार भी कहा जाता है। केदार घाटी के प्रसिद्ध रंगकर्मी लखपत राणा बताते हैं कि केदार घाटी में फूलदेई त्योहार मनाने की परम्परा युगों पूर्व की है तथा वर्तमान समय में शिक्षा निदेशालय के निर्देशानुसार सभी विद्यालयों में फूलदेई त्योहार हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है।

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