ऊखीमठ : नैसर्गिक सौंदर्य के बीच स्थित विसुणीताल के जल का उपयोग से चर्म रोग से मिलता छुटकारा! पर्यटन की हैं अपार संभावनाएं

Team PahadRaftar

लक्ष्मण सिंह नेगी

ऊखीमठ :  मदमहेश्वर घाटी के बुरूवा गांव से लगभग 20 किमी की दूरी पर सोन पर्वत की तलहटी में सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य विराजमान विसुणीताल का निर्माण लक्ष्मी के आग्रह पर स्वयं विष्णु भगवान ने किया था। भगवान विष्णु द्वारा ताल का निर्माण करने से यह ताल विसुणीताल के नाम से जाना जाता है। बरसात व शरत ऋतु में विसुणीताल ताल के चारों तरफ अनेक प्रजाति के पुष्प खिले रहते हैं।

विसुणीताल का जल प्रयोग करने से चर्मरोग की समस्या से छुटकारा पाया जाता है। विसुणीताल के निकट भेड़ पालक लम्बा प्रवास करते हैं। विसुणीताल के निकट भेड़ पालकों के अराध्य देव क्षेत्रपाल का मन्दिर है। क्षेत्रपाल के मन्दिर में भेड़ पालकों द्वारा नित्य पूजा – अर्चना की जाती है। भेड़ पालकों के दाती त्यौहार के पावन अवसर पर क्षेत्रपाल मन्दिर में विशेष पूजा – अर्चना का विधान है। क्षेत्रपाल मन्दिर के कपाट भी अन्य तीर्थ स्थलों की तर्ज पर खोलने व बन्द होने की परम्परा युगों पूर्व की है। विसुणीताल से लगभग 14 किमी की दूरी पर देवताओं का थौला पावन स्थान है जहाँ पर अनेक देवी – देवताओं के अस्त्र – शस्त्र आज भी पाषाण रुप में पूजे जाते है। विसुणीताल से देवताओं के थौला के भू-भाग में ब्रह्म कमल के लम्बे चौड़े बगवान हैं। यदि पर्यटन विभाग की पहल पर केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग विसुणीताल को पर्यटन मानचित्र पर अंकित करनी की पहल करता है तो मदमहेश्वर घाटी के बुरूवा व गडगू गांव को पर्यटन गांव का दर्जा मिलने के साथ दोनों गांवों में होम स्टे योजना को बढ़ावा मिलने से दर्जनों युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु व लक्ष्मी हिमालयी क्षेत्र में घूम रहे थे तो सोन पर्वत की तलहटी पहुंचने पर लक्ष्मी को बहुत प्यास लगी तो लक्ष्मी बहुत व्याकुल हुई।

उन्होंने प्यास लगने की बात विष्णु भगवान से कही, तो भगवान विष्णु ने योगमाया से तालाब का निर्माण किया तथा तालाब का निर्माण होने पर लक्ष्मी ने अपने प्यास बुझाई। विष्णु भगवान द्वारा तालाब का निर्माण करने से यह तालाब विसुणीताल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। विसुणीताल के चारों तरफ असंख्य जडी – बूटियों का भण्डार है इसलिए विसुणीताल का जल ग्रहण करने से चर्म रोग की सभी बीमारियां दूर हो जाती है। विसुणीताल के चारों तरफ फैले भू-भाग को प्रकृति ने नव नवेली दुल्हन की तरह सजाया व संवारा है इसलिए विसुणीताल पहुंचने पर प्रकृति प्रेमी को परम आनन्द की अनुभूति होती है। विसुणीताल – देवताओं के थौला तक फैले भू-भाग को प्रकृति ने देवताओं के फूलों के बगवान की तरह सजाया है। इस भू-भाग में फैले धरती की पावन धरा पर कदम रखने का साहस नहीं रहता है क्योंकि मखमली घास का स्पर्श परम आनन्द की अनुभूति करवाता है। विसुणीताल के चारों तरफ बरसात व शरत ऋतु में अनेक प्रजाति के पुष्पों के खिलने से विसुणीताल के प्राकृतिक सौन्दर्य पर चार चांद लग जाते है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच पूर्व अध्यक्ष मदन भट्ट ने बताया कि विसुणीताल के दर्शन सौभाग्य से प्राप्त होते है क्योंकि विसुणीताल का भूभाग स्वर्ग के समान है। जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने बताया कि बुरूवा – विसुणीताल, गडगू – टिंगरी – विसुणीताल पैदल ट्रैकों को विकसित करने की पहल की जा रही है।

उन्होंने कहा कि यदि पर्यटन विभाग की पहल पर केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग विसुणीताल को विकसित करने की पहल करता है तो पर्यटन मानचित्र पर विसुणीताल को विशिष्ट पहचान मिल सकती है। प्रधान बुरूवा सरोज भट्ट ने बताया कि थौली से सोन पर्वत के आंचल में फैले सुरम्य मखमली बुग्यालों का स्पर्श करने से मन प्रफुल्लित हो जाता है। भेड़ पालक प्रेम भटट् ने बताया कि विसुणीताल के आंचल में फैला भूभाग स्वर्ग के समान है। भेड़ पालक बीरेन्द्र धिरवाण कहते है कि दाती त्यौहार से पूर्व विसुणीताल प्रवास के दौरान भेड़ पालकों को ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है।

कैसे पहुंचे विसुणीताल

ऊखीमठ : मदमहेश्वर घाटी के बुरूवा गांव से लगभग 20 किमी दूरी पैदल तय करने के बाद विसुणीताल पहुंचा जा सकता है। बुरूवा गांव से टिगंरी 10 किमी क्षेत्र वनाच्छादित है तथा टिगंरी से थैली तक 3 किमी पैदल मार्ग लम्बी घास वाला है। थौली से सोन पर्वत तक फैला रूपहला विस्तार मखमली घास वाला है। गडगू गांव से भी विसुणीताल पहुंचा जा सकता है मगर गडगू गांव से विसुणीताल पहुंचने के लिए टिगंरी ही जाना पड़ता है। गडगू – विसुणीताल के मध्य तीसरा पैदल मार्ग तो है मगर अत्यधिक जोखिम भरा है इसलिए अधिकांश पर्यटक गडगू टिगंरी पैदल मार्ग से आवागमन करते हैं ।

अपार वन सम्पदा के अवस्थित है टिगंरी बुग्याल

ऊखीमठ :  टिगंरी बुग्याल बुरूवा गांव से 10 किमी की दूरी पर है। टिगंरी बुग्याल चारों तरफ अपार वन सम्पदा से आच्छादित है। टिगंरी बुग्याल को भी प्रकृति ने भरपूर दुलार दिया है। टिगंरी बुग्याल के मदमहेश्वर घाटी के दर्जनों गांव, असंख्य पर्वत श्रृंखलाएं व मधु गंगा की सैकड़ों फीट गहरी खाईयो का दृश्य सदैव मानस पटल पर छाया रहता है। टिगंरी बुग्याल के चारों तरफ भेड़ पालकों की प्राचीन छानियां हैं जिनमें रात्रि प्रवास करने पर आत्मियता झलकती है। विसुणीताल के बाद टिगंरी बुग्याल प्रकृति प्रेमियों की दूसरी पसन्द बनता जा रहा है।

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