लक्ष्मण नेगी
ऊखीमठ : आगामी 19 अप्रैल को सम्पन्न होने वाला लोकतंत्र का महापर्व चुनाव एक बार फिर सामने है। कोई पार्टी इस बार चुनाव में चार सौ पार के दावे का ढोल पीटती नजर आ रहीं है, तो वहीं दूसरी तरफ अन्य पार्टियां महागठबंधन के तहत एकजुट होने का दम भरते हुए मौजूदा केंद्र सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने के दावे कर रही है। बहरहाल सत्तापक्ष और विपक्ष के इन दावों में कितना दम है इसका पता तो 4 जून को चुनाव परिणाम आने के बाद ही चलेगा। लेकिन इन सब से इतर आम मतदाता है कि वह इस बार एक कोने पर खड़ा डरा-सहमा सा नजर आ रहा है।उसके चेहरे पर इस चुनावी शोर में एक गहरी खामोशी साफ दिखायी दे रहीं है।
बहरहाल इस चुनावी घमासान का परिणाम चाहे जो भी रहें पर मौजूदा समय में मीडिया के भीतर राजनैतिक पार्टियों के बीच जो वाक युद्ध चल रहा है उसे किसी रणक्षेत्र से कम नहीं आंका जा सकता है। सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा जहां चुनाव प्रचार में इस बार 400 पार का डंका मीडिया व रोड़ शो में पीटते नजर आ रहीं। जबकि कांग्रेस मंहगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर आम मतदाता को रिझाने का काम कर रही है।
केदारनाथ विधानसभा की बात करें तो इस विधानसभा सीट पर भाजपा कांग्रेस आमने सामने हैं। भाजपा प्रत्याशी अनिल बलूनी व कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल भी केदार घाटी में रोड़ शो कर मतदाताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुके हैं। भाजपा कार्यकर्ता केन्द्र व प्रदेश सरकारों की दर्जनों जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी लेकर मतदाताओं के बीच है तो कांग्रेस बेरोजगारों, महंगाई व अंकिता हत्या जैसे मुद्दों को लेकर जनता के बीच तो है मगर आम मतदाताओं के मौन रहने से स्पष्ट हो गया है कि आजादी के 7 दशक बाद भी क्षेत्र के अनुकूल चहुंमुखी विकास नहीं हुआ है। केदारनाथ विधानसभा के अन्तर्गत अधिकांश युवा तीर्थाटन, पर्यटन व्यवसाय पर निर्भर है जबकि सरकारी नौकरियों का लाभ यहां के युवाओं को मानकों के अनुरूप नहीं मिल पाया है। तुंगनाथ घाटी के व्यापारियों की रोजी – रोटी से प्रशासन व वन विभाग द्वारा खिलवाड़ करने से तुंगनाथ घाटी के युवा मतदाताओं का मौन रहना स्वाभाविक ही है! क्षेत्र के अन्तर्गत सीमांत गांवों के मतदाता संचार युग में संचार सुविधा से वंचित रहने की खामोशी भी मतदाताओं के चेहरे पर साफ झलक रही है। द्वितीय केदार मदमहेश्वर धाम व तृतीय केदार तुंगनाथ धामों सहित अन्य पर्यटक स्थलों के चहुंमुखी विकास में केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग के सेन्चुरी वन अधिनियम का बाधक होना भी मतदाताओं की खामोशी बन सकती है। केदारनाथ विधानसभा में भाजपा, कांग्रेस किसका पलड़ा भारी होगा यह तो आगामी 4 जून को स्पष्ट हो पायेगा मगर मतदाताओं की खामोशी किसी भी पार्टी के समीकरणों पर पलटवार करने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है।