सूख रहे वर्षों पुराने जल स्रोत
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देश को पानी पिलाने वाला उत्तराखंड रहेगा 'प्यासा', सूख रहे हैं प्राकृतिक जलस्रोतउत्तराखंड के लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का एक गीत है- गंगा जमुना जी का मुल्क मनखी घोर प्यासा…कहने को तो ये गीत सालों पहले पिछली शताब्दी में गाया गया था। लेकिन इसकी बातें अब पूरी तरह सच साबित हो रही हैं. जी हा.देश के अनेक राज्यों की प्यास बुझाने वाली गंगा और यमुना नदियों के प्रदेश के लोगों के हलक पानी के बिना सूख रहे
हैं। पर उपलब्ध एक बहुमूल संसाधन है जल, या यूं कहें कि यही सभी सजीवों के जीने का आधार है जल। धरती
का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, किन्तु इसमें से 97% पानी खारा है जो पीने योग्य नहीं है, पीने
योग्य पानी की मात्रा सिर्फ 3% है। इसमें भी 2% पानी ग्लेशियर एवं बर्फ के रूप में है। इस प्रकार सही मायने में
मात्र 1% पानी ही मानव के उपयोग हेतु उपलब्ध है।नगरीकरण और औद्योगिकीरण की तीव्र गति व बढ़ता
प्रदूषण तथा जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना
एक बड़ी चुनौती है। जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर
रही है। प्रतिवर्ष यह समस्या पहले के मुकाबले और बढ़ती जाती है, लेकिन हम हमेशा यही सोचते हैं बस जैसे तैसे
गर्मी का सीजन निकाल जाये बारिश आते ही पानी की समस्या दूर हो जायेगी और यह सोचकर जल सरंक्षण के
प्रति बेरुखी अपनाये रहते हैं। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन, हमारे जल संसाधन
तेजी से घट रहे हैं। अब सबसे बड़ी चुनौती प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण और संवर्धन की है। समस्या यह है कि
पेयजल के अत्यधिक दोहन से जल स्तर घटता जा रहा है। वहीं, बारिश और अन्य माध्यमों से स्रोत पूर्णत: रीचार्ज
नहीं हो पा रहे हैं।बड़े शहर-गांवों में पानी की भारी समस्या देखने को मिल रही है। इस बीच, सचेत किया जा रहा है
कि भारत की 40 फीसद आबादी को 2030 तक स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं होगा।जल स्रोत स्वच्छ जल का
महत्त्वपूर्ण संसाधन है। लेकिन ध्यान रहे कि दुनिया की 18 फीसद आबादी भारत में है, जहां केवल 4 फीसद साफ
पानी है। इसमें भी 80 फीसद पानी कृषि के लिए उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में यदि जल निकायों का उचित
प्रबंधन नहीं होता है तो साफ पानी बचाना मुश्किल हो जाएगा। भारत के गांवों, नगरों आदि स्थानों पर जल स्रोतों
की क्या स्थिति है, इसका अध्ययन भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया गया है।निश्चित ही यह जल
निकायों की पहली गणना के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक और मानव-
निर्मिंत जल संरचनाओं के आकार, स्थिति, उपयोग, जल भंडारण क्षमता आदि का उल्लेख किया गया है। देश में कुल
24,24,540 जल निकायों की गणना हुई है। इनमें सबसे अधिक 7.47 लाख तालाब और जलाशय पश्चिम बंगाल में
हैं, और सबसे कम 134 सिक्किम में हैं। महाराष्ट्र जल संरक्षण योजनाओं में अव्वल बताया गया है। भारत के कुल जल
निकायों में से 97.1 फीसद यानी 23,55,055 ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। 2.9 फीसद यानी 69,485 शहरी क्षेत्र में हैं। इसके
साथ ही 9.6 फीसद (जिनकी संख्या 2,32,637 हैं) आदिवासी क्षेत्रों और 2 प्रतिशत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हैं।जल
निकायों में 16.3 फीसद यानी 3,94,500 जल स्रोत ऐसे हैं, जिन्हें उपयोग में नहीं लाया जा रहा। यदि इन पर
ध्यान नहीं दिया गया तो ये जल्द खत्म हो जाएंगे। 1.7 फीसद ऐसे जल स्रोत हैं, जो 50 हजार या उससे अधिक
लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। इसी में 90 फीसद से अधिक ऐसे भी जल निकाय हैं, जो 100 लोगों की
जरूरत को ही पूरा करते हैं। दोहन, शोषण और प्रदूषण से प्रभावित 1.6 फीसद (जिनकी कुल संख्या 38,496 हैं)
जल निकाय अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं। बताया जा रहा है कि अतिक्रमण के कुल आंकड़े में से 95.4 फीसद
ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, और 4.6 फीसद नगरीय क्षेत्रों में हैं। अनेक झीलें अतिक्रमण का सामना कर रही हैं। जल निकायों
की गणना में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में 15,301, तमिलनाडु में 8,366, आंध्र प्रदेश में 3,920 जलाशय और
झीलें अतिक्रमण से प्रभावित हैं। इसके कारण हैं बढ़ती लापरवाही और अनियंत्रित दोहन। उत्तराखंड का उदाहरण है
कि तेजी से प्राकृतिक जल स्रोत (Water Source) सूख रहे हैं। 461 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से अधिक
पानी सूख चुका है। दिनोंदिन बढ़ती इस गंभीर स्थिति पर नीति आयोग कह चुका है कि हिमालय क्षेत्र के राज्यों में
60 फीसद से अधिक जल स्रोत सूख गए हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों में भी बताया गया है कि देश के 700 जिलों
में 256 ऐसे हैं, जहां भूजल का स्तर अतिशोषित हो चुका है। तीन-चौथाई ग्रामीण परिवारों के पास पीने योग्य पानी
की पहुंच नहीं है। वे असुरक्षित स्रोतों पर निर्भर हैं। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत दुनिया का सबसे
बड़ा भूजल दोहन करने वाला देश बन गया है, जो कुल जल का 25 फीसद है। देश में 70 फीसद जल स्रोत दूषित हैं
जिसके कारण लोग तरह-तरह के रोगों से ग्रसित हैं। प्रमुख नदियां प्रदूषण के कारण मृतप्राय हैं। जिस तरह दुनिया का
पहला जलविहीन शहर दक्षिणी अफ्रीका का केपटाउन बन गया है, उसी तरह की स्थिति हिमालय से लेकर मैदानी
क्षेत्रों में रह रहे अनेक गांव और शहरों में है, जिसके संकेत दिखाई दे रहे हैं।जल निकायों की गणना में चौंकाने वाली
बात है कि इनमें 78 फीसदी मानव निर्मित हैं, और 22 फीसद यानी 5,34,077 जल निकाय प्राकृतिक हैं। इसका
अर्थ है कि प्राकृतिक स्रोत तेजी से गायब हो रहे हैं। कुल जल निकायों की क्षमता के संबंध में बताया गया है कि 50
फीसद जल निकायों की भंडारण क्षमता 1000 से 10,000 क्यूबिक मीटर के बीच है। वहीं 12.7 फीसद यानी
3,06,960 की भंडारण क्षमता 10,000 क्यूबिक मीटर से ज्यादा है।रिपोर्ट कहती है कि 3.1 फीसद का क्षेत्रफल 5
हेक्टेयर से ज्यादा है जबकि 72.5 फीसद का विस्तार 0.5 हेक्टेयर से कम है। जल निकायों की इस गणना के बाद
सुनिश्चित होना चाहिए कि देश के नीति-निर्माता उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर भविष्य में जल संसाधनों के सही
नियोजन, विकास और उपयोग की दिशा में कदम बढ़ाएं। जल, जंगल, जमीन की एकीकृत नीतियां बनानी पड़ेंगी।
चुनावी घोषणा पत्रों में स्वच्छ जल वापसी का मुद्दा शामिल किया जाए। राज समाज के बीच ऐसी जीवन शैली बने
कि जिस में जल सरंक्षण के लिए पर्याप्त स्थान हो। ऐसी योजनाएं बिल्कुल न चलाई जाएं जहां जल का अधिक दोहन-
शोषण होता है, और बाजार द्वारा बंद बोतलों का पानी गांव तक पहुंचया जा रहा है। कोशिश हो कि प्रकृति और
मानव के बीच में जल ही जीवन के रिश्ते की डोर बनी रहे। इस प्रयास को इस गणना के बाद राज-समाज को
मिलकर करना होगा। प्रदेश में प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं, जिससे पेयजल का संकट बढ़ रहा है। भविष्य की
चुनौतियों को देखते हुए प्राकृतिक स्रोतों को सूखने से बचाना बेहद जरूरी है। जबकि, जल संस्थान, वन विभाग, सिंचाई
विभाग समेत तमाम अन्य विभागों की ओर से इस दिशा में कार्य किए जाने का दावा भी किया जा रहा है। अब दावा
धरातल पर कितना खरा उतरता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इस दिशा में व्यक्ति, राज्य या सरकार
की ओर से सहज रूप में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। जल स्रोत निरंतर समाप्त हो रहे हैं। भूगर्भ का जल निरंतर
हमारी पहुंच से दूर होता जा रहा है। भारत में विश्व की आबादी का 18 फीसदी भाग निवास करता है, किंतु उसके लिए
हमें विश्व में उपलब्ध पेयजल का मात्र 4 फीसदी हिस्सा ही मिल पाता है।नीति आयोग के एक ताजा सर्वे के अनुसार
भारत में 60 करोड़ आबादी भीषण जल संकट का सामना कर रही है। अपर्याप्त और प्रदूषित जल के उपभोग से भारत में हर साल 2 लाख लोगों की मौत हो जाती है। यूनिसेफ द्वारा उपलब्ध कराए गए विवरण के अनुसार भारत में दिल्ली और
मुंबई जैसे महानगर जिस प्रकार पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं, उससे लगता है कि 2030 तक भारत के 21
महानगरों का जल पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और वहां पानी अन्य शहरों से लाकर उपलब्ध कराना होगा। जल से
जुड़ी चुनौतियों को स्वीकार कर हम भारतीयों को संकल्पित होना होगा इन चुनौतियों एवं समस्याओं से जूझने के लिये।
परन्तु यह भी चिंता का विषय है कि जल निकायों की कुल गणना में से 16.3 फ़ीसदी यानी 3,94,500 जल स्रोत ऐसे हैं जिन्हें उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह जल्द खत्म हो जाएंगे या इसमें जिस
तेजी से अवसाद भर रहा है उससे यह विलुप्ति के कगार पर खड़े हैं। 1.7 फ़ीसदी ऐसे जल स्रोत हैं जो 50 हजार या उससे
अधिक लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। इसी में 90 फ़ीसदी से अधिक ऐसे भी जल निकाय हैं जो 100 लोगों की
जरूरत को ही पूरा करते हैं।शोषण और प्रदूषण से प्रभावित 1.6 प्रतिशत जिसकी कुल संख्या 38,496 जल निकाय
अतिक्रमण के शिकार हो गये हैं। इसमें भी 75 प्रतिशत जलाशयों पर सबसे अधिक अतिक्रमण किया गया है। बताया जा रहा है अतिक्रमण के कुल आंकड़े में से 95.4 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में है और 4.6 प्रतिशत नगरीय क्षेत्रों में है। इस संबंध में यह भी आंकड़ा है कि कुल अतिक्रमण 38,496 में से 62.8 फ़ीसदी जल निकायों में 25 फ़ीसदी से कम हिस्से पर अतिक्रमण हुआ है और 11.8 फीसदी जल निकायों में 75 फ़ीसदी तक अतिक्रमण हो चुका है ।अनेकों झीलें अतिक्रमण का सामना कर रही है। जिस पर ऊपरी अदालतें कई बार राज्य सरकारों को अतिक्रमण रोकने का आदेश देती है। लेकिन उस दिशा में बड़ी मुश्किल से कदम भी आगे नहीं बढ़ते हैं।जल निकायों की गणना में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में 15,301,तमिलनाडु में 8,366, आंध्र प्रदेश में 3,920 जलाशय व झीलें अतिक्रमण से प्रभावित है।
इसका कारण है कि बढ़ती लापरवाही और अनियंत्रित दोहन के चलते जल स्रोतों को बचाना चुनौतीपूर्ण बन गया है। इसका उदाहरण हमारे देश में है कि सन् 1960 में बेंगलुरु में 262 झीले थीं जो अब 10 ही रह गई हैं। इसी तरह 2001 में अहमदाबाद की137 झीलें कम हो गई है। उत्तराखंड का एक उदाहरण है कि तेजी से प्राकृतिक जलस्रोत सूख रहे हैं 461 जलस्रोत ऐसे जिसमें 76प्रतिशत से अधिक पानी सूख चुका है 1290 जल स्रोत ऐसे हैं जिनमें 51-75 प्रतिशत पानी सूख चुका है और 2873 जलस्रोत ऐसे हैं जिसमें 50 प्रतिशत पानी कम हो चुका है। दिनोंदिन बढ़ती इस गंभीर स्थिति के बारे में नीति आयोग पहले सेही कह चुका है कि हिमालय क्षेत्र के राज्यों में लगभग 60 प्रतिशत से अधिक जलस्रोत सूख गए हैं।केंद्रीय भूजल बोर्ड केआंकड़ों में भी बताया गया है कि देश के 700 जिलों में से 256 ऐसे हैं जहां भूजल का स्तर अतिशोषित हो चुका है। तीन चौथाई ग्रामीण परिवारों के पास पीने योग्य पानी की पहुंच नहीं है उन्हें असुरक्षित स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल दोहन करने वाला देश बन गया है जो कुल जल का 25 प्रतिशत है। देश में 70 प्रतिशत जल स्रोत दूषित है। जिसके कारण लोग तरह-तरह के रोगों से ग्रसित हैं।प्रमुख नदियां प्रदूषण के कारण मृतप्राय: हो चुकी है।हिमालय से लेकर मैदानी क्षेत्रों में रह रहे अनेकों गांव व शहरों में जल विहीन होने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। कुल जल निकायों की क्षमता के संबंध में बताया गया है कि 50 फ़ीसदी जल निकायों की भंडारण क्षमता 1000 से 10,000 क्यूबिक मीटर के बीच है। वही 12.7 फ़ीसदी यानी 3,06,960 की भंडारण क्षमता 10,000 क्यूबिक मीटर से ज्यादा है। रिपोर्ट कहती है कि 3.1 फीसदी का क्षेत्रफल 5 हेक्टेयर से ज्यादा है।जबकि 72.5फ़ीसदी का विस्तार 0.5 हेक्टेयर से कम है।जल निकायों की इस गणना के बाद यह सुनिश्चित होना चाहिए कि देश के नीति निर्माताओं को उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर भविष्य में जल संसाधनों के सही नियोजन, विकास व उपयोग की दिशा मे कदम बढ़ाने पड़ेंगे। जल, जंगल, जमीन की एकीकृत नीतियां बनानी पड़ेगी। चुनावी घोषणा पत्रों में स्वच्छ जल वापसी का मुद्दा शामिल किया जाए। राज समाज के बीच ऐसी जीवनशैली बने कि जिस में जल सरंक्षण के लिए पर्याप्त स्थान हो। ऐसी योजनाएं बिल्कुल न चलाई जाए जहां जल का अधिक शोषण है और बाजार के द्वारा बंद बोतलों का पानी गांव तक पहुंच रहा है।प्रकृति और मानव के बीच में जल ही जीवन के रिश्ते की डोर बनी रहे।इस प्रयास को इस गणना के
बाद राज- समाज को मिलकर करना होगा।18 प्रमुख पुराणों में से एक मत्स्य पुराण में कुओं के बारे में बताया गया
है। 3,000 ईसा पूर्व में, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो स्थल की खुदाई के दौरान, यह निष्कर्ष निकाला गया था कि सिंधु में
लोगों ने ईंटों का उपयोग करके कुओं का निर्माण किया था।मौर्य काल में कुएं भी समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा
थे। लगभग 300 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य के दौरान कौटिल्य में कुओं के पानी से फसलों की सिंचाई करने वाला एक दृष्टांत है।जल स्रोत स्वच्छ जल का एक महत्वपूर्ण संसाधन है। लेकिन ध्यान रहे कि दुनिया की 18 फ़ीसदी आबादी भारत में है जहां केवल 4 फ़ीसदी साफ पानी है। इसमें भी 80 फ़ीसदी पानी कृषि के लिए उपयोग किया जा
रहा है। ऐसे में यदि जल निकायों का उचित प्रबंध नहीं होता है तो साफ पानी को बचाना मुश्किल हो
जाएगा।अन्त में जल है तो कल है। जल के स्रोत बचाने का मतलब है हम आने वाली पीढ़ी को बचाने में
भागीदारी कर रहे हैं अन्यथा आने वाली पीढ़ी हमें ही कोसती रहेगी कि अपने आप संसाधनों का उपभोग कर
उनके लिये हम खाली और बिना पानी के पहाड़ छोड़ गये।