विश्व स्तनपान सप्ताह : मां का दूध बच्चे के लिए सर्वोपरि : डॉ0 कुसुम

Team PahadRaftar

विश्व स्तनपान सप्ताह के अवसर पर स्वास्थ्य विभाग ने गर्भवती महिलाओं और मताओं को किया जागरूक 

गोपेश्वर : प्रत्येक वर्ष, अगस्त के पहले सप्ताह के दौरान विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. इसका उद्देश्य शिशुओं के स्वास्थ्य और बच्चे को स्तनपान का लाभ एवं स्तनपान बच्चे के लिए कुदरत का एक अनमोल उपहार है, जो मां और बच्चे दोनों को पोषण व भावनात्मक लगाव प्रदान करता है।

जनजागरूकता के उद्देश्य से जिला चिकित्सालय गोपेश्वर के प्रसवोत्तर केंद्र में डॉ0 कुसुम पंखोली महिला चिकित्सा अधिकारी ने जिला चिकित्सालय में संस्थागत प्रसव कर चुकी नई माताओ एवं तिमारदारों को बताया कि स्तनपान को लेकर उचित जानकारी, सहायता की कमी तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की भ्रांतियों के कारण मांओं के लिए बच्चे को स्तनपान कराना आसान नहीं होता जिसके कारण उन्हें बच्चों को स्तनपान कराने के लिए हतोत्साहित होना पड़ता हैं, जिसके चलते बच्चे आवश्यक पोषण से वंचित रह जाते हैं. उन्होंने बताया कि एक प्रचलित भ्रांति है कि बच्चों को स्तनपान कराना हर मां के लिए आसान और स्वाभाविक है, जो सही नहीं है. बच्चे को स्तनपान कराने के लिए मां और बच्चे दोनों को अभ्यास और सहायता की आवश्यकता होती है।

फॉर्मूला फीडिंग या बोतलबंद दूध को लेकर भी मान्यता है कि यह बच्चों के लिए मां के दूध के समान ही लाभकारी है, जो बिल्कुल गलत है. मां का दूध बच्चे के लिए सर्वोपरि है. इससे न केवल बच्चों में रोग प्रतिरोधक और मानसिक क्षमता का विकास होता है, बल्कि उन्हें भरपूर पोषण भी मिलता है. मां का दूध शिशुओं को रोगों से बचाने के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है,एक धारणा यह भी है कि जन्म के तुरंत बाद नवजात को मां से अलग कर देना चाहिए, ताकि मां को आराम मिल सके. वास्तविकता यह है कि जन्म के पहले घंटे के अंदर मां का स्पर्श और स्नेह नवजात के शरीर को गर्म रखने एवं मां के साथ भावनात्मक लगाव उत्पन्न करने के लिए जरूरी है, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि गर्मी में शिशु को स्तनपान के साथ पानी या अन्य तरल पदार्थ देना चाहिए, ताकि उनकी पानी की जरूरतें पूरी हो सकें, परंतु बच्चे को मां के दूध के अतिरिक्त और किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती. एक मान्यता यह भी है कि कामकाजी माताएं व्यस्तता के चलते बच्चों को दूध नहीं पिला सकतीं, जबकि यदि परिवार के सदस्यों या स्वास्थ्यकर्मियों का सहयोग मिले तो मां का दूध निकाल, उसे अच्छी तरह संग्रहित करके रखा जा सकता है तथा मां की अनुपस्थिति में बच्चे को पिलाया जा सकता है. इसके अतिरिक्त, और भी बहुत सारे भ्रम और धारणाएं स्तनपान को लेकर हैं, जिन्हें समय रहते दूर करने की आवश्कता है,

बच्चे के जन्म के पहले एक घंटे को ‘गोल्डन ऑवर’ कहा गया है, क्योंकि इस एक घंटे के अंदर बच्चे को स्तनपान कराना काफी महत्वपूर्ण है।यूनिसेफ तथा डब्ल्यूएचओ, माताओं को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि जन्म के पहले एक घंटे के दौरान बच्चे को जरूर स्तनपान कराना चाहिए तथा अगले छह माह तक बच्चे को स्तनपान के अतिरिक्त कुछ नहीं देना चाहिए. छह माह के बाद मां के दूध के साथ बच्चे को ऊपरी आहार देना शुरू करना चाहिए और दो वर्ष तक बच्चे को स्तनपान जारी रखना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे को न केवल भरपूर पोषण, बल्कि उसे कई बीमारियों से सुरक्षा भी मिलेगी. स्तनपान कराने से मां के अंदर ऑक्सिटोसिन हार्मोन का स्राव होता है, जो मां और बच्चे के बीच बॉन्डिंग बढ़ाने का काम करता है. इससे माताओं में कुछ खास किस्म के कैंसर और डायबिटिज जैसी बीमारियों के विकसित होने की संभावना भी कम हो जाती है. इतना ही नहीं, यह फॉर्मूला फीडिंग की तुलना में समय और पैसे की भी बचत करता है तथा बच्चे के लिए एक सुविधाजनक तथा हमेशा उपलब्ध रहने वाला भोजन का स्रोत मुहैया कराता है. परंतु दुर्भाग्यवश, स्तनपान के इतने सारे प्रमाणित लाभों के बावजूद, लोग बच्चों को जन्म के पहले छह महीने के दौरान विशेष रूप से स्तनपान नहीं कराया जा रहा है। इस संवेदीकरण गोष्ठी में उदय सिंह रावत जिलाआई ई सी प्रबंधक,समेत जिला चिकित्सालय के नर्सिंग अधिकारी, नर्सिंग ट्रेनी मौजूद रहे।

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