महक उठी रंगों की खुश्बू,
आज मेरे भी आंगन में |
होली का ये जस्न, आवाज,
गूंज रहा हिदुस्तान में ||
रंगों से लतपत होकर सखी जब आयी,
मानो मैं उसे पहचान भी न पायी |
आकर गले लगाकर मुझको,
उसने अपनी याद दिलाई ||
कोई लाल, कोई हरा बनकर,
घूम रहा मेरे शहर में |
आओ अब गुजिया बनाते,
होली के त्योहार में ||
झूम उठो, नाचो – गाओ,
हर बच्चे के चेहरे पर खुशियाँ लायी है |
क्योंकि सुनो – सुनो मेरे देशवालों,
मेरे शहर में भी होली आयी है ||
अनीशा रावत ✍️
गोपेश्वर ( चमोली )
उत्तराखंड
Very nice 👌👌👌👌 kavita ka 2 nd paragraph bahut accha hai