मां नन्दा को नन्दी कुंड सौंपकर बाम्पा चला गया था सतीनाग
रिपोर्ट रघुबीर नेगी
मां नन्दा का प्रिय स्थान नन्दीकुण्ड कैलाश जाते समय जब भगवती धणियांडुंकर के पास विश्राम हेतू भोजपत्र का टेन्ट बनाकर रही थी, इसी स्थान पर सती नाग की धनियां की वाटिका थी। भगवती के यहां पर पहुंचते ही नाग को खुशबू आने लगी तो शक हुआ कि कोई वाटिका में विचरण कर रहा है तो नाग तुरन्त वहां पहुंच गया। भगवती ने नाग को मामा कहकर पुकारा तो नाग ने भगवती का परिचय जानना चाहा तो भगवती ने नाग से वचन मांगा कि जो मैं मागूंगी आप उसे देंगे। सती नाग ने वचन दिया तो भगवती ने नाग से कुण्ड मांग लिया पुनः भगवती ने नाग से कहा कि हम दोनो साथ इस कुण्ड में नही रह सकते है। सती नाग कभी झूठ नही बोलता था वचन के अनुसार सती नाग भगवती को कुण्ड अर्पित कर डुमक उर्गम भर्की भेंटा सतोपंथ होकर बाम्पा चला गया। जहां फैलापंच नाग के नाम से प्रसिद्ध हुआ और नाग और नन्दा के नाम से यह कुण्ड नन्दीकुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब भी उर्गम घाटी या अलकनन्दा घाटी के गांवों में कोई बडा मणों मेला का आयोजन होता है तब बड़ी जात नन्दीकुण्ड में अष्टमी तिथि को और वार्षिक लोकजात सप्तमी को होती है। नन्दीकुंड में हजारों साल पुरानी तलवारें मौजूद हैं, सरोवर के अतिरिक्त यहां हजारों की तादात में फैन कमल ब्रहम कमल खिले रहते हैं। उर्गम घाटी पंचगै द्योखार पट्टी की नन्दा स्वनूल जात में नन्दा स्वनूल देवी को मायके बुलाया जाता है और जागरों के माध्यम से दशमी मेला को कैलाश भेजा जाता है।