रोपाई के साथ 11 दिवसीय बगडवाल नृत्य हुआ संपन्न
रघुबीर नेगी
जोशीमठ : 11 दिनों से उर्गम घाटी में 6 साल बाद चल रही पौराणिक बगडवाल नृत्य आज सम्पन हो गया है। बगडवाल नृत्य के आखिरी दिन आछरियां वन देवियां जीतू बगडवाल एवं उसके परिवार के सदस्यों को हर लेती है। और उसके परिवार पर आफत का पहाड़ टूट पड़ता है। कालान्तर में जीतू अदृश्य रूप में परिवार की सहायता करता है । पहाड़ में वर्षा सुख समृद्धि के लिए बगडवाल नृत्य का आयोजन किया जाता है।
जीतू बगडवाल की प्रिय बहन है सोबनी जिसकी राशि पर रोपाई का दिन तय होता है सुदूरवर्ती जिस स्थानीय भाषा में बुढेरा मुल्क कहा जाता है वर्षो के बाद सोबनी मायके आती है।
जीतू बगडवाल की कथा
लोकगाथाओं के अनुसार टिहरी गढ़वाल रियासत की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू का आधिपत्य था।
तांबे की खानों के साथ उसका ब्यापार तिब्बत तक फैला था। जीतू बगडवाल की बहिन का नाम सोबनी है जिसका विवाह सूदूर उत्तरकाशी के रैथल गांव में हुआ था। पहाड़ में रोपाई का दिन तय तिथि को होता है जिसमे सोबनी की राशि पर जीतू बगडवाल के खेतों की रोपाई कुल पुरोहित द्वारा तय की गयी साथ ही जीतू को आदेश दिया गया कि रोपाई के लिए जो नौ गते अषाढ तय की गयी है सोबनी को बुलाया जाय। माता पिता व कुल पुरोहित जीतू बगडवाल को बहिन के ससुराल जाने के लिए मना करते है तो जीतू बगडवाल अपने छोटे भाई सोबनू को प्रमोद के साथ सोबनी के ससुराल भेज देता है।
जीजा स्याली के अनोखे प्रेम की गाथा स्याली भराणा
आधे रास्ते से जीतू बगडवाल स्याली भरणा के ससुराल चला जाता है स्याली भरणा के ससुराल के ऊपरी जंगल में बांसुरी बजाता है उस समय स्याली भरणा ओखली में धान कूट रही होती है। बांसुरी की मधुर धुन को भरणा समझ लेती है कि ये तो उसके जीजा जीतू बगडवाल की बांसुरी की धुन है वह आंखली में धान को छोड़कर चली जाती है जहां बासुरी की मधुर तान को जीतू बगडवाल बजा रहा होता है वहां पहुंचकर जीजा जीतू बगडवाल का कुशलक्षेम पूछकर जीजा जीतू बगडवाल को घर चलने के लिए कहती है घर में सुन्दर पकवान खीर बनाये होते हैं जो जीतू बगडवाल को परोसे जाते हैं तो वह कहता है कि मै तो विना मांस के तो खाता ही नही हूँ मैं तुम्हारे जंगल में शिकार खेलने आया था।
तब स्याली भरणा हंसी मजाक में वचन देती है कि तुम न जिन्दा मांस लाना न मरा हुआ यदि तुम ला गये तो मैं तुम्हारे साथ आ जाऊगी तुम्हारे घर। जीतू बगडवाल शिकार खेलने जाता है पर न जिंदा मांस न मरा हुआ लाना और विना मांस का घर भी न आना इसी सोच के साथ कि कैसे वचन होगा स्याली का पूरा जीतू बगडवाल एक वृक्ष के नीचे बैठकर बांसुरी बजाता है बांसुरी की सुन्दर लहर तान पर आछरियां मोहित हो जाती है और जीतू बगडवाल का हरण करने लग जाती है तब जीतू बगडवाल आछरियों वन देवियों को अपने गांव में रोपाई में बुलाने व मान सम्मान का वादा करता है साथ ही स्याली भरणा की इच्छा भी बता देता है आछरियां उसे लवटू यानि भेड़ दे देती है जिसे लेकर वह स्याली भरणा के घर जाता स्याली भरणा वचन के अनुसार शर्त हार जाती है और जीतू के साथ चली जाती है। बहिन सोबनी भी भाई सोबनू के साथ मायके पहुंची है वर्षो के बाद मैतियों से भेंट होती है तो छलक उठती है आंखे जो रुकने का नाम नही लेती है।
बावरिया नी होदू जीतू नी होदू विनाश
इस अवसर पर महावीर राणा पश्वा घंटाकर्ण हीरा सिंह पश्वा दाणी चंद्रमोहन पश्वा चंडिका राजेन्द्र पवांर पश्वा स्वनूल रामचंद्र पश्वा विश्वकर्मा ढोल वादक दीपक गोपाल भक्ति प्रेम राजेन्द्र रावत कुंवर सिंह कन्हैया सतेन्द्र राकेश नेगी रघुबीर रावत शौरभ धर्म सिंह राजेश्वरी तनुजा गीता विजया बसन्ती सुलोचना वीरेंद्र पवांर शेखर चौहान लक्ष्मण सिंह सैकड़ों लोग उपस्थित थे।