धरती और महिलाएं दुनिया की असली पोषक : डॉ. वंदना शिवा

Team PahadRaftar

धरती और महिलाएं दुनिया की असली पोषक  : डॉ. वंदना शिवा

देहरादून : धरती और महिलाएं दुनिया की वास्तविक पोषक हैं. जहां धरती से हमें अन्न सहित जीवन की दूसरी आवश्यक वस्तुएं प्राप्त होती हैं, वहीं एक महिला अपने घर-परिवार को सर्वोत्तम संस्कार के साथ पालती हैं. महिलाएं पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलकर आगे बढ़ रहीं हैं. आज देश और दुनिया में शुद्ध भोजन की बहुत बड़ी चुनौती है. वैश्विक कंपंनियों ने हमारे बीजों को हाइब्रिड की आड में खत्म करने की पूरी कोशिश की है, वहीं रासायनिक खाद और कीटनाशकों की वजह से हमारे खेत निरंतर प्रदूषित होते जा रहे हैं और अन्न जहर से पट रहा है. ऐसे में एक ग्रहणी के रूप में, माँ के रूप में और किसान के रूप में महिलाओं की भूमिका और भी बढ़ जाती है. हमारे ज्ञान की विरासत को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने वाली महिलाएं ही हैं.” यह कहना था डॉ वंदना शिवा का. वह महिला सप्ताह के परिपेक्ष में नवधान्य जैव विविधता एवं संरक्षण फार्म रामगढ़,देहरादून पर चल रहे मातृ-शक्ति कार्यक्रम में कह रही थी.

इस कार्यक्रम में चकराता,देहरादून और उत्तरकाशी की दो-दर्जन महिला किसानों के साथ ही स्विट्जरलैंड, इंग्लैण्ड,फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, इटली, हंगरी तथा भारत से कुल २६ छात्राएं भी उपस्थित रहीं . ये विद्यार्थी इको फेमिनिनिज्म विषय पर ३ दिवसीय पाठ्यक्रम में सम्मिलित हुई और प्रमाणपत्र प्राप्त किया. थे. इस अवसर पर महिला किसानों सहित कुल ७० लोगों ने परंपरागत जैविक भोजन का लिया.

उपस्थित क्षेत्रीय महिला किसानों ने नवधान्य की रसोई में परंपरागत भोजन और पकवान बनाये. देहरादून से अरुणा नेगी ने देहरादूनी बासमती बचाने पर जानकारी साझा की. चकराता से आयी महिला किसान श्रीमती प्रिया देवी ने चकराता राजमा; विनीता देवी ने तुमड़ी आलू,; सरिता राणा ने चौलाई; उत्तरकाशी से अमीना देवी ने मंडुआ; विमला देवी ने लालधान; सविता देवी ने बिच्छू घास और उनके औषधीय महत्त्व पर बात की. वहीँ नर्मदा देवी ने उत्तराखंडी पकवान जैसे अरसा और अस्का पर जानकारी दी.

नवधान्य की वरिष्ठ सदस्य डॉ मीरा शिवा ने कहा कि आज के दौर में जहा कीटनाशकों के छिड़काव के कारण शुद्ध भोजन मिलना कठिन होता जा रहा है वहीँ भोजन में मिल रहे विषाक्त कैंसर जैसी बीमारियों के मुख्य कारण हैं. ऐसे में परिवार का पालन-पोषण करना एक बड़ी चुनौती है. महिलाएं दादी-नानी से मिलने वाले ज्ञान की संवाहक हैं. यदि वे भोजन और स्वास्थ्य के परंपरागत ज्ञान को हमारे दैनिक कार्यों में जीवंत रखती हैं तो निश्चित ही हम अपनी जैव विविधता और जीवन जीने के स्वस्थ तरीकों से स्वयं को , अपने परिवार को और देश-दुनिया को स्वस्थ रख सकते हैं.

कार्यक्रम के प्रारम्भ में संस्था की वरिष्ठ सदस्य श्रीमती मायागोबर्द्धन ने उपस्थित सहभागियों को नवधान्य के बीज संरक्षण के बारे कार्यों में बताया. उन्होंने देहरादून बासमती और नीम के पेटेंट खिलाफ नवधान्य के कार्यों के बारे में बताया. साथ ही भूले -बिसरे अनाजों को मुख्य धरा में महिला किसानों के साथ किये गए कार्यों पर भी बात की.

अवसर पर बीज और नवधान्य साहित्य पर एक प्रदर्शनी भी लगायी गयी. देश विदेश से उपस्थित विद्यार्थियों ने सामूहिक बीजक गीत सुनाया और पुरोला उत्तरकाशी की महिला किसानों ने ताण्डी गीत प्रस्तुत किया. सञ्चालन डॉ प्रीति ने किया.

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