भूमिक्षेत्र पाल घंटाकर्ण की नगरी से विदा हुए द्योखार पट्टी के वजीर देवता – रघुबीर नेगी

Team PahadRaftar

रिपोर्ट रघुबीर नेगी

भूमिक्षेत्र पाल घंटाकर्ण की नगरी से विदा हुए द्योखार पट्टी के वजीर देवता

द्योखार पट्टी देवर खडोरा के आराध्य वजीर देवता 6 माह के रथयात्रा पर रूद्रनाथ, डुमक – कलगोठ, किमाणा, जखोला व पल्ला भ्रमण के बाद श्री घंटाकर्ण भूमिक्षेत्र पाल की नगरी उर्गम घाटी में सात दिन आतिथ्य ग्रहण करने के उपरान्त आज भर्की भूमियाल धनाड़धोड़ के थान से विदा हो गए हैं। भावुकपूर्ण माहौल में भीगी अंखियों से भर्की भूमियाल धनाड़धोड़ ने बड़े भाई वजीर को अपनी नगरी से विदा किया। वजीर देवता ने अपने भाइयों से रथयात्रा को सफल संचालन करने के लिए सहयोग मांगा एवं गांव को सुख समृद्धि खुशहाली का आशीर्वाद दिया । द्योखार पट्टी के देवर खडोरा के वजीर देवता 6 महीने की रथयात्रा पर है । उर्गम घाटी में श्री वजीर देवता ने श्री घंट कर्ण जाख देवता मां चण्डिका मां नन्दा स्वनूल देवी विश्वनाथ पंच बदरी में विराजमान ध्यान बदरी उर्वाऋषि भगवती गौरा मां दाणी राजराजेश्वरी बाबा कल्पेश्वर महादेव समेत अपने धियाणियों की कुशलक्षेम पूछी और सम्पन खुशहाली का आशीष दिया।

 

उर्गम घाटी के रक्षक हिस्सापाबें से 6 माह की रथयात्रा सकुशल संपन्न कराने में सहयोग का अनुरोध किया। अपने सात दिवसीय भ्रमण कार्यक्रम में श्री वजीर देवता ने बडगिण्डा, सलना, ल्यांरी, थैंणा, गीरा, बांसा, देवग्राम, भर्की, भैंटा, अरोसी व पिलखी आदि गांवों का भ्रमण कर सुख समृद्धि खुशहाली का आशीर्वाद दिया। पर्वतीय अंचलों के गांव अपनी पौराणिक संस्कृति परम्परा रीति रिवाज का धनी क्षेत्र है जहां मानव का देवी देवता से होता है सीधा संवाद मानव सीधे अपने आराध्य से संवाद कर अपनी समस्या सुख दुःख का निराकरण मांगता है पौराणिक संस्कृति परम्परा यहां ग्रामीणों को अपनी माटी से जोड़े रखती है । द्योखार पट्टी पंचगै सनवैली उर्गम घाटी के इन गांवों की अपनी संस्कृति परम्परा रीति रिवाज आस्था विश्वास अनोखी है। विलुप्त होती पौराणिक संस्कृति परम्परा रीति रिवाजों को बचाना और संरक्षण करना बेहद जरूरी है। क्योंकि किसी भी राज्य की पहचान वहां की संस्कृति परम्परा रीति रिवाज वेशभूषा और भाषा ही होती है।

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