कैलाश मानसरोवर यात्रा का विकल्प बनेगी आदि कैलाश यात्रा?
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित आदि कैलाश को प्राचीन वेद-पुराणों में भगवान शिव के सबसे प्राचीन निवास स्थल के रूप में वर्णित किया गया है। इसके धार्मिक एवं पौराणिक महत्व के कारण इसे आदि कैलाश के रूप में जाना जाता है। आदि कैलाश की यात्रा को कैलाश मानसरोवर के तुल्य माना जाता है यही कारण है की आदि कैलाश को प्रायः “छोटा कैलाश” की संज्ञा भी दी जाती है। भगवान भोलेनाथ के पंच कैलाश में शामिल आदि कैलाश प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों एवं तपस्वियों की आध्यात्मिक स्थली रही है। कैलाश मानसरोवर यात्रा की तर्ज पर इस बार आदि कैलाश यात्रा शुरू होनी है। 4 मई से शुरू होने वाली इस यात्रा की सभी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। आदि कैलाश यात्रा से जहां बॉर्डर के इलाके गुलजार होंगे, वहीं धार्मिक पर्यटन के नए इलाकों को भी पहचान मिलेगी। चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों के चलते चौथे साल भी मानसरोवर यात्रा नहीं हो पाई है. ऐसे में अब मानसरोवर यात्रा की तर्ज पर आदि कैलाश यात्रा शुरू की जा रही है। 4 मई को आदि कैलाश यात्रियों का पहला जत्था उत्तराखंड के धारचूला में स्थित बेस कैंप पहुंचेगा। धारचूला से आदि कैलाश यात्रियों की यह यात्रा शुरू होगी, जिसे देखते हुए सभी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। यात्रा को सुगम बनाने के लिए जहां बीआरओ को जिम्मेदारी दी गई है, वहीं सेना और आईटीबीपी की भी मदद ली जाएगी। पिथौरागढ़ की जिलाधिकारी ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यात्रियों की सुविधा के लिए इस बार डॉक्टर की तैनाती भी गुंजी में की जाएगी। यात्रा के दौरान कंट्रोल रूम स्थापित करने के साथ ही गुंजी और ज्योलिंगकांग में मेडिकल टीम रखने का भी फैसला हुआ है। बीते सालों में देखा गया है कि माउंटेन सिकनेस के कारण कई तीर्थ यात्रियों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। यही नहीं, आपात स्थिति में हेलीकॉप्टर की मदद भी ली गई। कैलाश यात्रा के दौरान यात्रियों को ओम पर्वत के दर्शन के लिए साढ़े 18 हजार फीट की ऊंचाई पर जाना होता है। जबकि आदि कैलाश पहुंचने के लिए साढ़े 15 हजार फीट के अधिक की ऊंचाई पार करनी होती है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती यात्रियों को बेहतर हेल्थ सर्विस देने की है। पिथौरागढ़ के मुख्य चिकित्साधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि यात्रियों का धारचूला में स्वास्थ्य परीक्षण होगा, जिसके बाद ही उन्हें आगे की यात्रा की अनुमति होगी। आदि कैलाश यात्रा को उत्तराखंड सरकार मानसरोवर यात्रा का विकल्प बनाना चाह रही है। अगर सरकार का यह सपना साकार होता है, तो इसके दो फायदे होंगे. एक तो भगवान भोलेनाथ के दर्शनों के लिए भारतीय तीर्थ यात्रियों को चीन पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा, दूसरा बॉर्डर इलाकों में पर्यटन कारोबार परवान चढ़ेगा। अगर ऐसा होता है कि बॉर्डर के इलाकों में रोजगार बढ़ने के साथ ही पलायन पर रोक भी लगेगी। ऐसे में मानसरोवर यात्रा कराने में अहम जिम्मेदारी निभाने वाले कुमाऊं मंडल विकास निगम अब धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में आदि कैलास को विकसित करने की योजना बना रहा है आदि कैलास जहां जाने के लिए न तो किसी पासपोर्ट की जरूरत पड़ती है न ही वीजा की और क्यों कहते हैं इसे असली कैलास? कैलास मानसरोवर और आदि कैलास के अलावा तीन और कैलास पर्वत हैं। कुल मिलाकर इन्हें पंच कैलास के नाम से जाना जाता है। इनके नाम हैं आदि कैलास, कैलास मानसरोवर, श्रीखंड, किन्नौर कैलास। पंच कैलास में कैलास मानसरोवर सबसे रहस्यमयी है।
मान्यता है कि कैलास पर्वत पर स्वयं शिव शंभू रहते हैं। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से करीब 6648 मीटर है। ग्रंथों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कैलास मानसरोवर के पास ही कुबेर की नगरी है। आदि कैलाश की यात्रा हिन्दू धर्म में लोकप्रिय तीर्थ यात्रा मानी जाती है। तिब्बत में स्थित कैलाश की भांति यह भी एक सरोवर है। सरोवर के किनारे भगवान शिव और माता पार्वती का मंदिर स्थित है। साधु-सन्यासी इस पवित्र यात्रा को प्राचीन काल से करते आये है। आदि कैलाश की यात्रा लगभग 12-14 दिनों में पुरी होती है, जिसे पदैल द्वारा किया जाता है। यदि कोई यात्रा पदैल करने में असमर्थ होता है तो घोड़े पर सवारी करके भी यात्रा कर सकता है। यात्रा के दौरान पार्वती झील, शिव मंदिर और गौरीचक के प्राचीन तीर्थ स्थल के भी दर्शन किये जाते है।आदि कैलाश यात्रा सबसे कठिन यात्रा मानी जाती है। जिसे लगभग 12 दिनों में पुरी करनी होती है। आदि कैलाश यात्रा का स्टार्टिंग पॉइंट ट्रेक का प्रारंभिक बिंदु लखनपुर है, जो धारचूला से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। लखनपुर से ट्रेकिंग शुरू करने के बाद लामरी, बुधी, नाभि, नम्फा, कुट्टी, ज्योलींगकोंग, नबीढांग, ओम पर्वत और कालापानी के माध्यम से आगे बढ़ते है, जो फिर शिन ला दर्रे के माध्यम से दारमा घाटी के साथ जुड़ जाता है। आदि-कैलाश ट्रेकिंग के दौरान, पर्यटक अन्नपूर्णा की बर्फ की चोटियों, विशाल काली नदी, घने जंगल, जंगली फूलों से भरे नारायण आश्रम और फलों की दुर्लभ विविधता और झरनों को देखा जा कसता है।इसके अलावा, आदि-कैलाश का ट्रेक कालापानी में प्रसिद्ध काली मंदिर तक भी ट्रेकर्स को ले जाता है जो एक बहुत ही शुभ स्थान है। इसके अलावा, सुचुमा आदि कैलाश के पास एक चमत्कारिक जलधारा है जो हर तीन दिनों में बहती है और पूरे वर्ष में तीन दिनों तक निरंतर चक्र में चलती है। आचरी ताल, पार्वती सरोवर और गौरी कुंड इन क्षेत्रों में बहुत ही शुभ और प्राचीन जल निकायों में से कुछ हैं जिन्हें यात्रा के दौरान देखा सकता आदि कैलाश हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आदि कैलाश सम्बंध भगवान शिव से है और हिन्दू धर्म में यह एक पवित्र माना जाता है। आदि कैलाश को शिव कैलाश, छोटा कैलाश, बाबा कैलाश और जोंगलिंगकोंग पीक के नाम से भी जाना जाता है। आदि कैलाश भारत के राज्य उत्तराखंड, जिला पिथौरागढ़, हिमालाय पर्वत श्रृंखला में स्थित है। आदि कैलाश को तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत की प्रतिकृति कहा जाता है। आदि कैलाश भारत-तिब्बत सीमा के निकट भारतीय क्षेत्र के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। आदि कैलाश की उँचाई समुद्र तल से लगभग 5,945 मीटर है।ऐसा कहा जाता है कि जो लोग तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत के दर्शन नहीं कर सकता है तो वह आदि कैलाश के दर्शन कर भगवान शिव का आशीर्वाद व कृपा पा सकता है।