प्रकृति से सीखें और धरती पर लौटें
देहरादून : नवधान्य, जैव विविधता संरक्षण केंद्र रामगढ़, देहरादून में 15 सितम्बर से जैवविविध जैविक खेती पर ए-टू-जेड नामक वार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा है. 15 अक्टूबर 2024 तक चलने वाले इस कार्यक्रम की थीम है, ‘’प्रकृति से सीखें और धरती पर लौटें’’. इसके अंतर्गत पारिस्थितिकी आधारित जैविक भोजन प्रणाली पर सम्पूर्ण अभ्यास क्रम चलेगा, जिसमें देश-और दुनिया के 28 प्रकृति प्रेमी एवं युवा किसान प्रतिभाग कर रहे हैं. इन प्रतिभागियों को विश्व प्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. वंदना शिवा उपरोक्त विषय पर अपना जीवन अनुभव दे रही हैं.
कार्यक्रम के बारे में बताते हुए डॉ. वंदना कहती हैं, ‘’यह समूची धरती हमारा परिवार है. हम सभी इस परिवार के सदस्य हैं। इस तरह से मनुष्य पृथ्वी का अभिन्न हिस्सा है, भोजन उगाना और भोजन करना एक ऐसी पारिस्थितिक प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक जीव भाग लेता है. यह प्रक्रिया वसुधैव कुटुंबकम को जीवंत बनाये रखती है.’’
उन्होंने कहा कि औद्योगिक खेती जीवाश्म आधारित पेट्रो-रसायनों के सहारे चलती है. ये रसायन धरती पर हो रहे पारिस्थितिक असंतुलन के प्रति ज़िम्मेदार हैं. इनसे मिट्टी और पानी को 75 प्रतिशत और जैव विविधता को 95 प्रतिशत तक हानि होती है , वहीँ ग्रीन-हॉउस गैसों के उत्सर्जन से जलवायु परिवर्तन को 50 प्रतिशत तक बढ़ावा देने वाले ये पेट्रो-रसायन दुनिया की 75 प्रतिशत असाध्य बीमारियों के जन्मदाता हैं.
डॉ. वंदना शिवा के साथ ए-टू-ज़ेड कार्यक्रम में सम्मिलित प्रतिभागी
उनका कहना था कि पारिस्थितिकी संतुलन पर आधारित जैविक खेती देशी बीजों को बढ़ावा देती है, ऐसी पुनर्योजी खेती धरती और उसके स्वास्थ्य की देखभाल करती है.
डॉ शिवा ने कहा, हजारों वर्षों से किसानों द्वारा खेती के लिए देशी बीजों का चयन किया जाता रहा है. इन बीजों में खुला परागण होता है और वे बदलती जलवायु के अनुरूप ढलने की खूबी रखते हैं. उन्होंने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि देशी बीज पोषण से भरपूर होते हैं अतः वे सभी तरह की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. इस तरह से देशी बीज और पारिस्थितिक जैविक खेती वर्तमान दौर की सबसे बड़ी त्रासदी यानि स्वास्थ्य संकट का हल है. खेती की ये प्रथाएं कुपोषण, भुखमरी और असाध्य बिमारियों से मुक्ति दिलाती हैं.