वैली ऑफ फ्लावर्स : वेस्टर्न डिस्टरबेंस का असर विश्व धरोहर फूलों की घाटी पर, बिछी बर्फ की सफेद चादर, पार्क कर्मियों का गश्ती दल बर्फबारी के बीच पहुंचा वैली
संजय कुंवर, फूलों की घाटी राष्ट्रीय पार्क, घांघरिया जोशीमठ
उत्तराखंड के चमोली जनपद के उच्च हिमालई भ्यूंडार घाटी में मौजूद विश्व प्राकृतिक धरोहर फूलों की घाटी राष्ट्रीय पार्क (वैली ऑफ फ्लावर्स) वेस्टर्न डिस्टरबेंस के चलते अप्रैल माह में भी बर्फ से लक दक हो गया है। यहां पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने के चलते पिछले 24 घण्टे से लगातार बर्फबारी हुई जिससे घाटी में वन्य जीवन की सुरक्षा के मद्देनजर लम्बी दूरी की पैट्रोलिंग करने गई पार्क ऑफिशियल की गश्त टीम को बर्फबारी के बीच काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा ।
शनिवार को घांघरिया बेस कैंप से विश्व धरोहर स्थल फूलों की घाटी राष्ट्रीय पार्क की गश्त पर निकली पार्क कर्मियों की टीम को ग्लेशियर प्वाइंट से भारी बर्फबारी का सामना करना पड़ा,पहले ही घाटी में पैदल मार्ग पर ग्लेशियर पसरे हैं उस पर बर्फबारी से जूझते हुए गश्त दल घाटी के मध्य भाग तक ही पहुंच कर वापस लौट आया है। मौसम ठीक होने पर गश्त दल दोबारा घाटी का पूरा जायजा लेकर गोविंद घाट रेंज मुख्यालय लौटेगा। बता दें की जैव विविधता से भरे विश्व धरोहर फूलों की घाटी राष्ट्रीय पार्क की सैर करने के लिए पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों का इंतजार अब खत्म होने जा रहा है। आगामी एक जून से ग्रीष्मकाल हेतु इस नंदन कानन/ फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान को देशी विदेशी पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा। इससे पूर्व मौसम दुरस्त होने पर एक बार फिर पार्क का गश्ती दल घाटी में शीतकाल में हुई बर्फबारी के साथ ताजा हिमपात से हुए नुकसान का जायजा लेने के साथ घाटी में जहां जहां पैदल मार्ग टूटे हुए हैं उन्हे आवाजाही के लिए दुरूस्त करने ओर मार्ग से बर्फ हटाने हेतु कार्य योजना जल्द तैयार करने के लिए दोबारा वैली का दौरा करेगा। वहीं इस बार अप्रैल के अंत में हो रही बर्फबारी के चलते प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों को घांघरिया से आगे वैली ऑफ फ्लावर्स के लगभग 4 किमी के ट्रैक पर दुर्लभ पुष्पों की प्रजातियों प्राकृतिक नजारे के साथ बर्फ और ग्लेशियर का भी दीदार हो सकेगा।
दरअसल ब्रिटिश पर्वतारोही और वनस्पति शास्त्री फ्रैंक स्मिथ द्वारा अपने कामेट पर्वतारोहण अभियान के दौरान खोजी इस अद्भुत जैव विविधता से भरी फूलो की प्राकृतिक घाटी हिमालय की गोद में बसी फूलों की घाटी उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित है। यह दुर्लभ अल्पाइन पुष्पों और बेशकीमती वनस्पतियों और दुर्लभ वन्य जीवन की विविधता के लिए जाना जाता है। विश्व धरोहर फूलों की घाटी एक समृद्ध विविधता वाला क्षेत्र, दुर्लभ और लुप्तप्राय वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास भी है। यहां एशियाई काले भालू, दुर्लभ स्नो लैपर्ड, कस्तूरी मृग, भूरे भालू, लाल लोमड़ी और नीली भेड़ पाई जाती हैं। वहीं पक्षी जगत में हिमालयन मोनाल, दुर्लभ तीतर सहित अन्य उच्च हिमालई पक्षी भी पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर लुभाते हैं। ये फूलों की घाटी समुद्र तल से लगभग 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। वहीं पुष्पवती नदी के मध्य पसरा ये वियावान करीब 87.50 किमी में फैला हुआ है और लगभग 8 किमी लंबा और 2 किमी चौड़ा है। बड़ी बात ये है की नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान रिजर्व यूनेस्को के विश्व नेटवर्क में बायोस्फीयर रिजर्व का है।
विश्व धरोहर स्थल फूलों की घाटी एक उच्च हिमांलयी घाटी है, जो लंबे समय से प्रसिद्ध पर्वतारोहियों, वनस्पतिविदों के लिए बेहद खास है। इस घाटी में पांच सौ से अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल अलग-अलग रंग के खिलते हैं, जो यहां आने वाले पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को खूब लुभाते हैं। वहीं वर्ष 1982 में फूलों की घाटी को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। अब यह एक विश्व धरोहर स्थल है।
वैली ऑफ फ्लावर्स ने अल्पाइन वनस्पतियों की विविधता वाले एक क्षेत्र के रूप में अपना स्थान बनाया है। अभी घांघरिया से बामन धोड़ तक दो जगह पर बड़े हिमखंड पसरे हुए हैं। एक जून को वैली के गेट खुलने से पहले पार्क प्रशासन द्वारा यहां पैदल संपर्क मार्ग बर्फ काट कर मार्ग दुरस्त किया जायेगा, जिसके लिए पार्क कर्मियों का दल घाटी का जायजा लेकर लौट चुका है, मई माह से घाटी में विविध प्राकृतिक रंगों के अल्पाइन हिमालई पुष्प खिलने लगते हैं तब यहां की प्राकृतिक सुन्दरता का अद्भुत नजारा दिखाई देता है पुराणों में इसे नंदन कानन इंद्र देव का बगीचा भी कहा गया है, इस फूलों की प्राकृतिक घाटी का रंग हर वैली के द्वार हर साल शीत काल के लिए बंद होने तक के समय 31अक्टूबर तक बदलता रहता है। यही घाटी को अलग पहचान दिलाती है। वहीं जुलाई से मध्य अगस्त तक घाटी में फूलो के दीदार करने का सबसे बढ़िया समय है जब घाटी के सबसे खूबसूरत प्वाइंट रिवर बैल्ट एरिया में गुलाबी पुष्प इपलोवियम से पूरी घाटी गुलाबी रंग में रंगी नजर आती है,सितंबर माह तक यहां पोटेंटिला,जिरेनियम, एस्टर, प्राइमुला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटस, ब्लू पॉपी, मार्स मेरी गोल्ड, सेक्सीफ्रेग,केम्पानेउला,ब्रह्मकमल और फैन कमल जैसे कई प्रजातियों के फूल खिलते हैं और इस दौरान राष्ट्रीय पार्क का नजारा ही कुछ और होता है, वहीं शीतकाल में यह राष्ट्रीय पार्क पर्यटकों के लिए बंद कर दिया जाता है, दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों की वन्य जीव तस्करों से सुरक्षा बाबत यहां विंटर में घांघरिया से आगे जाने की अनुमति नही होती है शीतकाल में यहां सिर्फ पार्क कर्मी ही लगातार गश्त करते रहते है और पूरी घाटी की सुरक्षा हेतु घाटी में ट्रैप कैमरे लगा दिए जाते है जो घाटी में शीतकाल में वन्य जीवों की मूवमेंट सहित वन्य जीव तस्करो पर कड़ी नजर रखने के लिए होती है, प्रत्येक वर्ष एक जून को पार्क प्रशासन द्वारा इस प्राकृतिक विश्व धरोहर के मुख्य गेट आम पर्यटकों के लिए खोल दिए जाते है,और 31अक्टूबर को शीतकाल के लिए वैली के दरवाजे बंद हो जाते हैं।