उत्तराखंड वक्त की मौसम मार, लीची का जायका हुआ बेकार
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
देहरादून की लीची की प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में अलग पहचान है। लीची एक फल के रूप में जाना जाता है, जिसे वैज्ञानिक नाम से बुलाते हैं, जीनस लीची का एकमात्र सदस्य है। इसका परिवार है सोपबैरी। यह ऊष्णकटिबन्धीय फल है, जिसका मूल निवास चीन है चीन दुनिया का नम्बर एक लीची उत्पादक देश है। भारत का स्थान दूसरा है। भारत में कुल 92 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। बिहार भारत का सबसे बड़ा लीची उत्पाद राज्य है। यहां करीब 32 हजार हेक्टेयर में लीची के बगान हैं। यह कुल खेती का 40 फीसदी हिस्सा है। बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, असम और त्रिपुरा में लीची की पैदावार होती है। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, पूरे देश में लगभग 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक लीची का उत्पादन भारत में ही होता है। इसमें बिहार में 33-35 हज़ार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। भारत में पैदा होने वाली लीची का 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है। अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं।लेकिन मुजफ्फरपुर की शाही लीची का कोई जवाब नहीं है। देश -विदेश में इसकी धूम है। मुजफ्फरपुर के अलावा वैशाली, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर, बेगूसराय और भागलपुर जिले में भी लीची की खेती होती है। 2017 में बिहार में 3 लाख मीट्रिक टन लीची का उत्पादन हुआ था। 2018-19 में बिहार से 137.27 लाख रुपये की लीची का निर्यात हुआ था। बिहार में करीब 50 हजार किसान परिवार लीची से रोजी -रोटी चलाते हैं। राजधानी देहरादून का शायद ही ऐसा कोई इलाका हो, जहां मकान, मल्टीस्टोरी बिल्डिंग न बन रही हों। इस कारण लीची के हर बगीचे कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुके हैं। साफ है कि अब खुद दूनवासियों को दून की ही लीची का स्वाद चखने को नहीं मिल रहा है। वे रामनगर व अन्य शहरों लीची खरीदने को मजबूर हैं।70 के दशक में दून में करीब 6500 लीची के बाग मौजूद थे। हर साल हजारों मीट्रिक टन में लीची का न केवल उत्पादन हुआ करता था, बल्कि, दून की लीची देशभर के शहरों के अलावा एक्सपोर्ट भी की जाती थी। लेकिन, अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है। राज्य गठन के बाद लीची के बगीचों पर आरियां चलने लगीं। हर रोज मकान, बड़ी-बड़ी इमारतें बन कर खड़ी हो रही हैं और इसका असर सीधे तौर पर लीची के हरे-भरे पेड़ों व बगीचों पर पड़ रहा है। हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक पूरे दून जिले में अब करीब 250 हेक्टेअर क्षेत्रफल में ही लीची का उत्पादन रिकॉर्ड किया जा रहा है। उसमें भी ज्यादा हिस्सा विकासनगर, झाझरा व डोईवाला का इलाका शामिल बताया गया है। उसमें उत्पादन करीब 500 से 550 मीट्रिक टन होना बताया गया है। विभाग भी इसको लेकर चिंतित है। विभाग की मानें तो दून के घंटाघर से लेकर करीब 10 किमी के दायरे में अब लीची उत्पादन का शायद ही कोई बगीचा दिख जाए।जितने क्षेत्रफल में लीची का उत्पादन हो रहा है। उस पर इस बार खासी मार पड़ी है। मई माह में आई तेज आंधी व तूफान के कारण करीब 10 परसेंट लीची ड्रॉप हो गई। उद्यान विभाग के अधिकारी के अनुसार लीची के बगीचे नष्ट होने के साथ क्लाइमट का भी लीची पर असर देखने को मिल रहा है। इस बार उत्पादन भी गिरावट दर्ज की गई। पेड़ों पर गुच्छे नहीं, अब एकाध ही लीची नजर आ रही है। अबकी बार अभी दून की लीची पेड़ों पर ही है। कलर देना भी शुरू नहीं हो पाया है। जून फस्र्ट तक मार्केट में आने की उम्मीद है। लेकिन, महंगे दाम पर दून की लीची नजर आएगी।दून शहर में एकाध दुकानों पर रामनगर की लीची नजर आने लगी है। जिसकी कीमत भी 150 रुपए तक पहुंच गई है। मतलब साफ है कि लीची खरीदना अब हर किसी के बस में नहीं रहा। उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में मौसम का मिजाज बिगड़ा है। आंधी-तूफान, बारिश और ओले गिरने से कई इलाकों में जनजीवन प्रभावित हुआ है। आंधी तूफान ओर बारिश से लीची के फलों और पेड़ों को भारी नुकसान हुआ है। इस कारण किसानों को दोहरा नुकसान हुआ है। दून की पहचान माने जाने वाले प्रसिद्ध बासमती के स्वाद और खुशबू के बाद अब लीची की मिठास पर भी संकट है। बाजार में इस बार देहरादून की लीची मुश्किल से मिल रही है। जो आ भी रही है, उसमें रस और मिठास नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के साथ इमारतों के बढ़ने का असर देहरादून की लीची पर भी पड़ा है। लीची मौसमी फल के रूप में सेहत के लिए लाभदायक होता है। लीची मेटाबोलिज्म और ब्लड प्रेशर को ठीक रखती है। फाइबर होने के कारण कब्ज को दूर करने में भी लाभकारी है। लीची में अनेक एंटी ऑक्सीडेंट भी होते हैं। फल के अंदर एक भूरे रंग का बड़ा सा बीज होता है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है। इसके फल में शर्करा, मैलिक अम्ल, साइट्रिक अम्ल, टार्टरिक अम्ल, विटामिन तथा खनिज पदार्थ पाये जाते हैं। गर्मियों में जब शरीर में पानी व खनिज लवणों की कमी हो जाती है तब लीची का रस बहुत फायदेमंद रहता है। लीची सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद फल है। इसमें बहुत से पोषक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, सोडियम, विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन बी .कांपलेक्स, विटामिन के, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और आयरन जैसे मिनरल्स पाए जाते हैं। लीची में ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो शरीर में बेहतर पाचन को बढ़ावा देते हैं. कुछ अध्ययनों के अनुसार, लीची में घुलनशील फाइबर होते हैं जो आंत्र संबंधी समस्याओं पर नियंत्रण रखते हैं. यह भूख में सुधार और नाराज़गी को प्रबंधित करने में भी मदद करता है. इसके अलावा, लीची के बीज आंतों से कीड़े निकालने में मदद कर सकते हैं और आंत्र पथ के मुद्दों में मदद कर सकते हैं. रक्तचाप में उतार-चढ़ाव इन दिनों एक आम समस्या है. लेकिन लीची एक ऐसा फल है जो मदद कर सकता है. पोटेशियम का एक अच्छा स्रोत होने के कारण, लीची एक फिट और स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के साथ रक्तचाप पर नियंत्रण रख सकती है.इसके इन्हीं गुणों के कारण इसे सुपर. फल भी कहा जाता है। देहरादून में लीची के उत्पादन के साथ ही लीची की क्वालिटी और उसके टेस्ट में भी भारी अंतर आया है। पहले के मुकाबले देहरादून में अब लीचियां छोटी हो गई हैं और अब उनका स्वाद भी पहले जैसा नहीं रहा।