मोटे अनाजों का बढ़ता कद और अनाजों का संरक्षण

Team PahadRaftar

मोटे अनाजों का बढ़ता कद अनाजों का संरक्षण

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

पूरी दुनिया में मिलेट्स की खेती सबसे ज्यादा अफ्रीका में की जाती है, लेकिन मोटे अनाजों का सबसे अधिक
उत्पादन भारत में होता हैं। निर्यात की बात करें तो अफ्रीका मिलेट्स अनाजों का सबसे बड़ा निर्यातक देश है,
जबकि भारत इसके निर्यातक देश में दूसरे स्थान पर है। भारत यूएई, नेपाल, सऊदी अरब, लीबिया , मिस्र,
ओमान, यमन, ट्यूनीशिया, ब्रिटेन और अमेरिका में ज्वार, बाजरा, रागी, कनेरा और कुटू का निर्यात कर रहा
है। दुनियाभर में मोटे अनाजों के प्रमुख उत्पादकों की लिस्ट में चीन, माली, नाइजीरिया इथोपिया, सुडान,चाड,
पाकिस्तान, बर्किना फासो, सेनेगल, तंजानिया, नेपाल, रूस, यूक्रेन, घाना, युगांडा, म्यांमार और गिनी देश
शामिल हैं।हरित क्रान्ति के आने तक देश में पैदा होने वाले खाद्यान्न में मोटे अनाजों की हिस्सेदारी 40 फ़ीसदी
तक थी। लेकिन हरित क्रान्ति के बाद गेहूँ और धान जैसे अनाजों की पैदावार में भारी इज़ाफ़ा हुआ और मोटे
अनाज की खेती के प्रति किसानों का रुझान लगातार घटता चला गया। शायद, इसकी प्रमुख वजह ये रही कि
मोटे अनाज के मुक़ाबले किसानों को गेहूँ-चावल का ज़्यादा दाम मिला। वो बात अलग है कि मोटे अनाजों के
मुक़ाबले गेहूँ-चावल की उत्पादन लागत भी कहीं ज़्यादा रही। बहरहाल, गेहूँ-चावल की बढ़ी हुई पैदावार का
हमारे परम्परागत खान-पान की आदतों पर भी बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा।ज्वार, बाजरा, मक्का और मडुआ जैसे
मोटे अनाज में पौष्टिक तत्वों की भरमार होती है। मडुआ उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है। ये कैल्शियम से
भरपूर होता है। प्रति 100 ग्राम मडुआ में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। यह डायबिटीज या मधुमेह के
मरीज़ों के लिए बेहद फ़ायदेमन्द होता है। सामान्य गेहूँ में जहाँ कम समय में ही घुन लगने लगता है वहीं मंडुआ
ऐसा मोटा अनाज है जो 2 दशकों तक ज्यों का त्यों बना रहता है।बाजरा में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा में पाया जाता
है। प्रति 100 ग्राम बाजरे में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व (आयरन) और
132 मिलीग्राम कैरोटीन होता है। कैरोटीन हमारी आँखों के लिए बेहद लाभकारी है। बाजरे में 85 प्रतिशत
अधिक फॉस्फोरस पाया जाता है। बाजरा की तासीर एक गर्म अनाज की मानी गयी है। इसीलिए जाड़ों में इसका
सेवन बहुत फ़ायदेमन्द माना गया है। जो लोग गेहूँ नहीं खा सकते, उन्हें बाजरे को किसी अनाज के साथ मिलाकर
खाना चाहिए। यह थायमिन, कैल्शियम, आयरन और विटामिन-बी का अच्छा स्रोत है।डबलरोटी या ब्रेड के उत्पादन में ज्वार का ख़ूब इस्तेमाल हो रहा है। बेबी फूड में भी जौ का ख़ासा इस्तेमाल होता है, क्योंकि जौ को बेहद सुपाच्य अनाज माना गया है। ज्वार और मक्के के आटे का घोल इतना सुपाच्य और पौष्टिक होता है कि जब बेबी फूड का चलन नहीं था तो माताएँ अपनी शिशुओं को इसे ही पिलाती थीं।जौ में सबसे ज़्यादा अल्कोहल पाया जाता है, जो मूत्र-विकारों और हाइपरटेंशन के मामले में बेहद गुणकारी है।  इसमें फाइबर, मैग्नीशियम और एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होता है। यह ख़राब कोलेस्ट्रॉल को कम करके ख़ून में ग्लूकोज की मात्रा को भी बढ़ाता है।जई में विटामिन बी, ई तथा बी कॉम्प्लेक्स, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम, ज़िंक, मैग्नीज और लौह तत्व

भरपूर मात्रा में होता है। हृदय रोगों के अलावा डिसलिपिडेमिया के मरीज़ों के लिए भी कम सैचुरेटेड फैट के साथ जई का सेवन करना बहुत लाभदायक है।कंगनी 100 ग्राम चावल की तुलना में 81 प्रतिशत अधिक पौष्टिक है।
सावाँ में 840 प्रतिशत ज़्यादा वसा, 350 प्रतिशत फाइबर और 1229 प्रतिशत आयरन पाया जाता है। चावल की
तुलना में कोदों में 633 प्रतिशत अधिक खनिज तत्व पाया जाता है। काबुली चने में 23 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
आज़ादी के बाद बाज़ारीकरण के दौर में आम लोगों मोटे अनाजों के सेवन से दूर चले गये। इसी दौरान एक-
फसली खेती को भी बढ़ावा मिला और इसमें धान तथा गेहूँ की खेती केन्द्रीय भूमिका में आ गये। नतीज़तन खेती
की ज़मीन में मोटे अनाजों की अनुपात और पैदावार दोनों ही घटते चले गये। शहरी लोगों ने मोटे अनाज से बने
व्यंजनों को देहाती भोजन समझकर अपनी रसोई से बाहर कर दिया। लेकिन अब वैज्ञानिकों की ओर से
प्रमाणित करने के बाद बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ उन्हीं मोटे अनाज के पैकेट बाज़ार में उतार रही हैं और इसकी
अहमियत को स्वीकार करते हुए हर तबके के लोग शौक़ ने इन्हें ख़रीद और अपना रहे हैं। ज़ाहिर है, मानव
पोषण की ज़रुरतों के लिहाज़ से मोटा अनाज हमारी सेहत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। किसानों के लिए भी ऐसा
बदलाव कोई कम ख़ुशगवार नहीं। धान और गेहूँ की तुलना में परम्परागत मोटे अनाज काफ़ी कम पानी और
खाद से उग जाते हैं। कम उपजाऊ भूमि में भी इसकी अच्छी पैदावार और लाभकारी दाम मिल जाता है। मोटे
अनाज की खेती में महँगे रासायनिक खाद और कीट नाशकों की ज़रूरत नहीं पड़ती। ये पर्यावरण के बेहद
अनुकूल होते हैं और पोषक आहारों की दुनिया में तो परम्परागत मोटे अनाजों और भी बेजोड़ हैं।

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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