उर्गमघाटी : भगवान नारायण घंटाकर्ण भूमि क्षेत्रपाल से मिलने पहुंचे

Team PahadRaftar

रघुबीर नेगी

श्री घंटाकर्ण भूमि क्षेत्रपाल से मिलने उर्गमघाटी पहुंचे भगवान नारायण

 

उर्गमघाटी : भगवान बदरी विशाल के कपाट खुलने से पूर्व उर्गम घाटी में धार्मिक परम्पराओं के तहत भगवती गौरा की कैलाश विदाई के बाद आज गरूड़ छाड़ चोपता मेला सम्पन हो गया। भगवान श्री नारायण अपने वाहन गरूड़ में सवार होकर अपने भूमिक्षेत्र पाल घंटाकर्ण से मिलने उर्गमघाटी पहुंचे, जहां भूमियाल देवता, घंटाकर्ण भर्की, भूमियाल समेत पंचनाम देवताओं ने श्री नारायण का स्वागत किया। 4 अप्रैल शाम से श्री चोपता मंदिर में चारों पहर जागर गायन होता है जिसमें सभी देवी देवताओं का आवाह्न किया जाता है। चोपता मंदिर में सभी देवी देवता दाणी, चण्डिका, भूमियाल देवता, दाणू व नन्दा स्वनूल के निशानों की पूजा अर्चना के बाद भोग लगाया जाता है तथा जागरों के माध्यम से आमंत्रित किया जाता है। देवी देवता अवतरित होते हैं निरन्तर जागरवेता जागर गायन करते हैं। जिसमें नन्दा स्वनूल शिव गौरा विवाह की कथा दैत्यों के वध का वर्णन होता है। चोपता मेला में भर्की भूमियाल अपने बड़े भाई के यहां देव मिलन हेतु पंचनाम देवताओं के साथ पहुंचते हैं। यहां होता है इंसानों का अवतरित देवताओं से सीधा संवाद होता है।

 

भूमियाल देवता कटार एवं विश्वकर्मा पत्थर से छाती पर आसन लेते हैं। निश्चित समय पर भगवान नारायण अपने वाहन गरूड़ में सवार होकर चोपड़ा मंदिर पहुंचते हैं, जहां घंटाकर्ण अपने आराध्य नारायण की आगवानी करते हैं। यहां एक वर्ष गरूड़ छाड़ तो एक वर्ष नन्दा स्वनूल का मेला होता है। अपने पार्षद घंटाकर्ण से भेंटकर भगवान नारायण बदरीनाथ के लिए रवाना होते हैं। सैकड़ों लोग गवाह बने गरूड़ छाड़ मेले के जहां लोगों ने दाकुड़ी झूमैलो नृत्य के साथ भगवान नारायण नन्दा स्वनूल घंटाकर्ण से देश की सुख समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की।

पंचबदरी में ध्यान बदरी उर्गम घाटी में विराजमान हैं जहां बारह महीने नारायण के दर्शन होते हैं। पूर्व समय में बदरीनाथ के रावल कपाट खुलने से पूर्व उर्गम घाटी में रात्रि विश्राम करते थे समय के साथ ये परम्परा भी टूट गयी है।

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