चारधाम यात्रा पर आई महादेवी वर्मा को जब भा गया रामगढ़

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चारधाम यात्रा पर आई महादेवी वर्मा को जब भा गया रामगढ़

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत की हिंदी साहित्य में छायावादी काल के प्रमुख चार स्तंभों में से एक महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च
1907 को फ़र्रुख़ाबाद, संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, ब्रिटिश भारत में हुआ। उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में जन्मने
वाली हिंदी की प्रख्यात साहित्यकार महादेवी वर्मा का उत्तराखण्ड से गहरा लगाव था. यहां का अप्रतिम
प्राकृतिक सौंदर्य और नीरव शांति उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करते थे.1937 में महादेवी वर्मा बदरी-केदार की
यात्रा पर आई थीं, इस दौरान उन्हें उत्तराखंड का प्राकृतिक सौंदर्य और यहां की फिजा इस कदर भाई कि
उन्होंने यहीं बसने का मन बना लिया. साहित्य सृजन के लिए उन्हें यह स्थान इतना भा गया कि उन्होंने यहां के
प्रधान से अपने लिए घर बनवाने के लिए जगह मांगी. उन्होंने इन हसीं वादियों में ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए
घर का निर्माण किया जिसे आज मीरा कुटीर के नाम से जाना जाता है.इसके बाद वह हर साल गर्मियों में
इलाहाबाद से यहां आया करती थीं. गर्मीभर वह यहीं पर रहकर साहित्य सृजन किया करती थीं. यहीं पर
उन्होंने अपने कविता संग्रह दीपशिखा की कविताएं लिखीं, अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएं के कुछ
शब्दचित्र भी इसी भवन में सृजित हुए.उनके साहित्यक मित्र धरमवीर भारती, सुमित्रानंदन पंत, इलाचंद जोशी
और तमाम लेखक उनसे मिलने रामगढ़ आया करते थे. इलाचंद्र जोशी ने साल 1960 में इसी भवन घर में
रहकर अपना उपन्यास ‘ऋतुचक्र’ लिखा. इसके अलावा भी कई महान रचनाओं को इसी भवन में पूरा किया
गयासुमित्रानंदन पंत की अनेक प्रकृति संबंधी कविताएं, डॉ धर्मवीर भारती के यात्रा-संस्मरण. डॉ धीरेंद्र वर्मा,
गंगा प्रसाद पांडे आदि ने अपनी अनेकों रचनाओं को यहीं पर अंतिम रूप दिया.बताया जाता है कि रामगढ़ तथा
आसपास के क्षेत्र की अनेक निर्धन बालिकाओं को महादेवी वर्मा अपने साथ इलाहाबाद ले गई थीं और वहां से
पढ़ा-लिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया.‘मीरा कुटीर’ के कुछ हिस्से उसी तरह संजोकर रखे गए हैं जैसे कि
वह महादेवी वर्मा के समय में थे. उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुयें आज भी सलामत हैं. रामगढ़ व
आस-पास के क्षेत्र की अनेक निर्धन बालिकाओं को वे अपने साथ इलाहाबाद ले गईं और पढ़ा-लिखाकर उन्हें
आत्मनिर्भर बनाया। मीरा कुटीर का महत्व इस कारण भी है कि यहीं उन्होंने अपने कविता संग्रह दीपशिखा का
पूरा किया । अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएं के कुछ शब्दचित्र भी इसी घर में रचे गए। इला चंद्र जोशी
ने वर्ष 1960 में इसी घर में रहकर अपना उपन्यास ऋतुचक्र लिखा। रामगढ़ पहुंचने की प्रेरणा कहां से मिली।
दरअसल उनसे यहां की खूबसूरती का जिक्र उनसे गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने किया था। जिसके बाद उन्होंने यहां

आने का फैसला किया। जब वह यहां पहुंचीं तो न सिर्फ यहां की खूबसूरती देखकर मुग्ध हुईं बल्कि रहने के लिए घर
भी खरी लिया और नाम रखा मीरा कुटीर। मीटा कुटीर आज भी साहित्यिक गितविधियों का एक बड़ा केन्द्र है। देश
की आजादी क बाद 1952 में महादेवी उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य चुनी गईं। 1956 में भारत सरकार ने
पद्म भूषण से सम्मानित किया। 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि दी। इससे पहले उन्हें
नीरजा के 1934 में सक्सेरिया पुरस्कार और 1942 में स्मृति की रेखाओं के लिए द्विवेदी पदक प्रदान किया गया।
1943 में उन्हें मंगला प्रसाद पुरस्कार और उत्तर प्रदेश के भारत भारती पुरस्कार से भी नवाजा गया। यामा नामक
काव्य संकलन के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके
अलावा उन्हें साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप भी प्रदान की गई।  हिंदी साहित्य में छायावाद युग का उदय हो रहा
था, जिसमें निजी अनुभव, प्रेम की अनुभूति और प्रकृति के प्रति सद्भाव जैसे पहलुओं को कागज़ पर उतारा जा
रहा थाI सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पन्त जैसे महान कवियों का दबदबा थाI
उस दौर में महादेवी ने अपने नवीन विचारों से इन महान रचनाकारों के बीच अपनी जगह बनाई और उस युग
के चार स्तम्भों में गिनी जाने लगीं! यह सिलसिला सन 1930 के दशक से तब से शुरू हुआ था, जब उनकी
विचारधारा उनकी रचनाओं में छलकने लगी थी I अपनी कविताओं और लेखों में उन्होंने महिलाओं पर हो रहे
अत्याचारों और महिलाओं के सशक्तिकरण की ज़रूरत पर प्रकाश डालाI उदाहरण के तौर पर, उन्होंने ‘घर और
बाहर’ लेख में विवाह की तुलना ग़ुलामी से की थी। ‘हिन्दू स्त्री का पत्नीत्व’ लेख में उन्होंने औरत पर हो
अत्याचारों के बारे में विचार प्रकट किए थे I फिर ‘चा’ और ‘बिबिया’ जैसे लेखों में उन्होंने औरतों की मानसिक
और शारीरिक स्थिति और उनपर हो रही ज़्यादतियों पर प्रकाश पर डाला I ये लेख, उनकी किताब ‘श्रृंखला की
कड़ियां” में सन 1942 में प्रकाशित हुए थे I कई महत्वपूर्ण लेखकों और साहित्यकारों का मानना है, कि साहित्य
में नारीवाद को आम जनता के सामने प्रस्तुत करने का श्रेय महादेवी को ही जाता है। कई विद्वान इसका श्रय
मशहूर फ़्रांसीसी लेखिका सिमोन द बुउआर को देते हैं। सिमोन द बुउआर की किताब “द सैकंड सेक्स” सन
1949 में प्रकाशित हुई थी। जबकि सच यह है, कि महादेवी वर्मा नारीवादी विषयों को उससे काफ़ी पहले उठा
चुकी थीं।महादेवी ने “निहार”(1930), “रश्मि”(1932), “नीरजा” (1934), और “संध्यागीत”(1936)
कविताएँ लिखीं जो उनके संग्रह ‘यामा’(1940) में प्रकाशित हुईंI महादेवी ने क़रीब अट्ठारह उपन्यास और कई
लघु कहानियां लिखे, जिनमें ‘दीपशिखा’,‘स्मृति की रेखाएं’,अनेक महत्वपूर्ण कविताएं लिखीं, जिनमें ‘पथ के
साथ’ और ‘मेरा परिवार’ प्रमुख हैंI इनमें से कुछ रचनाओं में उनके निजी जीवन से जुड़े क़िस्से भी शामिल हैं।
कुछ कविताओं में महिलाओं से जुड़े कुछ ऐसे पहलू और बातें हैं, जो आज के सामाजिक परिवेश में भी महत्वपूर्ण

हैंIमहादेवी, रविन्द्रनाथ टैगोर के शान्तिनिकेतन विश्वविद्यालय से बेहद प्रभावित थीं। महादेवी ने कुमाऊँ की
पहाड़ियों की सैर करने के बाद नैनीताल के पास, उमागढ़  गाँव में एक भवन बनावाया। फिर वहीं रहकर
उन्होंने अपने लेखन-कार्य के साथ-साथ, उस गाँव की महिलाओं की पढ़ाई-लिखाई और उन्हें आत्मनिर्भरता
बनाने के लिए काम कियाI आज यही भवन महादेवी के साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है साल में
दो-एक दफा यहाँ साहित्यकारों का जमावड़ा भी लगता है. महादेवी कि याद में कुछ अनुष्ठानिक कार्यक्रम भी
आयोजित किये जाते हैं. महादेव के निधने के बाद लम्बे समय तक यह भवन उपेक्षा का शिकार बना रहा।
महादेवी के सलाहकार रामजी पाण्डेय, उपन्यासकार लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही और कवि-सम्पादक वीरेन
डंगवाल के प्रयासों से सरकार ने इस इमारत में दिलचस्पी ली। इसे नैनीताल स्थित कुमाऊँ विश्वविद्यालय की
देखरेख में एक साहित्य-संग्रहालय का रूप दे दिया गया। आज इस भवन में महादेवी वर्मा सृजन पीठ नामक
महत्वपूर्ण साहित्यिक केंद्र संचालित होता है। यहां वर्ष भर होने वाले विविध कार्यक्रमों में देश के युवा-वरिष्ठ
लेखल-रचनाकारों आना होता रहता है। दिलचस्प बात ये है, कि महादेवी की रचनाओं के अंग्रेजी अनुवादों ने
अमेरिका और ब्रिटेन के साहित्य जगत में भी हंगामा मचा दिया था। डेविड रुबिन जैसे मशहूर लेखक उन
रचनाओं पर  मंत्रमुग्ध हो गए थे I एक लेख में उन्होंने कहा था कि औरतों पर अत्याचार और उनकी
आत्मनिर्भरता के भाव को महादेवी वर्मा से बेहतर शायद ही किसी ने प्रकट किया होगाIअपनी रचनाओं से
सामाज में बदलावों की बात करने वाली महादेवी को पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे सम्मानों से नवाज़ा गयाI
सन 1979 में वो साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं। सन 1991 में महादेवी के
सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया था। सन 2018 में गूगल ने महादेवी के जन्मदिवस के
अवसर पर एक डूडल बनाया थाI नारीवाद और मानवतावाद के पहलूओं पर लिखी उनकी रचनाएं आज भी
उतने ही प्रासंगिक  हैं जितनी उनके समय में थीं। लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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