ऊखीमठ : केदार घाटी के निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलें चौपट होने की कगार पर है तथा काश्तकारों को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है। मौसम के अनुकूल बारिश न होना जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। एक दशक पूर्व की बाद करें तो बसन्ती पंचमी के बाद प्रकृति व काश्तकारों की फसलों में नव ऊर्जा का संचार होने लगता था मगर समय में मौसम के लगातार परिवर्तन होने से पर्यावरणविद व काश्तकारों खासे चिन्तित हैं।
केदार घाटी में विगत वर्ष 11 नवम्बर व इस वर्ष 19 जनवरी व 29-30 जनवरी को मौसम के करवट लेने से हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में हल्की बारिश तो हुई है, मगर मौसम के अनुकूल प्राप्त मात्रा में बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, सरसों व मटर की फसलें सुखने की कगार पर है। तथा काश्तकारों को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है।
केदार घाटी में लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन भविष्य के लिए शुभ संकेत नही हैं तथा निरन्तर जलवायु परिवर्तन होने से पर्यावरणविद व काश्तकार खासे चिन्तित हैं। हिमालयी भू-भाग में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों के जलस्तर पर लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। मई – जून में अधिकांश इलाकों में पेयजल संकट गहराने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा रहा है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच के पूर्व अध्यक्ष मदन भटट् का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण काश्तकारों की फसलों को प्राप्त मात्रा में पानी न मिलने के कारण काश्तकारों की फसलें चौपट होने की कगार पर है। गुरिल्ला संगठन जिलाध्यक्ष बसन्ती रावत का कहना है कि मानव द्वारा प्रकृति के साथ की जारी झेडखानी के कारण जलवायु परिवर्तन की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। प्रधान पाली सरूणा प्रेमतला पन्त का कहना है कि क्षेत्र में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलों में खासा असर देखने को मिल रहा है तथा भविष्य में यह समस्या और गम्भीर हो सकती है! प्रधान बेडूला दिव्या राणा, प्रधान बुरूवा सरोज भटट् ने बताया कि एक दशक पूर्व कालीशिला – सनियारा – टिगंरी – विसुणीताल का भूभाग दिसम्बर से मार्च तक बर्फबारी से लकदक रहता था मगर वर्तमान समय में इस भूभाग के बर्फ विहिन होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। गैड़ गाँव के काश्तकार बलवीर राणा ने बताया कि मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलें सूखने की कगार पर हैं।