चिंताजनक : हिमालय में स्थित वेदनी कुंड सूखा
पर्यावरणविद् चंदन नयाल ने सूखे वेदनी कुंड पर जताई चिंता,पानी के रिचार्ज टैंको का सूखना भविष्य के लिए खतरे की घंटी। बुग्यालों में भी तापमान में बढोत्तरी
मौसम चक्र में हुए भारी परिवर्तन को देखने वेदनी ऑली बुग्याल पहुंचे थे चंदन नयाल,गौरा देवी पर्यावरण सम्मान से सम्मानित है युवा चंदन नयाल,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं तारीफ
संजय चौहान
चमोली : विश्व प्रसिद्ध वेदनी बुग्याल के वेदनी कुंड की ये तस्वीर 16 जून 2024 की है जिसे पर्यावरणविद् चंदन नयाल द्वारा वेदनी – आली बुग्याल भ्रमण के दौरान खींची गई है जबकि दूसरी तस्वीर नंदा देवी राजजात यात्रा 2014 की है। यें तस्वीरें बहुत कुछ बोलती हैं और बहुत कुछ कहती भी हैं।
3354 मीटर की ऊँचाई पर स्थित ये बुग्याल बरसों से लोगों के मध्य आकर्षण का केंद्र रहा है। खासतौर पर इसकी सुंदरता और मध्य में स्थित वेदनी कुंड तो सुंदरता में चार चांद लगा देता है। लेकिन इस बार वेदनी कुंड में पानी न होने से सैलानी बेहद अचंभित और मायूस है।
मौसम चक्र में भारी बदलाव है प्रमुख कारण
विगत कुछ सालों से मौसम चक्र में हुए भारी परिवर्तन से सर्दियों में बारिश कम हो रही है। पिछले साल सर्दियों में बहुत ही कम बारिश और बर्फबारी हुई जिस कारण हिमालय में मौजूद छोटे बड़े ताल, झील और कुंड में पानी की कमी पायी गई है। पिछले साल अक्टूबर माह में रहस्यमयी रूपकुंड झील भी पूरी तरह से सूख गईं थी। ये सब आने वाले समय के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
हिमालय में अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप का दबाव
हिमालय के उच्च बुग्यालों में अनियंत्रित और अनियोजित रूप से मानवीय हस्तक्षेप का दबाव हर साल बढ़ रहा है। बुग्याल इस दबाव को झेलने में असमर्थ हैं, जिससे इन बुग्यालों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जो बुग्यालों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है।
पानी के बहुत बड़े रिचार्ज टैंक
हिमालय में मौजूद हजारों ताल, झील और कुंड पानी के बहुत बड़े रिचार्ज टैंक हैं। इनके कारण ही हिमालय से निकलने वाली नदियाँ वर्षभर सदानीर रहती है। साथ ही हिमालय में विचरण करने वाले जानवरों, पशु – पक्षियों से लेकर सैलानियों के लिए प्यास बुझाने के स्रोत होते हैं। ऐसे में इन रिचार्ज टैंको का सूखना भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।
बुग्यालों पर आवाजाही के लिए बने बुग्याल नीति!
उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में हिमशिखरों की तलहटी में जहाँ टिम्बर रेखा (यानी पेडों की पंक्तियाँ) समाप्त हो जाती हैं, वहां से हरे मखमली घास के मैदान आरम्भ होने लगते हैं। आमतौर पर ये ८ से १० हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित होते हैं। गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। कई बुग्याल तो इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि अपने आप में पर्यटकों का आकर्षण बन चुके हैं। लेकिन कोई स्पष्ट नीति न होने से इन बुग्यालों में अनियंत्रित आवाजाही और दोहन हो रही है। जिससे बुग्याल संकट में हैं। इसलिए बुग्यालों के लिए स्पष्ट नीति तैयार हो।
क्या है बुग्याल
बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है। स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिए ये चरागाह का काम देते हैं तो बंजारों, घुमन्तुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए आराम की जगह व कैम्पसाइट का, गर्मियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ़ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग और अन्य बर्फानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं। गढ़वाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर इस प्रकार के बुग्याल मिल जाएंगे। जब बर्फ़ पिघल चुकी होती है तो बरसात में नहाए वातावरण में हरियाली छाई रहती है। पर्वत और घाटियां भांति-भांति के फूलों और वनस्पतियों से लकदक रहती हैं। अपनी विविधता, जटिलता और सुंदरता के कारण ही ये बुग्याल घुमक्कड़ी के शौकीनों के लिए हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। मीलों तक फैले मखमली घास के इन ढलुआ मैदानों पर विश्वभर से प्रकृति प्रेमी सैर करने पहुँचते हैं। इनकी सुन्दरता यही है कि हर मौसम में इन पर नया रंग दिखता है। बरसात के बाद इन ढ़लुआ मैदानों पर जगह-जगह रंग-बिरंगे फूल खिल आते हैं। बुग्यालों में पौधे एक निश्चित ऊँचाई तक ही बढ़ते हैं। जलवायु के अनुसार ये अधिक ऊँचाई वाले नहीं होते। यही कारण है कि इन पर चलना बिल्कुल गद्दे पर चलना जैसे लगता है।
ये है चंदन नयाल
उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के ओखलकांडा ब्लाॅक के ग्राम नाई के तोक चामा निवासी 30 साल का चंदन नयाल, बिना किसी हो-हल्ला, शोर-शराबे, चमक-धमक, दिखावे से इतर चुपचाप प्रकृति को अपने हाथों से संवार रहा है। इस युवा नें 10 साल में 61000 पौधे स्वयं और 1 लाख ले अधिक विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से पेड लगायें है और 6 हजार से अधिक चाल खाल खंतिया तैयार करके वर्षा का जल संग्रहण करके पेड और जंगलों को नवजीवन दिया है। चंदन नें पेड़ों के लिए अपना शरीर भी दान करके एक मिशाल पेश की है। चंदन नें 50 हजार से अधिक पौधों की नर्सरी तैयार की है, जिसमें 30 हजार जंगली पौधे बांज, खरसू , तेजपत्ता, पदम आदि जबकि 20 हजार फलदार पौधे लगाए गए हैं। चंदन नयाल अपनी मां के निधन के बाद से ही प्रकृति को ही अपनी मां और ईश्वर मानते हैं। उन्होंने पेड़ो के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है और अपना शरीर भी हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया है। शरीर दान करने पीछे उद्देश्य है कि इस दुनिया से जाने के बाद उनकी खातिर एक छोटा सा पेड़ भी न कटे। चंदन नें विगत 10 सालों में 6 हजार से अधिक चाल खाल तैयार करके वर्षा के जल संग्रहण से सूखे जलस्रोत, पेड़ और जंगलों को नवजीवन दिया है।
पर्यावरणविद् चंदन नयाल ने कहा की सूखे वेदनी कुंड की वेदना नें बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है। यदि समय रहते चेते नहीं तो आने वाले दिनों में कहीं हम इन बुग्यालों को खो न दें। आवश्यकता है इन बुग्यालों को बचाया जाय। अब प्री मानसून और फिर मानसून में बदरा झमाझम से बरसेंगे। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए की वेदनी बुग्याल का वेदनी कुंड एक बार फिर पानी से भर जाय।