आखिर क्यों दरक रहे उत्तराखंड के पहाड़ ?
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएं कोई नई बात नहीं है, लेकिन जिस तेजी से पिछले कुछ दिनों में लैंडस्लाइड की घटनाएं देखने को मिली हैं। वो तस्वीरें बेहद चिंताजनक हैं।
ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, जिनको देखकर डर लगता है। ये डरावनी तस्वीरें उत्तराखंड के लगभग हर कोने से आ रही हैं। सवाल यह है कि आखिर इन दरकते पहाड़ों का राज क्या है? क्यों ये पहाड़ भरभराकर गिर रहे हैं? ऐसा क्या है कि पूरे के पूरे पहाड़ कुछ ही सेकेंड में बिखर रहे हैं?बीते कुछ वर्षों में हम अक्सर उत्तराखंड के पहाड़ों के दरकने, भयावह बाढ़ आने या किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा के बारे में सुनने आ रहे हैं। बीते एक दशक में उत्तराखंड में पहाड़ों के टूटने की घटना अचानक बढ़ गई है और अब हाल ही में जोशीमठ जैसे प्रमुख धार्मिक स्थल के धंसने की खबर ने सभी को चिंता में ला दिया था।
फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने के बाद भारी तबाही हुई थी और इस त्रासदी में कई लोगों की जान चली गई थी। तब ग्लेशियर टूटने के कारण तपोवन में एनटीपीसी की टनल में कई मजदूर फंस गए थे। वहीं कुछ पर्यावरणविदों का कहना है कि साल 2021 में चमोली जिले में रांति पहाड़ का 550 मीटर चौड़ा हिस्सा टूट गया था इसके चलते ही तपोवन घाटी में काफी तबाही हुई। दुनिया भर के पहाड़ों में ऐसी घटनाओं का होना सामान्य और प्राकृतिक बात है। इसमें हैरान नहीं होना चाहिए। धरती के दूरदराज के इलाकों में लगातार पर्वतों के टूटने की प्रक्रिया चलती रहती है लेकिन बीते कुछ सालों से इस प्रक्रिया में काफी तेजी आई है। पहाड़ी इलाकों में हवाएं भी काफी तेज चलती है और सैकड़ों सालों में हवा के तेज थपेड़ों के कारण भी चट्टानें कमजोर होती जाती है और पहाड़ की चट्टान अंदर से धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है और इस कारण से पहाड़ टूटने लगते हैं। पहाड़ों में कमजोर करने में भूगर्भीय हलचल भी अहम भूमिका निभाती है। अब हुए कई शोध में पता चला है कि हिमालय पर्वत की ऊंचाई लगातार बढ़ते जा रही हैं और उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार ही भूगर्भीय हलचल होती रहती है, जिसके कारण पहाड़ों की चट्टानें दरकने लगती है। उत्तराखंड में पहाड़ों के टूटने या गिरने के ये तो प्राकृतिक कारण थे, लेकिन बीते एक दशक में पहाड़ी इलाकों में मानवीय गतिविधि बढ़ने के कारण भी पहाड़ों के टूटने की प्रक्रिया में तेजी आई है। पर्यावरणविदों के मुताबिक लगातार तेज हवा, धूप, बारिश, भूगर्भीय हलचल के कारण पहाड़ों में जो दरारें बनने लगती है। उनमें रॉक फॉरमेशन या सेडिमेंट फारमेशन बनने लगता है और एक समय ऐसा आता है जब पहाड़ टूट जाता है। उत्तराखंड के चमोली या अन्य जिलों में लगातार जो पहाड़ों के टूटने का क्रम जारी है, उसके पीछे दरअसल मानवीय गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं। पहाड़ी इलाकों में लगातार हो रहे निर्माण कार्यों, विशाल ड्रिल मशीन चलाने व खनन करने के लिए पहाड़ों की चट्टानों की बीच में स्थित रॉक फॉरमेशन या सेडिमेंट फारमेशन लगातार कमजोर हो रहा है। एक सीमा के बाद यह तनाव झेल नहीं पाता है और पहाड़ टूट कर गिर जाता है। निर्जन इलाकों में इंसान जैसे जैसे घुसेगा, वैसे वैसे ऐसी आपदाओं में बढ़ोतरी होती जाएगी। पर्यावरण के लिहाज़ से यह राज्य बहुत ही नाज़ुक है. भूस्खलन, भूधंसाव, बाढ़, बादल फटने़ व भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के क़हर से यहां तबाही होती रहती रही है। बावजूद इसके यहां मीलों लंबी सुरंग आधारित जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण हो रहा है, सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है.” वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ों की टो कटिंग और ज्यादा बारिश से स्थितियां खतरनाक हो रही हैं। पहाड़ों पर लगातार हो रहे निर्माण के कारण पहाड़ों का पूरा गुरुत्वाकर्षण केंद्र डिस्टर्ब हो गया है।कहा गया है कि पहाड़ तभी टिका रह सकता है, जब उसका गुरुत्वाकर्षण केंद्र स्थिर हो। पहाड़ों पर बेवजह बोझ और तोड़फोड़ से पहाड़ को स्थिर रखने वाला गुरुत्वाकर्षण केंद्र अपनी जगह छोड़ देता है। नतीजा पहाड़ खिसकने लगते हैं, लैंडस्लाइड की घटनाएं होती हैं। उत्तराखंड-हिमाचल में भूस्खलन और पहाड़ों के खिसकने की घटनाएं बढ़ रही हैं। आने वाले दिनों में ऐसी घटनाएं और बढ़ेंगी। चाहे जोशीमठ हो, नैनीताल, मुनस्यारी, धारचूला या व्यास घाटी का गर्ब्यांग कस्बा, इन सब जगहों पर जो कुछ हो रहा है, वह संकेत कर रहा है कि प्रकृति से छेड़छाड़ बंद होनी चाहिए।