छोटी-छोटी बातों पर ,
जब मैं रूठ जाती थी।
कितने प्यारे दिन थे वो ,
जब मां आकर मनाती थी।।
बिना शर्त के जब जिंदगी ,
मुझको गले लगाती थी।
कितने प्यारे दिन थे वो,
जब हर उलझन मां सुलझाती थी।।
थकान नहीं जब मां की थपकी ,
मुझे रातों में सुलाती थी।
कितने प्यारे दिन थे वो,
जब उमंगे मुझे जगाती थी।।
संगी साथियों, मित्रों संग जब ,
मैं चिड़ियों सी चहचहाती थी।
कितने प्यारे दिन थे वो जब,
हर घड़ी गुनगुनाती थी।।
बाल दिवस का शुभ अवसर,
फिर यादें वही ले आया है।
जिसमें सबसे ज्यादा हसीन ,
वक्त मैंने बिताया है।।
ताउम्र ढूंढने पर भी जो,
फिर वापस नहीं आ पाता है
वो खुशियों का वक्त ही मित्रों,
बालपन कहलाता है।।
स्वरचित सुनीता सेमवाल “ख्याति”
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड