उत्तरकाशी : करोड़ों खर्च के बाद फिर दरकने लगा वरुणावत, बरस रहे पत्थर, भाग रहे लोग

Team PahadRaftar

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तरकाशी : 2003 में उत्तरकाशी शहर आपदा का बड़ा दंश झेल चुका है. तब वरुणावत पर्वत दरकने लगा था. उसे समय का यह भूस्खलन इतना भयावह था कि पूरे शहर पर संकट खड़ा हो गया था. शहर के ऊपर से वरुणावत पर्वत का हिस्सा धंसा, जिससे काफी जान माल का नुकसान हुआ था, अब एक बार फिर यह पहाड़ दरक रहा है.एनडी तिवारी ने लिया था एक्शन साल 2003 में उत्तरकाशी के बिल्कुल ऊपर मौजूद वरुणावत पर्वत ढहने लगा था. धीरे-धीरे पूरा पहाड़ शहर के ऊपर गिरने लगा था. जिसे देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी सरकार ने तत्काल एक्शन लिया. उन्होंने 250 करोड़ की लागत से पूरे वरुणावत पर्वत का ट्रीटमेंट करवाया. लगातार कमजोर होते वरुणावत पर्वत के चलते एक अंडरग्राउंड सुरंग भी बनाई गई. जिससे आने जाने वालों के ऊपर जोखिम को कम किया जा सके. उसके बाद लगातार यहां पर सरकारों ने अपनी निगरानी रखी. उत्तरकाशी में करीब तीन सौ करोड़ खर्च कर वरूणावत पर्वत का ट्रीटमेंट किया गया पर इसके बावजूद वरूणावत की ‘भूस्खलन आफत’ नीचे बसे लोगों पर फिर बरसने लगी है. मामला वरुणावत पर्वत के ताम्बाखानी वाले हिस्से में भू-स्खलन का है. इस भूस्खलन के चलते वरुणावत पर्वत का एक प्लेटफॉर्म भी दरकने लगा है. एक गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक इस प्लेटफॉर्म का ताम्बाखानी वाला हिस्सा भूस्खलन के चलते एक ओर धंसने लगा है.

रिपोर्ट के बाद 282 करोड़ के वरुणावत उपचार कार्य की स्थिरता को लेकर सवाल उठने लगे हैं. गंगा भागीरथी के तट पर वरुणावत पर्वत की तलहटी में बसा उत्तर की काशी माना जाने वाला उत्तरकाशी कभी अपनी प्राकृतिक सुंदरता बसासत के लिए जाना जाता था. सितंबर 2003 में वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर भू-स्खलन शुरू हुआ तो फिर पूरे एक माह तक प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया.
बिन बारिश के पूरे एक महीने तक भूस्खलन होता रहा. हजारों टन मलबा बोल्डर रिहायशी क्षेत्र में आ गिरा. दर्जनों होटल, आवासीय भवन मलबे में दबकर जमींदोज हो गए. लोग कहते हैं इस भूस्खलन ने उत्तरकाशी शहर का भूगोल बदल डाला था. इस भीषण त्रासदी से उभरने के लिए तब तत्कालीन केंद्र सरकार ने वरुणावत पर्वत उपचार और प्रभावितों के पुनर्वास के लिए 282 करोड़ का पैकेज दिया था. 2004 से वरुणावत पर्वत का उपचार कार्य शुरू हुआ. समुद्र तल से करीब 1700 से लेकर 1800 मीटर की उंचाई पर किसी पर्वत के भूस्खलन क्षेत्र के ट्रीटमेंट का यह उत्तराखंड में पहला प्रयोग था. भारी भरकम बजट और अनेक अनियमितताओं के कारण ट्रीटमेंट का यह कार्य शुरू से ही विवादों और चर्चाओं में रहा था. ट्रीटमेंट का कार्य करीब चार-पांच सालों तक चलता रहा. वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर करीब 16 से 17 सीढ़ीनुमा प्लेट्फ़ॉर्म बनाकर उपचार कार्य किया गया. बाद के वर्षों में बिना पूर्ण कार्य किए ही ट्रीटमेंट के इस कार्य को समेट लिया गया.पूरी तरह से सीमेंट कंक्रीट का हो चुके वरुणावत पर्वत पर जल निकासी के लिए नालियां बनाई गई. लेकिन इन्हें सही अंजाम तक नही पहुंचाया गया. पर्वत के दूसरे हिस्से, ताम्बाखानी में इन नालियों को खुला छोड़ दिया गया. अब यही नालियां भूस्खलन का कारण बन रही हैं. बुधवार को हुए भूस्खलन के बाद जब जिलाधिकारी की मौजूदगी में विशेषज्ञों ने वरुणावत पर्वत का दौरा किया तो कईं खामियां सामने आईं.करीब बीस मीटर उंचाई से बेहद तीव्र गति से पानी गिरने के कारण पहाड़ पर मिट्टी और चट्टाने दरक रही हैं. यही नहीं इसके कारण उपचारित हिस्से के एक प्लेटफॉर्म पर भी दरारें आ गई हैं. यदि इसका ठोस उपचार नहीं किया गया तो भविष्य में यह प्लेटफॉर्म भी भूस्खलन की जद में आ जाएगा. एक बार फिर पूरा शहर खतरे की जद में होगा.फिलहाल ताम्बाखानी वाले हिस्से में भूस्खलन के कारण इसके ठीक नीचे स्थित गंगोत्री हाइवे को बंद कर दिया गया है. इस हिस्से में बरसात तक किसी भी तरह के आवागमन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है. यहां लोगों को अब मोटर सुरंग से ही आवागमन करना होगा. गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग व गोफियारा कालोनी में सड़कों पर खड़े कई वाहन मलबे में दब गए हैं।
वाहन स्थानीय लोगों के बताए जा रहे हैं। फिलहाल जनहानि की सूचना नहीं है। भटवाड़ी रोड व गोफियारा जल संस्थान कालोनी के निकट रहने वाले एक दर्जन से अधिक परिवारों को काली कमली धर्मशाला में शिफ्ट किया गया है। जिलाधिकारी एवं अन्य अधिकारी, जनपद आपातकालीन परिचालन केंद्र से स्थिति पर नजर रख रहे हैं। जिलाधिकारी ने बताया कि भूस्खलन से प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। एसडीआएफ व प्रशासन की टीम गोफ़ियारा क्षेत्र में मौजूद हैं। जिलाधिकारी ने अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा की। साथ ही किसी भी संभावित स्थिति से निपटने की रणनीति पर विचार विमर्श किया गया। वरूणावत पर्वत से हुए भूस्खलन ने 21 साल बाद एक बार फिर लोगों को डरा दिया और वर्ष 2003 में लगातार हुए भूस्खलन की कड़वी यादों को ताजा कर दिया। उस दौरान लंबे समय तक वरूणावत से भूस्खलन होता रहा था। वरुणावत पर्वत की तलहटी में उत्तरकाशी शहर बसा हुआ है और इस पर्वत के ‘ट्रीटमेंट’ के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने करीब 250 करोड़ रुपये से अधिक का पैकेज दिया था। मंगलवार रात काफी देर तक भूस्खलन होने तथा पत्थर गिरने की घटना से लोग सहम गए। ताजा भूस्खलन ने वरुणावत पर्वत पर किए गए ‘ट्रीटमेंट’ कार्यों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)।

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