बेडू ऐतिहासिक सम्मेलन का गवाह बनेगा उत्तराखंड
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
जी-20 की बैठक में शामिल होने वाले देश-विदेश के मेहमान उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोकधुन बेड़ू पाको बारोमासा का
आनंद ले सकेंगे। बेडू एक ऐसा फल है जिसने देश ही नहीं विदेशों तक में अपनी पहचान बनाई है जिसका श्रेय जाता है स्व बृजेन्द्र लाल शाह को आइए जानते है कैसे।
वर्ष 1952 में नैनीताल के राजकीय इंटर कॉलेज से पहली बार एक लोकगीत “बेडू
पाको बारामासा” का प्रसारण हुआ कुछ समय बाद एक अंतरराष्ट्री सम्मेलन में भी इस गीत से जनो को सम्मानित किया।
जिसकी वजह से विश्व में इस लोकगीत को पहचान मिली। भयेड़ी गांव के मूलवासी प्रसिद्ध बांसुरी वादक मोहन जोशी
बांसुरी और पारंपरिक लोकवाद्य यंत्र बिणाई पर लोकधुन प्रस्तुत करेंगे। कार्यक्रम के दौरान वह अपने बनाए हुड़के
की थाप से भी देश-विदेश के मेहमानों का मनोरंजन करेंगे।उत्तराखंड राज्य में कई प्राकृतिक औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो हमारी सेहत के लिए बहुत ही अधिक फायदेमंद होती हैं। बेडू मध्य हिमालयी क्षेत्र के जंगली
फलों में से एक है। समुद्र के स्तर से 1,550 मीटर ऊपर स्थानों पर जंगली अंजीर के पौधे बहुत ही सामान्य होते हैं। यह गढ़वाल और कुमाऊँ के क्षेत्रों में इनका सबसे अच्छे से उपयोग किया जाता है। जैसा की उक्त गानों की
पंक्तियों में आपने पढ़ा की बेडू पाको बारह मासा, इन पंक्तियों में ही इस के उपलब्धता के रहस्य छुपे हैं। बेडू सालभर उगने वाला फल है। यदि हम उत्तराखंड के परपेक्ष्य में बात करे तो बेडू को स्थानीय भासा में “ तिमला”
भी कहा जाता है। हालाँकि ये तिमले से भिन्न है क्यूंकि तिमला पक कर लाल हो जाता है जबकि बेडु काला । अक्सर ये पेड़ जंगलों में बहुत कम पाए जाते हैं। गाँवों के आसपास, बंजर भूमि, खेतों आदि में उगते हैं। यह मीठा और रसदार होता है, जिसमें कुछ कसैलापन होता है, इसके समग्र फल की गुणवत्ता उत्कृष्ट है।बेड़ू में पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। यह फल औषधीय गुणों से भी भरपूर है। यह कई बीमारियों से लड़ने में मददगार है। इसमें विटामिन सी, प्रोटीन, वसा, फाइबर,सोडियम, फास्फोरस,कैल्शियम और लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। बेडु के फल सर्वाधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ होने के साथ – साथ इसमें बेहतर एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाये जाते हैं। जिसकी वजह से बेडु को कई बिमारियों जैसे तंत्रिका तंत्र विकार तथा जिगर की बिमारियों के निवारण में भी प्रयुक्त किया जाता है। बेडू का उपयोग वसंत की प्रारंभिक सब्जी के रूप में भी किया जाता है। उन्हें पहले उबाला जाता है और फिर निचोड़ कर पानी निकाला जाता है। फिर उनसे एक अच्छी हरी सब्जी तैयार की जाती है। इसके फल कच्चा मीठा रसीला होता है। बिना फलों और युवा अंकुरों को पकाया
जाता है और सब्जी के रूप में भी खाया जाता है। इस फल की खासियत को देखते हुए स्थानीय बोली में एक गीत भी खूब प्रचलित है। जिसमें एक पंक्ति में बताया गया है बेडू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको
चौता मेरी छैला अर्थात बेडू 12 महीनों पकता है। यह गीत विश्व में उत्तराखंड के लोगों के लिए खास प्रसिद्ध है।बेडू फल जून जुलाई में लगता है एक पूर्ण विकसित जंगली अंजीर का पेड़ अनुकूलित मौसम में 25 किलोग्राम
के आस पास फल देता है। बीज सहित संपूर्ण फल खाने योग्य होता है। बेडू के पत्ते जानवरों के लिए चारे का काम करती है यह दुधारू पशुओं के लिए काफी अच्छी मानी जाती हैं, कहा जाता है कि बेडू के पत्ते दुधारू पशुओं
को खिलाने से दूध में बढोतरी होती है।बेडू एक बहुत ही स्वादिष्ट फल है। पहाड़ी क्षेत्रों में सभी के द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। बेडू फल पकने के बाद एक रसदार फल की भाती होता है। इस फल से विभिन्न उत्पादों, जैसे स्क्वैश, जैम और जेली बनाने के काम भी आता है। बेड़ू जितना स्वादिष्ट होता है, उतना ही इसमें शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। बेड़ू (पहाड़ी अंजीर) का फल औषधियों गुणों से भरपूर है. यह कई बीमारियों में काम आता है। इसमें विटामिन सी, प्रोटीन वसा, फाइबर, सोडियम, फासफोरस, कैल्शियम और लोह तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. शरीर के विकास के लिए यह सभी तत्व जरूरी हैं. साथ ही अनेकों बीमारियां भी इस फल के सेवन से दूर होती हैं। न्यूट्रिशन एक्सपर्ट ने इसके फायदे बताते हुए इससे भविष्य में रोजगार के अवसर
बढ़ाने की ओर ध्यान देने की बात कही है। बेडू का उत्तराखंड की संस्कृति से कितना लगाव था इसका अंदाजा आप पौराणिक गीतों से भी लगा सकते हैं भले ही बेडू फल अधिकांश लोगो ने देखा ना हो शायद खाया भी ना हो फिर भी इस फल ने विश्व भर में पहचान बना ली है। उत्तराखंड के अलावा यह फल हिमाचल,कश्मीर तथा नेपाल में भी पाया जाता है लेकिन जितनी ख्याति इस फल को उत्तराखंड में मिली उतना कहीं नहीं मिली। बेडू पाको बारामासा उत्तराखंड में गाया जाने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है। बेडू पाको बारामासा लोकगीत को उत्तराखंड की पहचान
के तौर पर देखा जाता है। किसी राष्ट्रीय मंच पर संभवतः इस लोकगीत पहली बार साल 1955 में गाया गया. मौका था रूस से आए दो मेहमानों ख्रुश्चेव और बुल्गानिन का भारत में भव्य स्वागत का. इस लोकगीत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले शख्स थे।