देश को पानी पिलाने वाला उत्तराखंड रहेगा प्यासा, सूख रहे हैं प्राकृतिक जलस्रोत
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पिछले वर्षों की अभूतपूर्व बाढ़, सूखा और बेतहाशा पानी से होने वाली घटनाएं अप्रत्याशित नहीं, बल्कि मानव द्वारा दशकों से चली आ रही पानी की बदइंतज़ामी से होने वाली सिस्टेमेटिक क्राइसेस का नतीजा हैं। यह कहना है ग्लोबल कमीशन ऑन इक्नोमिक्स ऑफ वॉटर रिपोर्ट का। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ पानी का एक टिकाऊ और न्यायपूर्ण भविष्य प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए पानी से सम्बंधित अर्थशास्त्र में बदलाव और हुक्मरानी के पुनर्गठन की ज़रूरत होगी। वैश्विक स्तर पर 2019 में भारत पानी की कमी का सामना करने में 13वें स्थान पर था, और तब से यह रेटिंग केवल बढ़ी ही है। जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ प्रभावी ढंग से नियमों को लागू करने में सीमाएं और उद्योग में पानी की बढ़ती खपत, कृषि, थर्मल पावर जेनेरेशन और शहरी केंद्रों में उपयोग में योगदान ने भारत को सबसे अधिक जल-तनावग्रस्त देशों में से एक बना दिया है। भारत में उपलब्ध जल आपूर्ति 1100-1197 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) के बीच है। (जो कि बढ़ते हुए प्रदूषण की बदौलत कम हो रहा है)। इसके विपरीत, 2010 में 550-710 बीसीएम की मांग 2050 में बढ़कर लगभग 900-1400 बीसीएम तक होने की उम्मीद है। शहरी इलाक़ों में 222 मिलियन से ज़्यादा भारतीय पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। (पानी के दबाव का अर्थ है कि इस्तेमाल के लायक साफ पानी की मात्रा तेजी से घट रही है, जबकि पानी की ज़रूरतें तेजी से बढ़ रही हैं)। ग्लोबल कमीशन ऑन इकोनॉमिक्स ऑफ़ वाटर ने आज “टर्निंग द टाइड: ए कॉल टू कलेक्टिव एक्शन” एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जो दुनिया को खतरे के प्रति सचेत करती है। ये रिपोर्ट विश्व को बढ़ते वैश्विक जल संकट के बारे में बताती है और उन कार्रवाइयों के निर्धारित किए जाने की बात करती है जिन्हें सामूहिक रूप से तुरंत लागू किया जाना चाहिए। जिसकी नाकामयाबी क्लाइमेट एक्शन और संयुक्त राष्ट्र के सभी सतत विकास लक्ष्यों की नाकामयाबी को उजागर करती है। जल संकट ग्लोबल वार्मिंग और जैव विविधता के नुकसान से बंधा हुआ है, जो खतरनाक रूप से एक दूसरे को मजबूत कर कर रहे हैं। इंसानी सरगर्मियां बारिश के पैटर्न को बदल रही हैं, जो सभी स्वच्छ पानी के स्रोत हैं, जिसकी वजह से पूरी दुनिया में पानी की आपूर्ति में बदलाव हो रहा है।मानव इतिहास में पहली बार वायुमण्डलीय जल के संघनित होकर किसी भी रूप में पृथ्वी की सतह पर वापस आने वाले स्वच्छ पानी के स्रोत पर भरोसा नहीं कर सकते। हम पूरे ग्लोबल हाइड्रोलॉजिकल चक्र को बदल रहे हैं।” मिसाल के तौर पर वह जलवायु को लेते हैं। ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्येक 1°C में जल चक्र का लगभग 7% नमी शामिल होती है। ज़्यादा से ज़्यादा चरम मौसम की घटनाओं ये सुपरचार्ज करने के साथ और तेजी से करने में बढ़ावा देता है।’ 2019 में भारत को पानी की कमी का सामना करने के मामले में विश्व स्तर पर 13वां स्थान दिया गया था, और तब से यह रेटिंग केवल बढ़ी ही है। जलवायु परिवर्तन के अलावा क़ायदे क़ानून की पाबंदीगी को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाना देश में पानी की क़िल्लत को और बढ़ा रहा है। उद्योग, कृषि, ताप विद्युत उत्पादन और शहरी केंद्रों में दिन ब दिन इस्तेमाल हो रहे पाने की बढ़ता जा रहा उपयोग भारत में पाने की क़िल्लत होने में योगदान देता है और उसे उच्चतम जल-तनावग्रस्त देशों में से एक बनाता है। भारत में उपलब्ध पानी की आपूर्ति 1100-1197 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) के बीच है। इसके विपरीत, पानी की मांग 2010 में 550-710 बीसीएम से बढ़कर 2050 में लगभग 900-1400 बीसीएम होने की उम्मीद है। ऐसे में ज़्यादातर0 शहरी क्षेत्रों में 222 मिलियन से अधिक भारतीय पानी की गंभीर कमी का सामना करेंगे। (जल तनाव का मतलब है कि इस्तेमाल करने लायक़ या स्वच्छ पानी की मात्रा तेजी से कम हो रही है, जबकि पानी की आवश्यकताएं हैं घातीय रूप से बढ़ रहा है। पानी के स्ट्रेस के बढ़ते अनुभवों को दर्शाता है। जानकारी से पता चलता है कि प्रति वर्ष चार महीने और अधिक के लिए, लैंडस्केप का 74% पानी के स्ट्रेस का अनुभव कर रहा है और शहरी केंद्र वर्ष के अधिकांश हिस्से में इसका अनुभव कर रहे हैं। इसके अलावा, वाटर स्ट्रेस से स्तर और जनसंख्या प्रभावित हुई है जिसने परिस्थितियों को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है, स्वच्छ गंगा मिशन इसका एक उदाहरण है। भारत में जल संकट के बारे में ऐसी मालूमात कोई नई नहीं है। हर गर्मियों में पानी की कमी और शहरों में पानी की बढ़ती कीमतों की खबर और यहां तक कि गांवों में वाटर सप्लाई के लिए पानी की गाड़ियां भेजने की खबर आती है। भारत जिस संवृद्धि और विकास को प्राप्त करना चाहता है, उसके प्रदूषण और अपशिष्ट जल नियमों के ठोस कार्यान्वयन और कृषि और उद्योग में पानी की खपत के संरक्षण के लिए अधिक मजबूत उपाय होने तक ये सीमित रहेंगे। देश को पानी पिलाने वाला उत्तराखंड रहेगा ‘प्यासा’, सूख रहे हैं प्राकृतिक जलस्रोत उत्तराखंड के लोकगायक का एक गीत है- गंगा जमुना जी का मुल्क मनखी घोर प्यासाकहने को तो ये गीत सालों पहले पिछली शताब्दी में गाया गया था. लेकिन इसकी बातें अब पूरी तरह सच साबित हो रही हैं। जी हां देश के अनेक राज्यों की प्यास बुझाने वाली गंगा और यमुना नदियों के प्रदेश के लोगों के हलक पानी के बिना सूख रहे हैं। स्प्रिंग्स का पानी न केवल साल भर बहने वाली नदियों में मिल कर उनके जल प्रवाह को बढ़ाने में सहायता करता है अपितु अनेकों छोटी नदियों को भी जन्म देता है साथ ही जंगलों में जंगली जानवरों के लिए भी जल स्रोत का मुख आधार हैं.परंतु आज अवैज्ञानिक ढंग से पहाड़ों में होते विकास तथा लगातार होते जलवायु परिवर्तन का सीधा असर इस प्राकृतिक स्रोतों (स्प्रिंग्स) के जल बहाव पर पड़ा है। विकास के लिए लगातार कटते हरे जंगल तथा तेजी से होते कंक्रीट के जंगलों का विकास, स्प्रिंग्स के जल बहाव मे आने वाली कमी के प्रमुख कारण हैं।आज हालत ये है कि वर्षा तो होती है परंतु वर्षा का जल भूमि मे रिसने की बजाए यूं ही सतह के उपर तेजी से बहकर नष्ट हो जाता है, क्योंकि जो वृक्ष वर्षा जल के बहने की गति को कम करते हैं तथा अपनी जड़ों की सहायता से वर्षा जल को ज़मीन की गहराइयों में रिसने मे मदद करते हैं आज वे वृक्ष तेज़ी से कट रहे हैं। जिस कारण न केवल भू जल स्तर घट रहा है साथ ही जंगलों की उपजाऊ मिटटी भी पानी के तेज बहाव के साथ बह जाती है। इस घटते भू जल स्तर के कारण आज कई स्प्रिंग्स या तो सूख गए हैं या फिर उनका जल बहाव घट गया है। अत: जल प्रबंधन की परिपाटी का उच्च स्तर तथा धार्मिक गौरव व आध्यात्मिक महत्त्व को समेटे मुकद्दस पारंपरिक जलस्रोतों का अस्तित्व बचाना होगा। पुरखों की अमूल्य विरासत पेयजल तंत्र की उत्तम व्यवस्था पनघट संस्कृति के जीर्णोद्धार के लिए यदि सरकारी दरवाजे खुले तो जल संकट का यकीनी तौर पर समाधान हो सकता है।