हिमालयी राज्यों में वन भूमि पर सबसे अधिक अतिक्रमण वाला उत्तराखंड तीसरा राज्य

Team PahadRaftar

हिमालयी राज्यों में वन भूमि पर सबसे अधिक अतिक्रमण वाला उत्तराखंड तीसरा राज्य

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में वन भूमि पर अवैध कब्जों के मामले बढ़ रहे हैं। प्रदेश में 10,649 हेक्टेयर भूमि पर अवैध अतिक्रमण का खुलासा हुआ है। हिमालयी राज्यों की सूची में वन भूमि पर सबसे अधिक अतिक्रमण वाला उत्तराखंड तीसरा राज्य है।

सबसे अधिक वन भूमि जम्मू कश्मीर राज्य में अतिक्रमण है। वहां 16512.39 हेक्टेयर भूमि पर कब्जे हुए हैं। मिजोरम दूसरे स्थान पर है जहां 10852.80 हेक्टेयर वन भूमि अवैध अतिक्रमण की जद में है।वन एवं पर्यावरण के क्षेत्र में
उत्तराखंड का देश में विशिष्ट स्थान है। बढ़ती आबादी और नई बसावटों के साथ वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण के मामले भी बढ़ रहे हैं। पिछले दिनों लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने राज्यवार वनों में अवैध अतिक्रमण के बारे में जानकारी दी। इससे खुलासा हुआ कि पिछले दो दशक में उत्तराखंड में वन भूमि पर कब्जे बढ़
रहे हैं।राज्य का वन विभाग भी मान रहा है कि जंगलात की भूमि पर अवैध अतिक्रमण हुए हैं।कुछ इलाकों में वन भूमि की लीज पूरी हो चुकी है और लेकिन भूमि वन विभाग को लौटाए जाने पर नई अड़चन पैदा हो रही है। इसकी बड़ी वजह राज्य गठन के बाद वन भूमि व उसके आसपास इलाकों में नई बसावटें हैं, जिनका लगातार फैलाव हो रहा है। वन महकमे और केंद्र सरकार को ऐसे प्रकरणों के समाधान निकालने हैं। वन भूमि पर बसी आबादी भी बुनियादी

सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रही है। उत्तराखंड राज्य का भौगोलिक क्षेत्र 53,483 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 26,547 वर्ग किमी आरक्षित वन है, जबकि 9,885 वर्ग किमी संरक्षित वन हैं। 1568 वर्ग किमी अवर्गीकृत वन भी हैं। इस प्रकार राज्य में अभिलिखित वन क्षेत्र 38,000 किमी है।राज्य में कई स्थानों पर वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण है। कुछ इलाकों में वन भूमि लीज पर दी गई थी। वहां लीज की अवधि पूरी हो गई है। लेकिन इस बीच उस भूमि पर हजारों की संख्या में परिवारों की बसावट हो चुकी है। इस तरह के मामलों के समाधान के प्रयास हैं। वन विभाग की जमीन पर अतिक्रमण के मामले वर्षों से चल रहे हैं। आबादी से सटी वनभूमि के
अलावा घने जंगलों तक में कब्जा हुआ है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर बड़ा अभियान कभी नजर नहीं आया।जंगल यानी सिर्फ वन विभाग का स्वामित्व। यहां हेक्टेयरों में जमीन पर कब्जा होने के साथ मजारें भी खड़ी हो जाती है। लेकिन वन विभाग के अधिकारी कथित तौर पर अनजान बने रहते हैं।बाघ-हाथी, गुलदार, पक्षी और दुर्लभ वनस्पतियों के जंगल को बचाने की सुध तब आई, जब सीएम सख्त हुए। इसी वजह से वन विभाग के अधिकारी अब अतिक्रमणकारियों के पीछे दौड़ते नजर आ रहे हैं। प्रदेश सरकार द्वारा अवैध धार्मिक स्थलों के खिलाफ जांच और कार्यवाही के निर्देश दिए गये थे। जिसके बाद जांच हुई तो वन विभाग की जमीन पर सबसे ज्यादा मजारें बनी पाई गईं। वन विभाग ने अपने क्षेत्रों में तहकीकात करवाई तो पता चला कि वन विभाग की जमीनों पर मजारें ही नहीं बल्कि होटल और धर्मशालाएं भी बनी हुई हैं। अब सरकार के निर्देश पर वन मुख्यालय की ओर से नोडल अधिकारी की तैनाती कर दी गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि वन क्षेत्रों में हुए अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई अब तेज हो सकतीहै। बता दें वन विभाग ने अब तक अपनी जमीन पर 300 से ज्यादा धार्मिक स्थलों को चिह्नित किया है। जिनके खिलाफ कार्रवाई के लिए वन विभाग तैयारी में है। इन धार्मिक स्थलों तक पहुंचने के लिए कच्चे-पक्के रास्ते भी बनाए गये हैं। कार्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में मजार बना कर अतिक्रमण किया गया है। भारत के दो राज्यों असम और उत्तराखंड में एक समुदाय की आबादी तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2001 से 2011 के बीच उत्तराखंड में एक समुदाय की आबादी में दो प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस दौरान उत्तराखंड में अतिक्रमण भी बहुत ज्यादा हुआ। उत्तराखंड में बड़ी संख्या में गैर कानूनी मज़ारें बनाकर सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किया जा रहा है।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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