रघुबीर नेगी
उर्गमघाटी : भगवान ध्यानबदरी ने अपने भक्त महर्षि और्व से मिलकर कुशलक्षेम पूछी। भूमि क्षेत्र पाल घंटाकर्ण करेंगे फसल कटाई का दिन तय।
उर्गमघाटी के बांसा गांव में स्थित महर्षि और्व ऋषि की तपस्थली में पवित्र रिंगाल की पूजा – अर्चना कर श्री घण्टाकर्ण भूमियाल देवता के मन्दिर में लायी गयी। गांव के चयनित लोग जिन्हें स्थानीय भाषा में बारी कहा जाता है। उर्वाऋषि से 6 किमी दूर से 18 रिंगाल जिसमें 9 जड़ से उखाड़ कर और 9 काटकर ले आते हैं।
उर्वाऋषि में महर्षि और्व के मंदिर अक्षाणा में भगवान ध्यानबदरी उर्गमघाटी के प्रतिनिधि डिमरी पूजा अर्चना करते हैं महर्षि और्व को खीर का भोग लगाया जाता है, तत्पश्चात भगवान ध्यानबदरी पवित्र रिंगाल के साथ घंटाकर्ण से भेंटकर अपने पार्षद भूमि क्षेत्र पाल को फसल कटाई का दिन तय करने का आदेश देते हैं। और मंदिर ध्यानबदरी उर्गम में विराजमान हो जाते हैं।
शनिवार मंगलवार 2मई को उर्गम घाटी में श्री घण्टाकर्ण भूमियाल देवता फसल काटने का दिन तय करेगें। तथा इस दिन से नवां पूजन तक उर्गमघाटी की सीमा वन क्षेत्र का दिशा बंधन होता है। सुबह चार बजे से घड़ी डाली जाती है घड़ी का अर्थ देवताओं का समय ठीक तय समय पर लोग जौ की बालियां की पूजा कर फसल कटाई शुरू करते हैं।
कथा महर्षि और्व उर्वाऋषि मंदिर
अक्षाणा यानि अक्षोणी सेना भगवान शिव ने यहीं पर अपनी अक्षोणी सेना अपने भक्त वाणासुर को दे दी थी, इसलिए इस स्थान को अक्षाणा कहा जाता है। महर्षि और्व पूर्व जन्म में एक उर्वषी थी जो भगवान विष्णु की जांघ से पैदा हुयी उसने वरदान में भगवान विष्णु का सानिध्य मांगा तब भगवान नारायण ने उसे वरदान दिया कि दूसरे जन्म में जब तुम महर्षि और्व के रूप में जन्म लोगे तो तुम मेरे ही पास रहोगे। मैं स्वयं तुम्हारे पास आऊंगा और फसल काटने से पहले तुम्हारी पूजा होगी। आज भी श्री ध्यान बदरी से भगवान विष्णु के पांच शालिग्राम व धूपपात्र विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पुजारी डिमरी लेकर जाते है और यहां पर भगवान नारायण के साथ महर्षि और्व की पूजा होती है व खीर का भोग लगता है।उर्गम घाटी में मा दक्षिण काली एवं मुव्वा बुग्याल में भगवती मां जगदी की पूजा के बाद देवग्राम उर्गम के बांसा गांव में महर्षि और्व की पूजा अर्चना के साथ वनदेवियों की पूजा होती है। पवित्र रिंगाल घंटा कर्ण मंदिर में पहुंचने के अगले दिन फसल कटाई का दिन तय करते हैं घंटा कर्ण।इस अवसर पर राजेन्द्र रावत, कुंवर सिंह नेगी, इन्द्र सिंह रावत, वीरेंद्र रावत, रमेश, महावीर राणा, पश्वा भूमि क्षेत्र पाल हीरा सिंह चौहान, पश्वा दाणी पंडित अतुल डिमरी उपस्थित रहे।