ऊखीमठ : सुरम्य मखमली बुग्यालों के बीच स्थित मनणामाई तीर्थ के दर्शन से होते हैं मनोवांछित फल की प्राप्ति – खास रिपोर्ट

Team PahadRaftar

लक्ष्मण सिंह नेगी

मनणा माई लोक जात यात्रा पर विशेष

ऊखीमठ : मदमहेश्वर घाटी के रासी गाँव से लगभग 32 किमी दूर चौखम्बा की तलहटी, मदानी नदी के किनारे व सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य विराजमान मनणामाई तीर्थ हिमालय का सुप्रसिद्ध शक्ति पीठ माना जाता है। मनणा का अर्थ है कि मन की कामना को पूर्ण करने वाला। केदारखण्ड के अध्याय 89 के श्लोक संख्या 40 से लेकर 49 तक मनणा माई तीर्थ का विस्तृत वर्णन किया गया है। मनणा माई भेड़ पालकों की अराध्य देवी मानी गयी है। वेद पुराणों में वर्णित है कि महिषासुर राक्षस भगवती काली के भय से हिमालय की ओर अग्रसर हो गया क्योंकि उस महिषासुर राक्षस को शिवजी का वरदान था कि यदि तू युद्ध के समय हिमालय पर्वत को स्पर्श करेगा तो अमर हो जायेगा।

महिषासुर राक्षस के हिमालय की ओर गमन होने का पता जब भगवती काली को लगा तो भगवती काली ने अपने योगमाया से उस भू-भाग को दलदल में तब्दील कर दिया तथा महिषासुर राक्षस दलदल में फंस गया। समय रहते भगवती काली महिषासुर राक्षस के पास पहुंची तथा महिषासुर का वध कर जगत कल्याण के लिए मदानी नदी के किनारे बसे मनणा के बुग्यालों में तपस्यारत हो गयी। तब से यह स्थान मनणामाई तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ। मनणा माई तीर्थ की महिमा का केदार खण्ड में विस्तृत वर्णन करते हुए कहा गया है कि मनणामाई तीर्थ जाने पर मनुष्य स्वस्थ देवी लोक को प्राप्त करता है। शरद व बसन्त ऋतुओं के नवरात्रों में जो मनुष्य भक्ति पूर्वक देवी की पूजा करता है, उसकी पूजा देवता करते हैं। यह तीर्थ समस्त पापों का शमन करने वाला और सकल उपद्रवों का नाश करने वाला है। नित्य दान करने वाले मनुष्य को मनणा माई तीर्थ समस्त ऐश्वर्य देने वाला है। तपस्या की सिद्धि देने वाला यही उत्तम स्थान है।

मनणामाई को भेड़ पालकों की अराध्य देवी माना जाता है। पूर्व में जब क्यूजा घाटी के भेड़ पालक अश्विन माह में बुग्यालों से गाँव लौटते थे तो मनणामाई की मूर्ति को साथ लेकर आते थे मगर धीरे – धीरे भेड़ पालन व्यवसाय में कमी आयी तो भेड़ पालकों ने मनणामाई की मूर्ति को राकेश्वरी मन्दिर रासी में स्थापित करना उचित समझा!। युगों से चली आ रही परम्परा के अनुसार आज भी रासी गाँव के ग्रामीणों के अथक प्रयासों से सावन माह में रासी गाँव से भगवती मनणामाई की लोक जात यात्रा का आयोजन किया जाता है तथा मनणा तीर्थ पहुंचने पर भगवती मनणामाई की विशेष पूजा – अर्चना की जाती है। इस मनणामाई लोक जात यात्रा में ग्रामीणों द्वारा अनेक पौराणिक, आध्यात्मिक व धार्मिक परम्पराओं का निर्वहन आज भी किया जाता है। रासी गाँव के शिक्षाविद रवि भट्ट बताते है कि मनणामाई तीर्थ में पूजा – अर्चना करने से मनुष्य को मनौवांछित फल की प्राप्ति होती है।

उन्होंने बताया कि मनणामाई तीर्थ में भगवती के भक्त को अपार आनन्द की अनुभूति होती है। मनणा माई लोक जात यात्रा समिति अध्यक्ष भगत सिंह बिष्ट ने बताया कि कल से शुरू होनी वाली 6 दिवसीय लोक जात यात्रा की सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी है तथा लोक जात यात्रा सनियारा, पटूडी, शीला समुद्र, कुल्वाणी सहित विभिन्न यात्रा पड़ावों को पार करने के बाद मनणा माई तीर्थ पहुंचेगी तथा वापस रासी गाँव पहुंचने पर मनणा माई लोक जात यात्रा का समापन होगा। कोषाध्यक्ष हरेन्द्र खोयाल ने बताया कि रासी गाँव से मनणामाई तीर्थ के भू-भाग को प्रकृति ने नव नवेली दुल्हन की तरह सजाया व संवारा है इस भूभाग में भटके मन को अपार शान्ति मिलती है। राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि बरसात के समय शीला समुन्द्र से मनणामाई तीर्थ के भू-भाग में अनेक प्रजाति के पुष्प खिलने से ऐसा आभास होता है कि इन्द्र देव के फूलों का बगीचा इसी धरती पर उतर आया हो। बदरी  – केदार मन्दिर समिति पूर्व सदस्य शिव सिंह रावत ने बताया कि रासी से मनणा माई तीर्थ के भू-भाग को प्रकृति ने अपने अनूठे वैभवों का भरपूर दुलार दिया है इसलिए मनणा माई तीर्थ जानी की बार – बार लालसा बनी रहती है।

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