लक्ष्मण नेगी
ऊखीमठ : धार्मिक, पौराणिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक परम्पराओं को अपने आंचल में समेटे केदार घाटी में देव नृत्य आयोजनों की परम्परा युगों पूर्व की है। केदार घाटी में पाण्डव नृत्य, जीतू बगडवाल नृत्य , नाग नृत्य सिद्ववा – विद्धवा नृत्य तथा ऐडी़ आंछरी नृत्य का आयोजन समय – समय पर किया जाता है तथा इन देव नृत्यों से सफल आयोजन में यहां के जनमानस का अहम योगदान रहता है।
केदार घाटी के अलग – अलग स्थानों पर समय – समय पर देव नृत्यों के आयोजन से जहां केदारघाटी का पग – पग भक्तिमय बना रहता है, वहीं ग्रामीणों में प्यार, प्रेम, सौहार्द व भाईचारा बना रहता है। समय – समय पर आयोजित होने वाले देव नृत्यों में प्रवासी व धियाणियों के शामिल होने से देव नृत्यों के आयोजन में अधिक उत्साह व उमंग बनी रहती है।
कुछ देव नृत्यों का आयोजन ढोल – दमांऊ की थाप तो कुछ देव नृत्यों का आयोजन डमरू थाल की थाप पर सम्पन्न होता है। इन देव नृत्यों का आयोजन कुछ गांवों में ग्रामीणों द्वारा निर्धारित तिथि तक होता है तो कुछ गांवों में युगों से चली परम्परा के अनुसार निर्धारित तिथियों तक होता है। केदार घाटी में पाण्डव नृत्य की परम्परा युगों पूर्व की है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद जब पाण्डव गुरु व गोत्र हत्या के निवारण के लिए भगवान शंकर के दर्शन के लिए केदार घाटी होते हुए केदारनाथ धाम गये थे तब से केदार घाटी में पाण्डव नृत्य की परम्परा है। पाण्डव नृत्य में पाण्डवों के अस्त्र – शस्त्र पाण्डव चौक लाना, मोरू नारेण की स्थापना, पाण्डवों का गंगा स्नान, तीर्थ भ्रमण, नगर भ्रमण सहित अनेक परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है।
कुछ गांवों में पाण्डव नृत्य के साथ पाण्डव लीला का भी मंचन किया जाता है। जीतू बगडवाल नृत्य जीतू की जीवनी भर निर्भर है। माना जाता है कि टिहरी जनपद के खैट पर्वत पर ऐडी़ आंछरियों द्वारा जीतू बगडवाल का अपहरण करने के बाद जीतू बगडवाल नृत्य का आयोजन किया जाता है। बगडवाल नृत्य में 6 गते आषाढ महीने में धान की रौपाई के समय जीतू बगडवाल का हरण मुख्य आकर्षण रहा है! जीतू बगडवाल नृत्य में मोलू कामेण, शाली भरणा सहित कई पश्वा नृत्य करते हैं! नाग नृत्य में भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं की महिमा का वर्णन किया जाता है तथा नाग नृत्य में जमुना नदी से गेंद लाना मुख्य आकर्षण माना गया है! नाग नृत्य में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम,नौ नागों के अलावा मालू फुलारी, जिया, बिजोरा, गोरखनाथ सहित अनेक पश्वा नृत्य में शामिल रहते हैं! सिद्ववा – विद्धवा नृत्य में उनके कैलाश भ्रमण का विस्तृत वर्णन किया जाता है। ऐडी़ आंछरी नृत्य मुख्यतः दोष निर्वारण के लिए आयोजित होता है।
मान्यता है कि नौ बहिनें आंछरी व 12 बहिनें फराणी ऊंचे पवित्र स्थानों पर निवास करती है तथा उन पवित्र स्थानों पर जो महिलाएं लाल, पीले वस्त्र पहनकर जाती है ऐडी़ आंछरी उन पर दोष हो जाती है इसलिए ऐडी़ आंछरियों के दोष मुक्त के लिए ऐडी़ आंछरी नृत्य का आयोजन किया जाता है।
मदमहेश्वर घाटी विकास मंच पूर्व अध्यक्ष मदन भटट् ने बताया कि केदार घाटी, कालीमठ घाटी, मदमहेश्वर घाटी व तुंगनाथ घाटी में देव नृत्य की परम्परा युगों पूर्व की है तथा यहाँ के जनमानस द्वारा इन देव नृत्यों की परम्परा को जीवित रखने की सामूहिक पहल समय – समय पर की जाती है। जिला पंचायत सदस्य परकण्डी रीना बिष्ट ने बताया कि युगों से चली आ रही परम्पराओं को जीवित रखने की सामूहिक पहल होनी चाहिए तभी हमारी पौराणिक विरासत जीवित रह सकती है।