रिपोर्ट रघुबीर नेगी
जल संस्कृति की गवाह पंच धारा
उर्गम घाटी की प्रसिद्ध पंचधारा जो आज भी पौराणिक संस्कृति की गवाह है। ऋग्वेद के 7 वां अध्याय में उल्लेख है कि इस धरातल पर अवतरित होकर गंगा हिमालय में विराजमान भगवान भोले शंकर की जटाओं में उलझ कर पांच धाराओं में विभक्त हो गई जो मानव जाति की पापों के निवारण के लिए आज भी इन पंच धाराओ में बहती दिखाई पड़ती है। लोक कथाओं के अनुसार इन धाराओं का निर्माण पाण्डवों ने करवाया था 52 गढ़ों के राजाओ में राजा कनकपाल ने अपनी रानी की सुविधा के लिए इन धाराओं का जीर्णोधार करवाया था।
जो पल्लागढी के समीप रहते थे। तराश कर बनाये गये पत्थरों से निर्मित धारायें आज भी सुरक्षित हैं, जो उर्गम घाटी की ल्यारी थैणा ग्राम पंचायत में कल्पेश्वर मन्दिर मार्ग पर सुराई के वृक्ष तले शिलाओं को सुन्दर तरीके से तराश कर बनाया गया है। जहाँ पर बसे हैं पंचेश्वर महादेव। पंच धारा के निकट ही शान्त रूप में मां दक्षिण काली विराजमान है। गढवाल की संस्कृति परम्परा आस्थाओं में जलधाराओं का महत्वपूर्ण स्थान है।