किसानों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देश के किसानों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। एक तरफ जहां उन्हें मंडियों में फसलों का उचित दाम नहीं मिल रहा है तो वहीं दूसरी तरफ बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। प्रदेश के कई इलाकों में बारिश और ओलावृष्टि से किसानों की कमर टूट गई है। गेहूं और सरसों की फसल तैयार है। कटाई से ठीक पहले बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं और सरसों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। गेहूं की फसल खेतों में गिरने से जहां पैदावार प्रभावित होगी तो वहीं, सरसों का दाना भी गिर जाएगा। साथ ही सब्जी की पैदावार भी इससे प्रभावित होगी। मौसम का बिगड़ा मिजाज न सिर्फ चारधाम यात्रा की तैयारियों में रास्ते का रोड़ा बन चुका है अपितु किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। खास बात यह है कि अभी जल्द इस मौसम में किसी तरह के सुधार की संभावनाएं नजर नहीं आ रही है जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
होली के बाद से ही मौसम का मिजाज इस कदर बिगड़ा है कि आम आदमी यह सोचने पर विवश है कि यह ग्रीष्मकाल है या बारिश का सीजन। मार्च माह में लोगों ने शायद इस तरह का मौसम इससे पहले कभी नहीं देखा है। बारिश ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं। राज्य के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पारा शून्य से भी नीचे पहुंच गया है, वहीं मैदानी क्षेत्रों में बारिश और ओलावृष्टि के कारण पारा सामान्य से 10 से 15 सेंटीग्रेड नीचे लुढ़क चुका है। लोगों ने फिर से गर्म कपड़े निकाल लिए हैं। मौसम विभाग द्वारा जारी किए गए मौसम के ताजा अपडेट के अनुसार अभी राज्य में कुछ दिन ऐसा ही मौसम रहने की बात कही गई है।
बीती रात से राजधानी दून, मसूरी, नैनीताल, हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में झमाझम बारिश हो रही है वहीं उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली सहित तमाम ऊंचाई वाले जिलों में बारिश और बर्फबारी हो रही है। केदारघाटी में हो रही बर्फबारी के कारण तापमान शून्य से नीचे जा चुका है। यहां यात्रा की तैयारियों में जुटे मजदूरों को काम करने में भारी दिक्कतें हो रही है। पैदल मार्ग से बर्फ हटाने का जो काम लगभग पूरा किया जा चुका था वह सब कुछ ताजा बर्फबारी और ग्लेशियर टूटने के कारण चैपट हो चुका है। 12 किलोमीटर लंबे पैदल मार्ग पर फिर बर्फ की मोटी चादर बिछ गई हैं जिसे हटाने का काम बर्फबारी के बीच भी जारी है। भले ही प्रशासन द्वारा दावा किया जा रहा हो कि समय पर काम पूरा कर लिया जाएगा लेकिन मौसम का मिजाज अगर नहीं बदला तो क्या होगा? जबकि चारधाम यात्रा को शुरू होने में अब महज 20कृ25 दिन का ही समय शेष बचा है। यही नहीं वर्षा व बर्फबारी के कारण सड़कों की मरम्मत का काम भी नहीं हो पा रहा है। खासतौर पर बदरीनाथ हाईवे पर कई स्थानों पर सड़क की स्थिति अत्यंत ही खराब है। शासन प्रशासन के सामने सिर्फ रास्तों को ठीक करने की चुनौती नहीं है धामों में यात्रियों के खाने पीने की व्यवस्था के साथ अन्य यात्री सुविधाओं को बहाल करने की भी चुनौती है।
इस बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से अब तक किसानों की तैयार फसलों को 40 से 50 फीसदी तक का नुकसान हो चुका है। सिर्फ मैदानी भागों में ही नहीं पहाड़ी जिलों में भी फल सब्जी की फसलें चौपट हो चुकी हैं। भले ही सरकार द्वारा इसके सर्वे कराने और किसानों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की बात कही जा रही हो लेकिन किसानों को हुए भारी नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। उत्तराखंड देशभर में मौसम का मिजाज बदल गया है। तेज हवाओं के साथ भारी बारिश गर्मी से राहत के साथ-साथ थोड़ी मुश्किलें भी लेकर आई है। खासकर किसानों को तो बेमौसमी बारिश से प्रदेश में मौसम के मिजाज में अचानक आई तब्दीली से भले ही गर्मी से राहत मिली हो, लेकिन बारिश, ओलावृष्टि और तेज हवा से फसलों को नुकसान पहुंचा है। वर्तमान में रबी की मुख्य फसल गेहूं के साथ ही मटर, मसूर, जौ, सब्जियों की फसल खेतों में खड़ी हैं तो सेब समेत अन्य फलों के फूल झड़ने से किसान चिंतित हैं। राज्य में तराई व भाबर क्षेत्र में गेहूं की फसल अप्रैल के दूसरे सप्ताह से कटनी प्रारंभ होती है, जबकि पहाड़ी क्षेत्र में मई में। ओलावृष्टि व तेज हवा ने इन फसलों को अधिक क्षति पहुंचने की सूचनाएं आ रही हैं। कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री के अनुसार खेती-औद्यानिकी पर मौसम की मार के संबंध में आ रही सूचनाओं को सरकार ने बेहद गंभीरता से लिया है। सभी जिलों से रिपोर्ट मिलने पर यह स्पष्ट हो सकेगा कि कहां कितनी क्षति हुई है। इसके आधार पर तय मानकों के तहत प्रभावित किसानों को क्षतिपूर्ति दी जाएगी। फसल के नुकसान के मामले में, जलवायु परिवर्तन और बेमौसम भारी बारिश ने पैदावार में इस बीमारी को घुसेड़ दिया है। “आलू, गोभी, फूलगोभी, मटर जैसी सब्जियों को पाला मार गया है, जबकि गेहूं सूज कर काला पड़ गया है। सेब, बेर, आड़ू जैसे उत्पादों की क़िस्मों को भी नुकसान हुआ हैं। ऐसी उपज के लिए या तो कोई खरीदार नहीं मिलेगा या उनकी कीमते नाममात्र की होंगी।” उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों को मुफ्त कीटनाशक देने चाहिए और साथ ही उनका कर्ज भी माफ़ कर देना चाहिए और सब्सिडी भी दी जानी चाहिए, क्योंकि वे इस साल फसलों में किए गए निवेश को कवर नहीं कर पाएंगे। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सचिव ने कहा कि कृषि और बागवानी के नुकसान के साथ प्राधिकरण का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि नुकसान का मूल्यांकन करना और किसानों को राहत प्रदान करना प्रत्येक जिला मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी है। प्रत्येक जिले से संकलित रिपोर्ट सचिव, कृषि और बागवानी को प्रभावितों को मुआवजे की राशि के वितरण के लिए मानदंडों के अनुसार भेजी जाती है।इस बीच, कृषि और बागवानी मामलों को देखने वाले अधिकारियों को इस मुद्दे को टालते देखा गया खासकर जब किसानों के नुकसान का आकलन या राहत का सवाल आया तो अधिकारी बगले झाँकते पाए गए। जबकि फसल बीमा योजना के नाम पर कंपनियां हजारों करोड़ का मुनाफा कमा रही हैं। मौसम के साथ किसानों को सरकार अनदेखी की मार भी झेलनी पड़ रही है।
लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।