मखमली बुग्यालों से आच्छादित बूढ़ा – मद्महेश्वर धाम में स्वर्ग सा अनुभूति – लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ

Team PahadRaftar

ऊखीमठ। पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विश्व विख्यात भगवान मदमहेश्वर धाम के शीर्ष पर विराजमान का भू-भाग बूढा़ मदमहेश्वर नाम से जाना जाता है। बूढा मदमहेश्वर के तीन ओर का भू-भाग मखमली बुग्यालों तथा एक ओर का भू-भाग भोजपत्रों से आच्छादित है। बूढा़ मदमहेश्वर धाम में ऐडी़, आंछरियों तथा वन देवियों का वास माना जाता है। भगवान मदमहेश्वर की पूजा – अर्चना के बाद बूढा़ मदमहेश्वर की पूजा करने का विधान है। बूढा़ मदमहेश्वर के ऊपरी हिस्से से कई पैदल ट्रैक निकलते हैं जिससे साहसिक पर्यटक समय – समय पर पदयात्रा कर प्रकृति के अनमोल खजाने से रुबरु होते हैं।

बता दे कि मदमहेश्वर धाम से लगभग तीन किमी दूरी तय करने के बाद बूढा़ मदमहेश्वर धाम पहुंचा जा सकता है। बूढा़ मदमहेश्वर धाम से चौखम्बा व हिमालय की चमचमाती स्वेद चादर को अति निकट से देखा जा सकता है। बूढा़ मदमहेश्वर धाम के तीन ओर सुरम्य मखमली बुग्यालों का रूपहला विस्तार है जिस स्पर्श करने पर नर्म नाजुक मखमली घास का एहसास होता है। बूढा़ मदमहेश्वर के तीन ओर फैले बुग्यालों में समय – समय पर ऐडी़ आछरियां तथा वन देवियां नृत्य बिहार करती है। बूढा़ मदमहेश्वर से मदमहेश्वर घाटी की सैकड़ों फीट गहरी खाइयों व असंख्य पर्वत श्रृंखलाओं को दृष्टिगोचर करने से मानव का अन्त करण शुद्ध हो जाता है। बूढा़ मदमहेश्वर धाम के चारों बरसात ऋतु में तरफ विभिन्न प्रजाति के पुष्प खिलने से ऐसा आभास होता है कि सम्पूर्ण इन्द्र लोक इस धरती पर उतर आया हो। भगवान मदमहेश्वर की पूजा – अर्चना के बाद बूढा़ मदमहेश्वर धाम में भी पूजा करने का विधान है। बूढा़ मदमहेश्वर व चौखम्बा के मध्य पनपतिया तथा कांचीनटिडा पर्वत से कई पैदल मार्ग तो है मगर इन पर पैदल सफर करना बड़ा जोखिम भरा है। इन पैदल ट्रैकों से केदारनाथ, बदरीनाथ, उर्गम घाटी तथा पाण्डुकेशर पहुंचा जा सकता है।

 

बूढा़ मदमहेश्वर से लगभग 25 किमी दूरी पर पाण्डव सेरा नामक स्थान है जहाँ पाण्डवों द्वारा बोई गई धान की फसल आज भी स्वत: उग जाती है। लोक मान्यता है कि जब मदमहेश्वर धाम जाने के लिए पैदल मार्ग नहीं था तो जब भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली अपने शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर ऊखीमठ से धाम के लिए रवाना होती तथा इस स्थान पर डोली के विश्राम करने के कारण यह स्थान बूढा़ मदमहेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। मदमहेश्वर धाम के पूर्व प्रधान पुजारी राज शेखर लिंग बताते है कि जो भक्त भगवान मदमहेश्वर की पूजा – अर्चना के बाद बूढा़ मदमहेश्वर की पूजा करते हैं उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् ने बताया कि बूढा़ मदमहेश्वर धाम पहुंचने पर अपार आध्यात्मिक शांति की अनुभूति होती है। प्रधान बुरुवा सरोज भटट् का कहना है कि बूढा़ मदमहेश्वर के धाम तीन ओर फैले मखमली बुग्यालों में पर्दापण करने से ऐसा आभास होता है कि जैसे प्रकृति ने मखमली चादर ओढ़ दी है।

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