ऊखीमठ। मदमहेश्वर घाटी के ग्रामीणों की अराध्य देवी व रासी गाँव में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरों का समापन शनिवार को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के साथ होगा। पौराणिक जागरों के समापन अवसर पर सैकड़ों भक्त भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में एकत्रित होकर मनौती मांगेगे तथा क्षेत्र व विश्व कल्याण की कामना करेगें। भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के बाद ब्रह्म कमल भक्तों को प्रसाद स्वरूप वितरित किये जायेंगे। जानकारी देते हुए प्रधान कुन्ती नेगी ने बताया कि मदमहेश्वर घाटी के ग्रामीणों की अराध्य देवी भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में सावन मास की संक्रांति से पौराणिक जागरो का शुभारंभ किया जाता है तथा प्रतिदिन रात आठ बजे से नौ बजे तक पौराणिक जागरो के माध्यम से तैतीस कोटि दैवी – देवताओं का गुणगान किया जाता है तथा पौराणिक जागरों के गायन से रासी गाँव का वातावरण दो माह तक भक्तिमय बना रहता है!
उन्होंने बताया कि पौराणिक जागरो के गायन में गाँव के बुर्जुगो की भूमिका अहम होती है! राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरो में देवभूमि के प्रवेश द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय की महिमा का गुणगान किया जाता है! उन्होंने बताया कि पौराणिक जागरो के माध्यम से महाभारत का वृतान्त तथा भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के गुणगान करने की भी परम्परा युगों से चली आ रही है! जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरो के गायन में प्रतिभाग करने से आध्यात्मिक शांति मिलती है तथा क्षेत्र में भूत प्रेत की बाधायें नष्ट हो जाती है! ग्रामीण शिव सिंह रावत ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में पौराणिक जागरों का समापन प्रतिवर्ष आश्विन को दो गते को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के साथ होता है इसी परम्परा के तहत शनिवार को भगवती राकेश्वरी की मन्दिर में चलने वाले पौराणिक जागरो का समापन होगा। लक्ष्मण सिंह पंवार ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागर हमारी पौराणिक विरासत है जिनको जीवित रखने की सामूहिक पहल होनी चाहिए तथा प्रदेश सरकार को पौराणिक जागरो के गायन में रूचि रखने वाले व्यक्तियों को मानदेय देने पर विचार करना चाहिए! हरेन्द्र खोयाल ने बताया कि भगवती राकेश्वरी को अर्पित होने वाले ब्रह्म कमल ऊंचाई वाले सुरम्य मखमली बुग्यालों से लाये जाते है तथा ब्रह्म कमल लाने वालों को ब्रह्मचर्य का पालन करने के साथ फलाहार रहना पड़ता है।