हेली कंपनियों का सफर चुनौतियों भरा

Team PahadRaftar

हेली कंपनियों का सफर चुनौतियों का

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

केदारनाथ धाम की विकट भौगोलिक परिस्थितियां व मौसम का पल-पल बदलना रूख हेली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण बनता है। वहीं केदारनाथ की संकरी घाटी के बावजूद हेलिकॉप्टरों एक दिन में ढाई सौ से तीन सौ उड़ानें भरने से अधिक वायु ट्रैफिक भी दुर्घटना का कारण बनता है। एनजीटी व भारतीय वन्यजीव संस्थान के तय मानकों का भी कई बार उल्लंघन हेली कंपनियों द्वारा किया जाता है।केदारनाथ धाम में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के मानकों के अनुसार हेली सेवा का संचालन किया जाता है। डीजीसीए की ओर से केदार घाटी में एक समय में छह से अधिक हेलीकॉप्टरों को उड़ान भरने की अनुमति नहीं है, जिससे शटल की रोस्टरिंग की जाती है। सुरक्षा उपाय के लिए सभी ऑपरेटरों के पास हेलीपैड में अपने कर्मचारी तैनात होने चाहिए, जो सेटेलाइट के माध्यम से एक दूसरे के साथ और हेलीकॉप्टरों के साथ संचार संपर्क में रहते हैं। मौसम संबंधी किसी भी अपडेट नियमित आधार पर भेजा जा सके। हेलीकॉप्टर नियमित अपडेट के लिए एक दूसरी हेली कंपनियों के संपर्क में रहना जरूरी होता है, लेकिन इन नियमों का पालन होता नहीं दिखता है। मौसम अपडेट की भी सही जानकारी हेली कंपनियों के पास नहीं होती है, जिससे कई बार बादलों के बीच हेलीकॉप्टर फंस जाता है।केदारनाथ धाम के लिए हेली सेवाओं का क्रेज दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन हेली सेवाओं करने वाली कंपनियां नियम कानूनों को नजरअंदाज कर हेली सेवाओं का संचालन करती है। हेली सेवाओं को संचालित करने वाली कंपनियों एवं एनजीटी व भारतीय वन्यजीव संस्थान ने भी मानक तय किए गए है। जिनकी कंपनियां धड़ल्ले से अनदेखा करती हैं।हेलीकॉप्टर के हेलीपैड से उड़ान भरने एवं हेलीपैड पर लैंड करने के दौरान ध्वनि का अधिकतम एवं न्यूनतम मापन भी तय किया गया है मगर इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। हेलीकॉप्टर निर्धारित ऊंचाई से कम में उड़ान भर रहे हैं जो कि पर्यावरण एवं वन्य जीवो के लिए हानिकारक है। हेलीकॉप्टर की तेज आवाज से अति संवेदनशील क्षेत्र में प्रवास करने वाले दुर्लभ वन्य जीवों, वनस्पतियों को नुकसान पहुंच रहा है। हेलीकॉप्टर निर्धारित 600 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरनी होती है। हेलीकॉप्टरों की उड़ान की यह ऊंचाई केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के भीमबली में स्थापित मॉनिटरिंग स्टेशन में रिकाॅर्ड हो रही है, लेकिन देखा गया है कि कई बार हेलीकॉप्टर ढाई सौ मीटर पर ही उड़ान भरते हैं। इसको लेकर पूर्व में वन विभाग ने हेली कंपनियों को नोटिस भी जारी किया था।इस वर्ष यात्रा शुरू होने से पहले ही हेलीकॉप्टर से हुई दुर्घटना में एक यूकाड़ा अधिकारी की मौत हो गई। जबकि अभी हेली सेवाएं शुरू भी नहीं हुई थी। यूकाड़ा अधिकारी निरीक्षण के लिए केदारनाथ धाम गया हुआ था। गत वर्ष भी हेली दुर्घटना में पायलट व छह तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी।केदारघाटी में पिछले एक दशक में आठ बड़ी हेली दुर्घटनाएं घटित हो चुकी हैं। वर्ष 2010 की 12 जून को प्रभातम हेली कंपनी के हेलीकॉप्टर से केदारनाथ हेलीपैड पर एक हेली कर्मचारी का सिर कटने से मौत हो गई थी, वहीं दुर्घटना में हेलीकॉप्टर भी क्षतिग्रस्त हो गया था, आक्रोशित जनता ने हेलीकॉप्टर में तोड़ फोड़ करने के साथ ही पायलट की भी जमकर पिटाई की, रात्रि को पुलिस की मदद से पायलट को पालकी में बैठाकर गौरीकुंड लाया गया। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग द्वारा केदारघाटी से केदारनाथ के लिए उड़ान भरने के लिए हेलीकॉप्टर के लिए नदी के तल से 600 मीटर की ऊंचाई तय की गई है। बावजूद, अधिकांश कंपनियां इस नियम का पालन नहीं करती हैं। उनके हेलीकॉप्टर वन क्षेत्र में काफी नीची उड़ान भरते हैं। दरअसल, केदारनाथ धाम में जिस घाटी से होकर हेलीकॉप्टर उड़ान भरते हैं वहां मौसम बदलता रहता है। घाटी में बादल इतने घने हो जाते हैं कि हेलीकॉप्टर को कई बार सिग्नल नहीं मिल पाते, जिस वजह से दुर्घटना का कारण बन जाता है. पिछले साल अक्टूबर महीने में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना ग्रस्त हुआ तब और इससे पहले भी केदारनाथ घाटी में कई हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, लेकिन इस बार यूकाडा ने फैसला लिया है कि केदारनाथ धाम में जिस घाटी में हेलीकॉप्टर उड़ते हैं वहां 7 कैमरे लगाए जाएंगे। जिससे हेलीकॉप्टर कंपनियों और पायलट को घाटी की वेदर जानकारी मिल सके और ये पता लग से कि वहां बादल किस स्थिति में हैं, हेलीकॉप्टर उड़ने की स्थिति में है या नहीं। केदारनाथ घाटी में दुर्घटनाओं को देखते हुए यह फैसला लिया गया है ताकि घाटी में मौसम की जानकारी मिल सके। हालांकि उनका यह भी कहना कि कैमरों के जरिए बहुत ज्यादा मॉनिटरिंग नहीं हो सकती, लेकिन कोशिश यह की जा रही है की हेलीकॉप्टर उड़ने से पहले पायलट को घाटी की सही जानकारी दी जा सके। इसी को लेकर जो 7 कैमरे लगाए जाएंगे उनकी डीएम कार्यालय से भी मॉनिटरिंग होगी और हेलीपैड पर भी उनकी मॉनिटरिंग की जाएगी। आपको बता दें कि केदारनाथ धाम के लिए सिरसी, गुप्तकाशी और फाटा से हेलीकॉप्टर उड़ान भरते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील बनता जा रहा है। खतरों के लिहाज से हिमस्खलन की तीन श्रेणियां होती है। पहला रेड जोन क्षेत्र, जहां हिमस्खलन में बर्फ का प्रभावी दबाव तीन टन प्रति वर्गमीटर होता है। इतनी अधिक मात्रा में बर्फ के तेजी से नीचे खिसकने से भारी तबाही होती है। दूसरा ब्लू जोन, जहां बर्फ का प्रभावी दबाव तीन टन प्रति वर्ग मीटर से कम होता है। आपदा के लिहाज से यह रेड जोन से थोड़ा कम खतरनाक होता है। तीसरा येलो जोन, फिलहाल इन क्षेत्रों में हिमस्खलन की घटनाएं बेहद कम होती हैं और यदि हुई तो जानमाल के नुकसान की संभावना कम रहती है।

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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