विषय – चित्र चिंतन
विधा – छंदमुक्त
नौ माह जिसको कोख में पाला,
वो वृद्ध आश्रम में छोड़ गयाl
याद आई जब प्रसव वेदना,
वो पल हृदय झिंझोड़ गया।।
क्या इसी तिरस्कार की खातिर,
प्रसव वेदना थी सही।
बूढी जर्जर काया माँ की,
लाचारी से सोच रही।।
भूखे रहकर रातों जागकर,
जिस संतान को बड़ा किया।
भावहीन होकर क्यों उसने,
वृद्ध आश्रम में खड़ा किया।।
नहीं प्रश्न यह जिएंगे कैसे,
कैसे हालातों से गुजरेंगे।
प्रश्न तो यह है मिला दर्द जो,
उस दर्द से कैसे उभरेंगे।।
जिसको अपने खून से सींचा,
वो यह कहकर इतराया है।
माँ सब सुविधा तुम्हें यहाँ मिलेगी,
पूरा इंतजाम करवाया है।।
वो पगला क्या जाने माँ की,
खुशी उसकी खुशी में है।
वो माँ को छोड़ खुश है तो,
माँ भी खुश इसी में है।।
स्वरचित
सुनीता सेमवाल “ख्याति”
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड