रिवर्स माइग्रेशन का उख्याता मॉडल!– लाखों की नौकरी छोड़ गांव की बंजर भूमि पर उगाई मेहनत की फसल और जलाई स्वरोजगार की अलख
संजय चौहान
सपना वह नहीं जो हम नींद में देखते हैं, बल्कि सपना वो है जो आपको सोने नहीं देता। देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की कही गयी उक्त पंक्तियों को हकीकत में चरितार्थ करके दिखाया है उत्तराखंड के टिहरी जनपद के जौनपुर विकासखंड में थत्यूड़ से सात किलोमीटर दूरी पर स्थित भुयाँसारी गांव निवासी विमल नौटियाल ने। विमल ने पिछले 25 सालों से बंजर पड़ी अपनी पुस्तैनी 15 नाली भूमि में अपनी मेहनत से सेब के 1000 पेड़ जिसमें गाला, एम 9, एम 11, रूट स्टॉक, जेरामाइन इत्यादि की विनय वाटिका के साथ साथ कीवी, नाशपाती, आडू, पोलम, खुमानी, औषधीय पौधे और शिमला मिर्च, लौंकी, बंद गोबी, राजमा, आलू, लहसुन सहित विभिन्न मौसमी हरी ऑर्गेनिक सब्जियां उगाई हैं। जिन्हें स्थानीय बाजार में बेचकर उन्हें अच्छा खासा मुनाफा हो रहा है। 4 साल पहले 2020 में कोरोना काल में विनय ने अपने रिवर्स माइग्रेशन के इस उख्याता मॉडल की शुरुआत की थी, उस समय टिहरी के तत्कालीन जिलाधिकारी मंगलेश घिल्डियाल से मिले प्रोत्साहन ने विमल के शौकिया तौर पर शुरू किए गए कार्य को एक मिशन के रूप में धरातल पर हकीकत में उतारा। आज विमल के साथ स्थानीय स्तर पर बुटकोट, बंगसील, मोलधार और भुयाँसारी में भी कुछ परिवारों ने भी अपने अपने बंजर पड़े खेतों में बागवानी और उद्यानीकरण की शुरुआत की है जबकि भुयाँसारी के ही शशिकांत गौड़, मोलधार के नरेंद्र मणि नौटियाल, बुटकोट के हरीश गौड़ भी अब अपने खेतों में सेब की बाग़वानी करने लगे हैं जिससे स्वरोजगार के जरिए रोजगार सृजन की उम्मीदों को पंख लगें है।
ये है विमल नौटियाल का प्रोजेक्ट उख्याता!
विमल नौटियाल के भुयाँसारी गांव से लगभग 3 किमी ऊपर पहाड़ पर एक बहुत बड़े भू-भाग पर कई लोगों के खेत हैं, को वर्तमान में बंजर पड़े हुए थे। इस जगह को ‘उख्याता’ कहते है। ये वो जंगल है जहां विमल की पुश्तैनी छान हुआ करती थी और अब यहां पर एप्पल मिशन के जरिए विमल ने सेब का बाग़ीचा तैयार किया है। भले ही पहाड़ आज भी लोगों के लिए पहाड़ ही नजर आता है, परंतु विमल ने उसी विरान पड़े पहाड़ की बंजर भूमि पर रोजगार सृजन करके लोगों के सामने एक उदहारण प्रस्तुत किया है यदि मेहनत और लगन से सही दिशा में कार्य किया जाय तो सफलता की नयी परिभाषा गढ़ी जा सकती है। आज विमल नौटियाल का प्रोजेक्ट उख्याता- रूटिंग टुवर्ड दी रूट्स लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
लाखों की नौकरी छोड़ गांव की माटी में जलाई स्वरोजगार की मशाल
वर्ष 2009 में विमल नौटियाल ने होटल मैनेजमेंट की डिग्री हासिल करने के बाद फाइव स्टार होटल आनन्दा, आईटीसी चेन्नई, ओलिव रेस्टॉरेंट में हेड पेस्ट्री शेफ़ सहित विदेशों में बतौर शेफ की नौकरी की जहां उन्हें लाखों का आकर्षक वेतन और लग्ज़री लाइफ़ का लुत्फ उठाने के साथ ही साथ विदेशों में घूमने का अवसर मिला। इतने आकर्षक वेतन और सुख सुविधा वाली लाइफ व्यतीत कर रहे विमल के मन में अपनी माटी के प्रति जुड़ाव और लगाव बचपन से ही था। विमल अपनी देवभूमि में रहकर ही कुछ अलग करना चाहता था, कोरोना काल के वैश्विक संकट के दौर में विमल ने अपनी माटी के लिए कुछ करने का अवसर दिया तो बिमल ने इसे लपक लिया। अपने चमकदार कैरियर को छोड़ विमल अपनी पुरखों की विरासत को संजोने में जुट गया, जिसकी परणिति ये हुई की आज विमल के उख्याता प्रोजेक्ट की गूंज उत्तराखंड ही नही देश के कई हिस्सों में सुनाई देने लगी है। विमल नौटियाल को रिवर्स माइग्रेशन के जरिए स्वरोजगार के लिए कई मंचों पर सम्मानित भी किया जा चुका है। 2023 में जौनपुर महोत्सव थत्युड में बागवानी के लिए प्रतिभा सम्मान, 2024 में जैविक खेती एवं स्वरोज़गार के लिए ‘उत्तराखंड स्तंभ सम्मान’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।
वीरान पड़े उख्याता की माटी में लौट आई खुशियां
विगत 3 दशकों से वीरानगी और दूर दूर तक पसरे सन्नाटेर की जगह अब उख्याता की आबोहवा और फिजाओं में खुशियों की रंगत लौट आई है। मानवीय हस्तक्षेप, गतिविधियों के साथ साथ बेजुबान पशु, पक्षियां भी अपने पुराने ठौरों में वापस लौट चुके हैं। वीरान पड़े उख्याता में हर दिन पक्षियों का कलरव और मधुर संगीत सुनाई देता है। जबकि जंगल के सभी पशु भी उख्याता में मॉर्निग वॉक और इवनिंग वॉक पर आते जाते हैं। उगते हुए सूरज की किरणों का दीदार करना हो या फिर विंटर लाइन या बादलों से अठखेलियां खेलना, उख्यता के अप्रतिम सौंदर्य की बानगी भर है। इन सबके बीच पहाड़ी टोपी पहने एक नौजवान युवा जो लाखों की नौकरी को छोड़ आया है, जब अपने उख्याता में कभी फर्राटेदार अंग्रेजी में मोबाइल फोन से बातें करता है तो कभी अपनी बोली भाषा में उख्याता में काम और आवाजाही कर रहे लोगों से बातें करता है तो कभी अपनी पुरखों की जमीन की मिट्टी में लतपथ होकर मेहनत की फसल को निहारता है तो पहाड़ को भी अपने इस बेटे पर गर्व होता है की कोई तो आया बरसों बाद जो अपने बंजर पड़ी माटी में रोजगार सृजन करके उसे आबाद कर रहा है। आज उख्याता प्रोजेक्ट के शिल्पी विमल नौटियाल की मेहनत और प्रयासों से 3 किमी दूर से पानी भी आ चुका है
युवाओं को अपनी माटी और खुद पर विश्वास करना होगा, पारंपरिक खेती को छोड़कर व्यावासिक खेती की ओर मुड़ना होगा : विमल नौटियाल
विनय से उनके रिवर्स माइग्रेशन और स्वरोजगार माॅडल के बारे में लंबी गुफ्तगु हुई। विनय बताते हैं कि शुरू शुरू में तो उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लोगों नें हतोत्साहित भी किया परंतु परिवार और दोस्तों के सहयोग से ही अपने सपने को सच कर पा रहा हूँ। अब धीरे-धीरे इसको बडे स्तर पर ले जाने का सपना है। सब्जी उत्पादन के साथ साथ डेरी, कुकुट, मत्स्य, मशरूम, कीवि उत्पादन के जरिए मल्टी व्यवसाय को प्राथमिकता दूंगा ताकि लोगों को हर चीज मिल जाये और युवाओं को रोजगार के अवसर। मैं बचपन से ही कुछ अलग करने की सोचता था। मेरा प्रदेश के सभी युवाओं से अपील है की पहाड़ में रहकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है। बस सकारात्मक दिशा में सोचने की आवश्यकता है। साथ ही सरकार को भी युवाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। कोरोना वाइरस के वैश्विक संकट में रोजगार के अवसर सीमित हो गयें हैं ऐसे में युवाओं को इस अवसर को भुना करके अपनी माटी पर भरोसा करना चाहिए। यही माटी बहुत कुछ दे सकती है। सबको आगे आना होगा। हमें अपनी पारंपरिक खेती की जगह व्यवसायिक खेती और किसानों को मुनाफा देने वाली फसलों को उगाना होगा। इसलिए हमें खेती में तकनीक का उपयोग करना होगा। तभी जाकर हम वोकल फॉर लोकल की सार्थकता सिद्ध कर पायेंगे।
चकबंदी, भंडारण और बाजार प्रमुख समस्या।
विमल नौटियाल बताते हैं की प्रोजेक्ट उख्याता के दौरान उन्हें बहुत सारी समस्याओं से रूबरू होना पड़ा। खेतों की चकबंदी अभी भी एक बड़ा विषय है, यदि चकबंदी होती तो लोगों को एक ही जगह पर कार्य करने में आसानी होती। किसान की फसल तैयार होने के बाद उसके भंडारण की समस्याएँ पहाड़ों में अभी भी चुनौतीपूर्ण है। किसान के फसल को बिचौलियों से बचाना और बाजार उपलब्ध कराना अभी भी बहुत बड़ी चुनौती है। सरकार को चाहिए की वो किसान की इन समस्याओं के समाधान के हरसंभव प्रयास करें ताकि स्वरोजगार कर रहे युवाओं को ज्यादा मुश्किलों का सामना न करना पड़े।
हर कदम पर परिवार का सहयोग मिला, चट्टान की तरह रहें अडिग खड़े
विमल बताते हैं की प्रोजेक्ट उख्याता को धरातल पर उतारने के लिए समय समय पर बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन मेरे पूरे परिवार ने हर कदम पर हौंसला और साथ दिया। बंजर भूमि को उपजाऊ बनाना से लेकर, 3 किमी दूर से पानी का बंदोबस्त करना, विपरीत परिस्थितियों और मौसम से लेकर जंगली जानवरों से फसल को बचाना हो या फिर अन्य जब भी में हतोत्साहित होता तो मेरा पूरा परिवार चट्टान की तरह पीछे से खड़े रहते।
विमल की बहन और पेशे से शिक्षिका डॉक्टर मनोरमा नौटियाल बताती है की उन्हे अपने भाई पर गर्व है। विमल ने प्रोजेक्ट उख्याता शुरू करने से पहले कहा की एक बार मुझे कोशिश कर लेने दो, आजमा लेने दो। नहीं सफल हुआ तो फिर अपना बिजनेस या जॉब शुरू कर लूंगा। गाँव के प्रति विमल के लगाव और किसानी के शौक को देखते हुए परिवार ने हामी भरी: “कर लेने दो एक बार अपनी जिद पूरी। शेफ विमल जब किसान विमल बन उख्यात चढे तो उन्होंने प्रतिदिन सुबह से शाम पत्थर तोड़े, गैंती-फावड़े चलाए, खेतों में पसरे हुए झाड़ काटे और उन्हें वापस खेती करने की सूरत में लेकर आये। जिद भी ठान ली, मेहनत करने का जज़्बा भी था, लेकिन दो बच्चों के पिता के लिए एक शानदार करियर को दाँव पर लगा खाली जेब लिए ‘बेरोजगार’ हो कर घर बैठना असम्भव होता। पूरे परिवार ने विमल का साथ दिया। समय बिता और आज विनय का प्रोजेक्ट उख्याता धरातल पर हकीकत में उतर आया है। पूरा परिवार बेहद खुश है आखिर हो भी क्यों न एसडीओ साहब के पोते ने उनकी दी हुई सीख जो सुकुन, चैन और खुशी अपने गांव की आबोहवा, खेत खलियानों और माटी में हैं वो कहीं नहीं, अपनी माटी में भी बहुत कुछ किया जा सकता है को सार्थक कर दिखाया है।
वास्तव में देखा जाए तो विमल नौटियाल जैसे सकारात्मक व्यक्तित्व से हमारे युवाओं को सीख लेने की आवश्यकता है। जिन्होंने लाखों की नौकरी को छोड़ अपनी माटी थाती और स्वयं पर भरोसा किया और अपनें स्वरोजगार माॅडल को रोजगार का साधन बनाया। पलायन से खाली होते पहाडों के लिए विमल का प्रोजेक्ट उख्याता का स्वरोजगार माॅडल किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं है।