उत्तराखंड की प्रसिद्ध एक्रोन कॉफी से सुनील दत्त कोठारी ने दुनिया में बनाई पहचान
वर्ष २०१६ से लगातार उत्तराखंड की ग्रामीण भूमि पर कार्य कर रहे, सुनील दत्त कोठारी की पहचान वंश परंपरागत वैद्य एवं हर्बल टी विशेषज्ञ के रूप में चरम सीमा पर है। कोठारी द्वारा स्थानीय वनस्पतियों का आधार लेकर वंश परंपरागत ज्ञान के द्वारा तैयार करके तथा उत्तम मिश्रण स्थानीय जड़ी बूटियां का आधार लेकर, जो लगभग १७० से भी अधिक उत्पादन विश्वभर को प्रस्तुत कर रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से स्थानीय कांडली यानी बिच्छूबूटी की चाय जिसमें स्थानीय पौधों का आधार लेकर ८८ प्रकार की जड़ी बूटियां मिलते हैं; तथा उत्तम पदार्थ का निर्माण करते हैं। ऐसी ही अलग-अलग पौधों का आधार लेकर लगभग ४८ किस्म की हर्बल चाय बनाते आ रहे हैं।
कोठारी बताते हैं कि हम उन विधाओं के द्वारा अपने रोग निवारक क्षमता के उत्पादन तैयार करते हैं। जिन पर हमारे पूर्वज काम करते आ रहे थे, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कोठारी के परिवार के कई वीडियो तक वंश परंपरागत वैद्य विद्या में रहे, उन्हीं की हस्तलिखित किताबों का आधार लेकर अपने लगभग १७० से भी अधिक उत्पादन विश्वभर को दे डाले हैं। कोठारी का प्रयास इन उत्पादों को प्रमाणीकरण, गुणवत्ता एवं बाजारीकरण की की मुहिम से जोड़ना है। ताकि अजीवका मिशन के अंतर्गत उत्तराखंड पलायन मुक्त रोजगार युक्त हो। आप यह ज्ञान अपनी तक सीमित न रखकर प्रशिक्षण के माध्यम से जन-जन तक उपलब्ध भी करवाते हैं। वर्ष २०१६ से वर्ष २०२१ तक लगभग २२,००० स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई महिलाओं एवं किसान समूह को प्रशिक्षण दे चुके हैं।
स्थाई निवास ब्लॉक द्वारिखाल पौड़ी गढ़वाल के चेलूसैन गांव में है, एक ग्रामीण प्रवेश में रहकर विश्व स्तर की प्रस्तुति देने के लिए इनका नाम कई रिकॉर्ड बुक में भी दर्ज हो चुका है।
गौरतलब बात यह भी है कि आपको कहीं राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों के द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।
इसी संदर्भ को आगे बढ़ाने के लिए स्थानीय पौधा बांज (ओक ट्री) के बीजों के द्वारा भी उत्तम किस्म का पेय पदार्थ “एक्रोन कॉफी” का निर्माण करते आ रहे हैं। कोठारी बताते हैं कि इसकी निर्माण प्रक्रिया कई चरणों में पूर्ण होती है।
सर्वप्रथम बीजों के चुनाव की एक जटिल प्रक्रिया होती है, प्रत्येक दस बीजों में से तीन या चार ही बीजों का उपयोग हो पता है। अगली प्रक्रिया में इन बीजों को बहते हुए पानी में पोटली में सहेज कर बहते हुए पानी की धारा के पानी में इन इनको रखकर पानी से उपचारित किया जाता है, यह प्रक्रिया अगले लगभग १९ दिन से १५ दिन तक चलती रहती है। जब तक इनके अंदर पाए जाने वाला नशीला पदार्थ (निकोटिन) की मात्रा एक नियंत्रित रूप में ना हो जाए, इसके बाद इनको तेज धूप में लगभग अगले २५ दिनों तक लगातार सुखाया जाता है। परिपूर्ण रूप से सूखने के पश्चात इनका ग्राम भट्टी में भून जाता है।
तथा इसके बाहरी कवच को अलग करके अंदर की ग्रीन उमा फल को अलग करके फिर तेज धूप में सूखने के पश्चात इनका हाथों के द्वारा पाउडर बनाया जाता है। इस जटिल प्रक्रिया में दो से तीन महीने लग जाता है, इसके उपरांत स्थानीय लगभग २७ प्रकार के पौधों का उत्तम मिश्रण बनाकर इस पाउडर में मिलाया जाता है, इस जटिल प्रक्रिया से गुजरने के पश्चात हिमालय उत्तराखंड की बांज वृक्ष के बीजों के द्वारा बनी हुई उत्तम एक्रोन कॉफी प्याले तक पहुंचती है।
कोठारी बताते हैं कि यह स्वास्थ्यवर्धक पर पदार्थ है, जिसका उपयोग एक लंबे समय तक हमारे पूर्वज रोग निवारक औषधि के रूप में करते आ रहे थे, साथ ही साथ इस कॉफी में दूध एवं चीनी का उपयोग मुख्य रूप से नहीं किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति विशेष स्वाद को ध्यान में रखते हुए इसमें दूध एवं चीनी की मात्रा का उपयोग भी कर सकता है।
कोठारी बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मार्केट में डेढ़ लाख रुपए किलो तक की एक्रान कॉफी उपलब्ध होती है, परंतु हमारे द्वारा निर्मित कॉफी अन्य बाजार में मिलने वाली कॉफी से अलग है, क्योंकि इसका मिश्रण पद्धति (बेडिंग बेस) हमारे वंश परंपरागत ज्ञान के द्वारा मिश्रण युक्त होती है।
कोठारी का प्रयास, वंश परंपरागत ज्ञान को आधुनिक प्रस्तुतीकरण, प्रमाणीकरण, उत्पादन एवं बाजारीकरण से जोड़ना ही है। परंपरागत विधाओं की बात करें तो आप भारतीय हीलिंग पद्धति (मंत्रआत्मक साधना) द्वारा भी रोग उपचार की पद्धति का पालन करते आ रहे हैं, एवं ज्योतिष ,कर्मकांड की विधा से भी आजीविका चलाते आ रहे हैं। यह सभी कार्य कोठारी पर्वतीय विकास समिति के अंतर्गत विश्व भर को प्रस्तुति दे रहे हैं। हम सब मिलकर कोठारी के प्रयासों को बल देकर उनकी सेवाओं का उपयोग एवं लाभ उठाकर उत्तराखंड की प्राचीन संस्कृति को जीवित रखने में अपना अतुलनीय योगदान देते हैं।