ऊखीमठ। मदमहेश्वर घाटी के ग्रामीणों की अराध्य भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में शुक्रवार से शुरू होने वाले सावन मास के शुभारंभ से ही पौराणिक जागरों का गायन शुरू होगा। ग्रामीणों द्वारा पौराणिक जागरों के माध्यम से तैतीस कोटि देवी – देवताओं सहित भगवती राकेश्वरी की महिमा का गुणगान किया जायेगा तथा दो माह तक चलने वाले जागरों का समापन आश्विन की दो गते को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के बाद होगा। जानकारी देते हुए जागरी पूर्ण सिंह पंवार ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में प्रति वर्ष सांय कालीन आरती के बाद पौराणिक जागरों के गायन की परम्परा है तथा जागरों का गायन दो माह तक किया जाता है।
शिवराज सिंह पंवार ने बताया कि भगवती राकेश्वरी का पावन तीर्थ मदमहेश्वर घाटी के रासी गांव में विराजमान है तथा इस पावन तीर्थ में मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मुकन्दी सिंह पंवार ने बताया कि दो माह तक चलने वाले जागरो में देवभूमि उत्तराखंड के प्रवेश द्वार हरिद्वार से चौखम्बा हिमालय तक विराजमान हर तीर्थ की महिमा का गुणगान किया जाता है। कार्तिक सिंह खोयाल ने बताया कि दो माह तक चलने वाले जागरो के माध्यम से शिव – पार्वती विवाह, भगवान विष्णु की महिमा, मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र की जीवन लीला का वृतान्त, भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं पर आधारित विभिन्न लीलाओं का गुणगान तथा महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों के स्वर्गारोहण गमन के वृतान्त के साथ ही पंच बद्री, पंच केदार सहित सभी धामों की महिमा का गुणगान किया जाता है।
जसपाल सिंह जिरवाण ने बताया कि पौराणिक जागरो के गायन से रासी गांव का वातावरण दो माह तक भक्तिमय बना रहता है तथा गांव की बुजुर्ग महिलायें पौराणिक जागरो का श्रवण करती है। अमर सिंह रावत ने बताया कि युवा पीढ़ी पौराणिक जागरो के गायन से बिमुख होती जा रही है मगर युवा पीढ़ी को भी पौराणिक जागरों के गायन के प्रति जागरूक किया जा रहा है। शिव सिंह रावत ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में पौराणिक जागरो के गायन की परम्परा युगों पूर्व की है तथा भविष्य में भी पौराणिक जागरों के गायन की परम्परा को जीवित रखने के लिए सामूहिक पहल की जायेगी। हरेन्द्र खोयाल ने बताया कि पौराणिक जागरों के गायन के श्रवण करने से मन को अपार शान्ति मिलती है।