पौराणिक सांस्कृतिक जागर विधा को विलुप्त होने से संजो रहे शिव सिंह काला

Team PahadRaftar

रघुबीर सिंह नेगी

जागर विधा के धनी शिव सिंह काला उर्गम घाटी

उर्गमघाटी : 36 घण्टों तक निरन्तर चलने वाली जागर विधा हिमालय वासियों की अनमोल संस्कृति है, जो वैदिक काल से ही चली आ रही है।यह देवगाथाओं पर आधारित होता है। और जिसे जागर वेता विधि विधान से गाते हैं। पहाड़ों में मेलों के अवसर पर जागर गाये जाते हैं जिसमें देवी देवता अवतरित होते हैं। जागर विधा का संरक्षण करना बेहद आवश्यक है। क्योंकि आने वाली पीढी इसकी धुन व क्रम याद नही रख पायेगी संस्कृति से मुह मोड़ती युवा पीढी को इस सांचे में ढालने की जरूरत है। लक्ष्मण सिंह नेगी सचिव जनदेश व नन्द किशोर हटवाल ने इस विधा को अपनी पुस्तकों में संरक्षण किया है पर युवा पीढ़ी को जरूरत है रूचि लेने की।
उर्गमघाटी के गीरा गांव के निवासी है शिव सिंह काला जिसका बचपन ही अपने ननिहाल गीरा गांव में बीता कक्षा एक तक ही पढा और आर्थिकी के कारण आगे नही पढ़ पाया। नाना – नानी के साथ गाय बकरी चराने में लग गया देवी देवताओं के कार्य में मन लगने से मां सरस्वती की कृपा प्राप्त हुई और स्व हयात सिंह नेगी के संरक्षण मे जागर विधा सीख ली, उर्गमघाटी में होने वाले मेलों के अलावा सेलंग लाता थेंग डुमक कलगोठ मेलों में भी जागर का गायन कर चुका है और उर्गमघाटी के हर मेलों में भी अपनी भूमिका निभाता है। भले शिव सिंह काला की आर्थिकी स्थिति मजबूत न हो फिर भी नन्दा के प्रति शिव सिंह की अथाह आस्था है जरूरत है सरकार को लोक संस्कृति जागरों को बचाने की। अभी तक शिव सिंह काला को कोई भी सरकारी सहायता प्राप्त नहीं हुई है जबकि चालीस वर्षों से इस जागर विधा को संजोकर रखा है विलुप्त होती पौराणिक संस्कृति को संवारने की आवश्यकता है ?

 

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