संजय कुंवर सलूड- डुंग्रा जोशीमठ
सलूड : विश्व सांस्कृतिक धरोहर रम्माण का भव्य समापन, 18 ताल पर हुआ मंचन।
उत्तराखंड की बहुमूल्य सांस्कृतिक विश्व धरोहर रम्माण का आयोजन हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गया है। खराब मौसम के बीच सलूड़ डुंग्रा गांव के भूम्याल मंदिर चौक में एक ही दिन में पारंम्परिक लोक जागरों के माध्यम से बिना बोले नृत्य नाटकों और मुखौटा के जरिए रम्माण का मेला संपन्न हुआ।
लोक कला संस्कृति केंद्र श्रीनगर के प्रो.डीआर पुरोहित और मुख्य शिक्षा अधिकारी चमोली मेले में बतौर मुख्य अथिति मौजूद रहे।
बता दें कि आज बृहस्पतिवार को भ्यूम्याल मंदिर प्रांगण में पूजा अर्चना के बीच रम्माण मेले की शुरुआत हुई। लोक कला संस्कृति केंद्र श्रीनगर के प्रो.डीआर पुरोहित के गाए गए लोक जागरों में रम्माण के पात्रों ने अपना नृत्य दिखाया। 18 तालों में राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान समेत रम्माण के अन्य पात्रों ने नृत्य के माध्यम से पूरी रामायण का मंचन किया। इसके अलावा गणेश नृत्य, मोर-मोरिन नृत्य,बणिया-बधियान नृत्य, खिलाड़ी नृत्य,राणी-राधिका नृत्य, बुढ़देवा, नृसिंह प्रहलाद व पांडव नृत्य को देखकर भी दर्शक भाव विभोर हुए। पैनखंडा क्षेत्र के इस मेले को देखने के लिए दर्जनों गांव से भारी भीड़ सलूड़ डुंग्रा गांव में एकत्रित हुई। गांव की चौपाल से 26 जनवरी की परेड तक पहुंचने का सफ़र पूरा कर चुकी इस विश्व सांस्कृतिक धरोहर रम्माण को आगे पटल पर पहुंचाने का श्रेय पर्यावरण प्रेमी और नेचर एक्सपर्ट फोटो ग्राफर अरविंद मुदगिल सहित गढ़वाल विश्व विद्यालय के संस्कृति विशेषज्ञ डा०डीआर पुरोहित को जाता है,दरअसल उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ प्रखंड के सलूड़ गांव में प्रतिवर्ष वैशाख (अप्रैल) में आयोजित होने वाला पारंम्परिक लोक उत्सव है। अपनी सांस्कृतिक विरासत ओर विविधता के चलते यह उत्सव युनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर सूची में सम्मिलित है। रामायण से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों के कारण इसे रम्माण उत्सव कहते हैं।
ये है रम्माण मेला
रम्माण (रामायण का अपभ्रंस) मेला सलूड़ डुंग्रा गांव में प्राचीन काल से मनाया जाता है। इस अनमोल सांस्कृतिक धरोहर को दो अक्टूबर 2009 को विश्व सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा मिला। नन्दा देवी नेशनल पार्क फूलों की घाटी के बाद उत्तराखंड की यह तीसरी विश्व धरोहर है।