बदरीनाथ : 16 रसियन तीर्थयात्रियों ने पंडित ऋषि सती से ब्रह्मकपाल तीर्थ में अपने पितरों का किया पिंडदान

Team PahadRaftar

रसियन तीर्थ यात्रियों ने अपने पितरों के मोक्ष के लिए ब्रह्म कपाल तीर्थ में किया पिंडदान

संजय कुंवर

बदरीनाथ / ब्रह्मकपाल तीर्थ : भू-बैकुंठ बदरीनाथ धाम में देशी ही नहीं अपितु विदेशी तीर्थ यात्री भी अपने पितरों के मोक्ष के लिए बड़ी संख्या में ब्रह्मकपाल तीर्थ में तर्पण के लिए पहुंच रहे हैं।

आज कल श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं लिहाजा उत्तर के तीर्थ राज भू-बैकुंठ नगरी और मोक्ष धाम के रूप में प्रसिद्ध चार धामों में एक श्री बदरी नाथ धाम में इन दिनों श्राद्ध पक्ष के चलते भारत ही नहीं अपितु विदेशों से भी सनातन संस्कृति को समझने वाले तीर्थयात्री सनातन धर्मी बदरीनाथ धाम पहुंच कर अलक नन्दा नदी के पावन तट पर स्थित ब्रह्म कपाल तीर्थ में अपने पितरों  की मोक्ष के लिए पिंडदान करने पहुंच रहे हैं।

सोमवार को ब्रह्म कपाल तीर्थ में 16 सदस्यीय विदेशी रसियन तीर्थ यात्रियों के दल ने ब्रह्म कपाल तीर्थ में अपने पितरों के निमित पिंडदान कराते हुए सदियों से चली आ रही सनातनी संस्कृति का एक मजबूत उदाहरण पेश किया है। इस रशियन तीर्थ यात्रियों के समूह की पिंडदान पूजा करवाने वाले ब्रह्म कपाल तीर्थ के वरिष्ट पुरोहित पंडित ऋषि प्रसाद सती ने बताया की बड़े हर्ष की बात है मोक्ष धाम में आजकल श्राद्ध पक्ष के चलते भारतीय श्रद्धालु पिंडदान करने ब्रह्म कपाल तीर्थ तो पहुंच ही रहे हैं, लेकिन अब विदेशी तीर्थ यात्रियों का भी सनातन संस्कृति धर्म के प्रति झुकाव और सम्मान होना अच्छी बात है। सोमवार को ब्रह्म कपाल तीर्थ में उनके पास रूस देश के 16 तीर्थ यात्रियों का एक समूह अपने पुरखों, पितरों के लिए सनातनी संस्कृति परंपरा के तहत श्राद्ध पक्ष में पिंड दान करने आया लिहाजा तीर्थ पुरोहित होने के नाते अपने विदेशी यजमानों के लिए उन्होंने ततपरता के साथ पिंड दान की पूरी प्रक्रिया करते हुए सभी रसियन दल के सदस्यों का सामूहिक रूप से पिंडदान पूजन कार्य सम्पन्न कराया। पुराणिक स्कन्द पुराण के अनुसार इस पवित्र स्थान को गया से आठ गुना अधिक फलदाई और पितृ कारक तीर्थ स्थल माना गया है। यहां विधि विधान से पिंडदान करने से पितरों को नरक लोक से मोक्ष मिल जाता है।

बता दें की सनातन धर्म में श्राद्धपक्ष का बहुत महत्व है। पितरों के लिए समर्पित ये पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों पितृ,पितृलोक से मृत्यु लोक में अपने वंशजों से अल्प अवधि में मिलने आते हैं और हम उनके सम्मान में अपनी विवेक के अनुसार उनका -सत्कार करते हैं। इसके परिणामस्वरूप सभी पितृ अपनी आस्था इच्छा वाला सात्विक भोजन व आदर सम्मान पाकर प्रसन्न व संतुष्ट होकर अपने परिवार के सदस्यों को खुशहाली स्वास्थ्य, दीर्घायु, वंशवृद्धि व नाना प्रकार के आशीष देकर पितृलोक लौट जाते हैं।

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