बंड मेले में दिखेगा रिंगाल का ढोल- दमाऊं, रिंगाल मैन राजेन्द्र बडवाल का अभिनव प्रयोग, ढोल कलाकारों के कंधों का बोझ होगा हल्का
गोपेश्वर : पहाड़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कहा जाता है की कला और कलाकार को सरहदों के बंधन में नहीं बांधा जा सकता है। रिंगाल मेन राजेन्द्र नें उक्त कहावत को चरितार्थ करके दिखाया है। राजेन्द्र ने अपनी बेजोड हस्तशिल्प कला से रिंगाल के विभिन्न उत्पादों और पहाड़ की हस्तशिल्प कला को नयी पहचान और नयी ऊँचाई प्रदान की है। चमोली, देहरादून से लेकर मुंबई तक रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल के बनाए गए उत्पादों के हर कोई मुरीद हैं। बीते एक सप्ताह से राजेन्द्र ने रिंगाल से उत्तराखंड के पारम्परिक वाद्य यंत्र ढोल दमाऊं बनाकर एक नया अभिनव प्रयोग करके अपने हुनर का लोहा मनाया है।
रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल कहते हैं की के उनकी कोशिश है कि रिंगाल के ढोल दमाऊं के जरिए वो ढोल के कलाकारों के कंधों का बोझ हल्का कर सके। ये एक छोटी सी कोशिश है, अगर लोगों को ये पसंद आयेगा तभी कुछ संभव होगा। रिंगाल के इस ढोल का वजन पारम्परिक ढोल दमाऊं की तुलना में बेहद कम है। और लागत भी बहुत कम।
ये हैं उत्तराखंडी संस्कृति का संवाहक व सामाजिक समरसता का अग्रदूत ढोल
सदियों से ढोल दमाऊं हमारी सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। इसके बिना हमारे लोकजीवन का कोई भी शुभ कार्य, उत्सव, त्यौहार पूर्ण नहीं हो सकता है। ढोल दमाऊं हर्ष, उल्लास और ख़ुशी का प्रतीक है। यह उत्तराखंडी संस्कृति का संवाहक व सामाजिक समरसता का अग्रदूत है। ढोल से 600 से 1000 तक ताल निकलते हैं। जबकि तबले पर 300 ही बजते हैं। पहाड़ में आयोजित होने वाले हर छोटे बड़े आयोजनों, वैवाहिक कार्यक्रमों, पांडव नृत्य, बगडवाल नृत्य, विभिन्न धार्मिक आयोजनों में ढोल की उपस्थिति आवश्यक होती है। ढोल हमारी लोकसंस्कृति का अहम हिस्सा है। ढोल हमारे लोक जीवन में इस कदर रचा बसा है की इसके बिना शुभ कार्य की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। जहाँ लोग विदेशों से ढोल सागर सीखने उत्तराखंड आ रहें हैं वहीँ हम अपनी इस पौराणिक विरासत को खोते जा रहे हैं। ऐसे में हमें इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए आगे आना होगा।
कौन है राजेन्द्र बडवाल
सीमांत जनपद चमोली के दशोली ब्लाॅक के किरूली गांव निवासी राजेंद्र बडवाल विगत 14 सालों से अपनें पिताजी दरमानी बडवाल जी के साथ मिलकर हस्तशिल्प का कार्य कर रहे हैं। उनके पिताजी पिछले 45 सालों से हस्तशिल्प का कार्य करते आ रहे हैं। राजेन्द्र पिछले पांच सालों से रिंगाल के परम्परागत उत्पादों के साथसाथ नए नए प्रयोग कर इन्हें मार्डन लुक देकर नये डिजाइन तैयार कर रहे हैं। उनके द्वारा बनाई गयी रिंगाल की छंतोली, ढोल दमाऊं, हुडका, लैंप शेड, लालटेन, गैस, टोकरी, फूलदान, घौंसला, पेन होल्डर, फुलारी टोकरी, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोपी, स्ट्रैं, वाटर बोतल, बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, पशुपतिनाथ मंदिर सहित अन्य मंदिरों के डिज़ायनों को लोगों ने बेहद पसंद किया और खरीदा। जिससे राजेन्द्र को अच्छा खासा मुनाफा भी हुआ। राजेन्द्र बडवाल की हस्तशिल्प के मुरीद उत्तराखंड में हीं नहीं बल्कि देश के विभिन्न प्रदेशों से लेकर विदेशों में बसे लोग भी हैं।