प्लास्टिक : पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा

Team PahadRaftar

प्लास्टिक : पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा

      डॉ. हरीश अंदोला

इस वर्ष पर्यावरण दिवस 2023 की थीम ‘प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान’ निकालना है। हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया जाता है। अब उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्देश पर पूरे प्रदेश में प्लास्टिक मुक्त के लिए 12 -18 जून तक स्वच्छता पखवाड़ा अभियान चलाया जा रहा है। अभियान के तहत शहर से नगर और गांव – गांव में सफाई के साथ स्वच्छता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।

प्लास्टिक प्रदूषण क्या है?

प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण कहलाता है जिससे मानवों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मानव द्वारा निर्मित चीजों में प्लास्टिक थैली एक ऐसी वस्तु है। जो जमीन से आसमान तक हर जगह मिल जाती है। पर्यटन स्थलों, समुद्री तटो, नदी नालों, खेतों खलिहानों, भूमि के अंदर बाहर सब जगहों पर आज प्लास्टिक के कैरी बैग्स अटे पड़े है। घर में रसोई से लेकर पूजा स्थलों तक हर जगह प्लास्टिक थैलियां रंग बिरंगे रूप में देखने को मिल जाएगी। चावल, दाल,तेल, मसाले, दूध, घी, नमक, चीनी आदि सभी आवश्यकता के सामान आजकल प्लास्टिक-पैक में मिलने लगे हैं। आज प्रत्येक उत्पाद प्लास्टिक की थैलियों में मिलता है जो घर आते आते कचरे में तब्दील  होकर पर्यावरण को हानि पंहुचा रहा है।प्लास्टिक या पॉलीथिन का इस्तेमाल प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाता है। चूंकि प्लास्टिक को नष्ट नहीं किया जा सकता, इस कारण यह नदियों, मृदा आदि में पहुंचकर प्रदूषित करता है।

प्लास्टिक कच्चरा से पटा उत्तरकाशी टनल फोटो साभार : मेघा प्रकाश

प्लास्टिक के पहाड़

उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी) द्वारा 2016-17 में किए गए सर्वेक्षण में कुल कचरे में से प्रतिदिन 272.22 टन प्लास्टिक बताया गया है, जो 2014 में 457.63 टन बढ़ने जा रहा है। इसका पहाड़ी राज्य पर गंभीर प्रभाव पड़ने वाला है। यूईपीपीसीबी के सदस्य सचिव ने कहा, “प्लास्टिक कचरे का वर्तमान प्रतिशत पहले से ही खतरनाक है। और अगर हम आज की तरह प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग करते रहे, तो अगले 23 वर्षों में प्लास्टिक की मात्रा लगभग दोगुनी हो जाएगी।आज वैश्विक स्तर पर प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक का उपयोग जहां 18 किलोग्राम है वहीं इसका रिसायक्लिंग मात्र 15.2 प्रतिशत ही है।

अगले 23 वर्षों में प्लास्टिक की मात्रा लगभग दोगुनी हो जाएगी

चमोली संयुक्त मजिस्ट्रेट दीपक सैनी सफाई करते हुए

 

देहरादून: प्लास्टिक कचरा पैदा करने में शीर्ष

देहरादून कचरे में सबसे अधिक प्लास्टिक प्रतिशत योगदान करने वाला शीर्ष शहर है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि राज्य की राजधानी में कचरे में प्रतिदिन 327.9 टन प्लास्टिक मिलाया जाता है जो बढ़कर 584.051 टन प्रतिदिन होने जा रहा है। प्रदेश में प्लास्टिक से जुड़े उद्योगों की ओर से ईपीआर (विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व) प्लान जमा कराने के काम में तेजी आई है। अब तक 278 प्रोड्यूशर, इंपोटर और ब्रांड ऑनर (पीआईबीओ) की ओर से ईपीआर जमा कराया जा चुका है, जबकि 52 प्लास्टिक वेस्ट प्रोसेसर्स (पीडब्ल्यूपी) कंपनियों की ओर से भी पंजीकरण कराया गया है। बीते वर्ष ईपीआर जमा नहीं कराने वाले प्लास्टिक उद्योगाें को बंद करने के लिए नोटिस जारी होने बाद हड़कंप की स्थिति बन गई थी। इसके बाद हाईकोर्ट की ओर से एसएसएमई (लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम) उद्योगाें के पंजीकरण की बाध्यता में छूट दे दी गई थी। अन्य पीआईबीओ के लिए पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया था।

उत्तराखंड में बीते दो-तीन माह में पंजीकरण कराने वाले उद्योगों की संख्या में तेजी आई है। प्रदेश में अब तक 202 प्रोड्यूशर, 13 इंपोटर और 63 ब्रांड ऑनर पंजीकरण करा चुके हैं, जो देशभर में हुए 6921 ईपीआर पंजीकरण का करीब चार प्रतिशत है। वहीं, देशभर में 2113 प्रोड्यूशर, 3477 इंपोटर और 1331 ब्रांड ऑनर ने पंजीकरण कराया है।केंद्रीय पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की साइट पर जारी आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च 2023 तक देशभर में 6,921 कंपनियों ने ईपीआर प्लान जमा कराया है। इनमें से भी 278 कंपनियां उत्तराखंड की हैं।

माइक्रो प्लास्टिक: स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव

प्लास्टिक प्रदूषण मानव जीवन के समक्ष एक बड़े खतरे के रूप में उभरा है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुखिया श्री इरिक सोलहिम ने कहा है प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है। जब बड़ा प्लास्टिक छोटे टुकड़ों (माइक्रो)में विभाजित होता है तो छोटे टुकड़े धीरे-धीरे समुद्र पहुंच जाते हैं। इन छोटे प्लास्टिक के टुकड़ों को मछलियां खा जाती हैं। इन मछलियों को हम खाते हैं और इस तरह प्लास्टिक हमारे शरीर में पहुंच जाता है। यह स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है।

     बदरीनाथ में सफाई अभियान

प्लास्टिक प्रदूषण: एक गंभीर समस्या

वर्तमान में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया है। दुनिया भर में अरबों प्लास्टिक के बैग हर साल फेंके जाते हैं। ये प्लास्टिक बैग नालियों के प्रवाह को रोकते हैं और आगे बढ़ते हुए वे नदियों और महासागरों तक पहुंचते हैं। चूंकि प्लास्टिक स्वाभाविक रूप से विघटित नहीं होता है इसलिए यह प्रतिकूल तरीके से नदियों, महासागरों आदि के जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करता है।

उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर जोशीमठ पालिका द्वारा नगर में स्वच्छता अभियान

प्लास्टिक प्रदूषण के कारण लाखों पशु और पक्षी मारे जाते हैं जो पर्यावरण संतुलन के मामले में एक अत्यंत चिंताजनक पहलू है। चूंकि हम बचे खाद्य पदार्थों को पॉलीथीन में लपेट कर फेंकते हैं तो पशु/पक्षी उन्हें ऐसे ही खा लेते हैं जिससे जानवरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है यहां तक कि उनकी मौत का कारण भी।आज हर जगह प्लास्टिक दिखता है जो पर्यावरण को दूषित कर रहा है। जहां कहीं प्लास्टिक पाए जाते हैं वहां पृथ्वी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और जमीन के नीचे दबे दाने वाले बीज अंकुरित नहीं होते हैं तो भूमि बंजर हो जाती है।

उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन

उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरे पर प्रतिबंध के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने पूर्व के आदेश का पालन न करने पर कड़ी नाराजगी जताई है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश समेत सभी ज्यूडिशियरी स्वच्छता अभियान चलाएंगे। इसमें सरकार से सहयोग करने को कहा है। केदारनाथ में प्लास्टिक प्रोडक्ट पर QR कोड लगाने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बना।

गौचर में महिलाओं ने लिया स्वच्छता की शपथ

इस कोड को स्कैन करके प्रशासन ने पानी की बोतलों को इकट्ठा करने का प्रयास किया।इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार के लिए कई निर्देश जारी किए हैं जिसमें केदारनाथ की तर्ज पर प्लास्टिक बोतलों पर क्यूआर कोड लागू करने से लेकर कूड़ा वाहनों में GPS सिस्टम लगाने की बात कही गई है।

लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

 

 

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