पीपलकोटी : मां नंदा की डोली का बाटुला के ग्रामीणों ने पुष्प अक्षत्रों से किया भव्य स्वागत

Team PahadRaftar

बंड नंदा की डोली का बंड क्षेत्र में पुष्प वर्षा से भक्तों ने किया भव्य स्वागत, नरेला बुग्याल में सम्पन्न होती है बंड की नंदा की वार्षिक लोकजात।

पीपलकोटी

दशोली ब्लाक की बंड पट्टी के बाटुला गांव के ग्रामीणों ने आज बंड नंदा की डोली का भव्य स्वागत किया। बंड की नंदा डोली बिरही से रात्रि विश्राम के लिए बाटुला गांव पहुंची, जहां ग्रामीणों ने नंदा की डोली व छंतोली का पुष्प वर्षा से स्वागत किया गया। शनिवार को कुरुड से बंड की नंदा की डोली बिरही रात्रि विश्राम को पहुंची थी। बंड की नंदा लोकजात, नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी के दिन सम्पन्न होती है।

लोक में विख्यात है बंड की नंदा की नरेला बुग्याल की वार्षिक लोकजात यात्रा

वार्षिक लोकजात में कुरूड से चली बंड- नंदा की रिंगाल की छंतोली बंड पट्टी के बिरही, कौडिया, सिरकोट, दिगोली, लुंहा, महरगांव, बाटुला, मायापुर, गडोरा, अगथल्ला, रैतोली, नौरख, पीपलकोटी, सल्ला, कम्यार होते हुये बंड भूमियाल की थाती किरूली गांव पहुंचती है। सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में नंदा के जयकारों और जागरों के साथ बंड भूमियाल का थान थिरक उठता है और चांचणी, झुमेलो की सुमधुर लहरियों से अलौकिक हो उठता है नंदा का लोक। रात भर बंड भूमियाल की थाती में लोकोत्सव का माहौल रहता है। अगले दिन बंड पट्टी के सैकड़ों ग्रामीण माँ नंदा को भावुकता से विदा करते हैं, साथ ही मां नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी भेंट करते हैं। महिलाएँ नंदा के पौराणिक जागर गाकर नंदा को विदा करती हैं। जिसके बाद कुरूड नंदा बंड भूमियाल की छंतोली सहित अन्य छंतोली किरूली गांव के बंड भूमियाल मंदिर से पंछूला नामक स्थान पर कुणजाख देवता से आज्ञा लेकर विनाकधार, बौंधार, भनाई होते हुये अगले पड़ाव गौणा गाँव के लिए प्रस्थान करती है। गौणा गाँव से अगले दिन छंतोली तडाग ताल, गौणा डांडा, रामणी बुग्याल, चेचनिया विनायक होते हुये रात्रि विश्राम को पंचगंगा पहुंचती है। जिसके बाद अगले दिन छंतोली पंचगंगा से नरेला बुग्याल पहुंचती है। नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी के दिन पूजा अर्चना कर, श्रद्धालु अपने साथ लाये नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी अर्पित करते हैं। इस दौरान सामने दिखाई दे रहे त्रिशुली और नंदा घुंघुटी पर्वत की पूजा भी करते हैं। और नंदा को कैलाश की ओर विदा कर लोकजात वापसी का रास्ता पकडती है।

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