चिंताजनक : आपदा से तबाह हुए किरूली के जंगल और जलस्रोत, प्रकृति ने दिए ने दिए गहरे जख्म, जिनको भरने में लगेगा अभी दसों वर्ष, नेस्तनाबूद हुए हजारों बांज, बुरांस और काफल के पेड़। प्राकृतिक जलस्रोत तबाह होने से अब ग्रामीणों के समक्ष पेयजल का संकट पैदा।
गोपेश्वर
13-14 अगस्त की आपदा ने बंड क्षेत्र में जो तबाही मचाई वो रोंगटे खडे कर देने वाली थी। इस आपदा ने न केवल आमजन को प्रभावित किया अपितु बेजुबान को भी प्रभावित किया। आपदा ने गांव का भूगोल भी बदल कर रख दिया है।
आपदा के बाद अब गांव के लोगों ने जो हकीकत बंया की है वो भविष्य के लिए बेहद चिंताजनक हैं। बंड क्षेत्र के किरूली गाँव में जंगल का सबसे ज्यादा घनत्व है। जिस कारण यहां पर हरा सोना अर्थात बांज का जंगल था। इस जंगल में बांज, बुरांस, तिलंगा, काफल, उतीस, बैलाड, अखरोट सहित विभिन्न प्रजाति के पेड बहुतायत मात्रा में थे। ये पेड सैकड़ों साल पुराने थे। इन पेड़ों के कारण से ही जंगल में एक दर्जन से अधिक जलस्रोत थे जिनमें प्रचुर मात्रा में पेयजल की उपलब्धता थी। इन जलस्रोत से किरूली, भीड, गडोरा, मेहरगांव, लुंहा गाँव के ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध होता था। साथ ही किरूली के जंगल से पूरी बंड क्षेत्र के ग्रामीणों को लकडी, घास के अलावा झूला से रोजगार भी प्राप्त होता था।
किरूली गाँव के ग्रामीण प्रेम सिंह, महाबीर सिंह, मनोज, गुड्डी, सतीश, बलवंत सिंह सहित अन्य लोगों ने बताया की 13-14 अगस्त की आपदा ने किरूली के जंगल का 70 फीसदी हिस्सा तबाह कर दिया है जिस कारण से हजारो पेड़ आपदा की भेंट चढ गये है और एक दर्जन से अधिक जलस्रोत भी तबाह हो गये है। जिससे गांव के लोगो के सामने पेयजल का संकट गहरा गया है। अभी तो बरसाती नाले और जलस्रोत से लोग किसी तरह अपना बंदोबस्त कर रहे हैं लेकिन बरसात के बाद स्थिति चिंतित कर देने वाली है। इसके अलावा जंगल जाने के सारे रास्ते भी नेस्तनाबूद हो गये हैं। ग्रामीणों के सामने अपने मवेशियों के चुगान का संकट भी गहरा गया है। उन्होंने सरकार और वन विभाग से मांग की है कि जंगल जाने के रास्ते बनाये जाय और जंगल को बचाने के लिए दीर्घकालीन योजना बनाई जाय ताकि इस बहुमूल्य जंगल को बचाया जा सके।