पीरियड्स उत्सव : सामाजिक रूढ़िवादिता से परे एक रुढ़ीमुक्त मिसाल 

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पीरियड्स उत्सव  : सामाजिक रूढ़िवादिता से परे एक रुढ़ीमुक्त मिसाल 

✍️अशोक जोशी

बीते कुछ महीनों से बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र विषय के प्रति मेरी गहरी रूचि बढ़ी है और तब से मैं निरंतर इसके अध्ययन में जुटा हुआ हूं। जिसमें एक ओर पियाजे का संज्ञानात्मक ,वाइगोत्सकी का सामाजिक और कोहलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत को पढ़ रहा हूं तो वहीं दूसरी ओर बाल विकास की अवस्थाएं,सिद्धांत, अनुवांशिकता एवं वातावरण के प्रभाव को भी जान पा रहा हूं। समाज निर्माण में लैंगिक मुद्दे व लैंगिक विभाजन के प्रकरण को भी मैंने इसमें पढ़ा और महसूस किया कि लैंगिकता और इससे जुड़े पहलुओं पर असल में बात होनी चाहिए न केवल किताबी ज्ञान तक बल्कि व्यावहारिकता में भी लैंगिक रूढ़िवादिता , लैंगिक भेदभाव , लैंगिक विभाजन जैसे मसलों से निपटने के लिए सकारात्मक रणनीतिक दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है। क्योंकि लैंगिकता से जुड़े यही पक्ष मुख्य रूप से आगे चलकर देश में लैंगिक असमानता के मुख्य आधार बन रहे है। बहरहाल लैंगिक वर्जनाओं व मिथकों पर एक बड़ा प्रहार इस बीच काशीपुर से देखने को मिल रहा है। जहां जीतेन्द्र भट्ट जी ने अपनी बेटी के पहले पीरियड आने पर बकायदा केक काटकर इसे सेलिब्रेट किया और समाज में एक संदेश दिया कि दुनियां में सबसे पवित्र धर्म है मासिक धर्म।

उनका यह Self-made initiative वास्तव में सराहनीय है, निश्चित ही उनके इस महान विचार का प्रसार होना चाहिए।
देश के कई हिस्सों में मासिक धर्म को एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बीबीसी की एक खबर के मुताबिक असम के बोगांइ गांव जिले के सोलमारी में जब लड़की को पहली बार पीरियड आता है तो उसके माता-पिता उसकी शादी केले के पेड़ से करवा देते हैं। इस अनोखी शादी को तोलिनी ब्‍याह कहा जाता है। यह शादी तब की जाती है जब लड़की अपनी किशोरावस्‍था में कदम रखती है। वहीं कर्नाटक में इस उत्सव को ऋतुशुद्धि या ऋतु कला संस्कार, ओडिशा में राजा प्रभा इत्यादि नामों से ये उत्सव बड़े धूम-धाम से मनाये जाते हैं।

किन्तु आज भी भारत के अधिकांश हिस्सों में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान कई सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और कई प्रकार की यातनाओं को सहना पड़ता है। लेकिन आज के समाज को जरूरत है जितेंद्र भट्ट जी जैसे लोगों की जिन्होंने इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने के लिए मल्टीपल चुप्पी को तोड़ने का प्रयास किया है ।

उत्तराखंड व विशेषकर पहाड़ के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह वास्तव में एक आश्चर्यजनक आयोजन है पर निश्चित रूप से यह एक अच्छा प्रयोग है, जिस पर वार्ता होनी भी चाहिए न केवल Period ब्लकि इस दौरान किस प्रकार से personal health hygiene को भी maintain रखा जाए। किस प्रकार गंदे कपड़ों के इस्तेमाल से बचकर सस्ते सैनिटरी पैड को इस्तेमाल में लाया जाए बात इस पर भी होनी चाहिए। सैनिटरी पैड के इस्तेमाल के साथ ही कैसे स्थानीय स्तर पर महिला स्वयं सहायता समूहों को जागरूक और प्रशिक्षित कर गांव -गांव में सेनेटरी पैड की मशीनें स्थापित कर Rural livelihoods and development को बढ़ावा देकर women Entrepreneurship and empowerment पर जोर दिया जाए। बात इस पर भी की जानी चाहिए पर यह सभी बातें तभी साकार हो पाएगी। जब इनके प्रति सामाजिक रूढ़ियों से इतर एक सकारात्मक रवैया अपनाया जाएगा जैसा कि जितेंद्र भट्ट जी ने किया उनका यह मिशन काबिले तारीफ है, जिसे निश्चित ही साझा किया जाना चाहिए।

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