ऊखीमठ। उरेडा विभाग की लापरवाही से सीमान्त ग्राम पंचायत गौण्डार के ग्रामीण विगत 11 माह से अधेरे में जीवनयापन करने को विवश बने हुए हैं जबकि गौण्डार को रोशन करने के लिए वर्ष 2014 में 2 करोड़ 10 लाख रुपये की लागत से बनी लघु जल विद्युत परियोजना के रख – रखाव पर प्रति वर्ष दैवीय आपदा मद से लाखों रुपये व्यय होने से स्पष्ट हो गया है कि गौण्डार गाँव में बनी लघु जल विद्युत परियोजना विभागीय अधिकारियों के लिए दुधारू गाय साबित होती जा रही है!
बता दें कि मदमहेश्वर घाटी की सीमान्त ग्राम पंचायत गौण्डार सहित विभिन्न तोकों को रोशन करने के लिए वर्ष 2014 में लगभग 2 करोड़ 10 लाख रुपये की लागत से लघु जल विद्युत परियोजना का निर्माण किया गया था। लघु जल विद्युत परियोजना के निर्माण में भारी लापरवाही व गुणवत्ता को दर – किनार किये जाने से लघु जल विद्युत परियोजना पहले से ही विवादों में रही। निर्माण के बाद भी लघु जल विद्युत परियोजना के रख – रखाव पर दैवीय आपदा मद से प्रति वर्ष लाखों रुपये व्यय होने से कार्यदाही संस्था व उरेडा विभाग की कार्य प्रणाली सवालों के घेरे में आने स्वाभाविक ही है! विगत वर्ष 20 जुलाई को मदमहेश्वर घाटी में मूसलाधार बारिश होने तथा मधु गंगा का वेग उफान पर आने से लघु जल विद्युत परियोजना की नहर तथा पावर हाउस के क्षतिग्रस्त होने से विद्युत उत्पादन ठप हो गया था तथा ग्रामीण अन्धेरे में रात्रि गुजारने को विवश हो गये थे।
11 माह का समय गुजर जाने के बाद भी लघु जल विद्युत परियोजना का विद्युत उत्पादन ठप होने से विभाग की कार्य प्रणाली सवालों के घेरे में आ गयी है! पूर्व प्रधान भगत सिंह पंवार ने बताया कि 11 माह से ग्रामीण अन्धेरे में रात्रि गुजारने को विवश है तथा आगामी बरसात में ग्रामीणों की समस्या अधिक बढ़ सकती है। क्षेत्र पंचायत सदस्य बलवीर भटट् ने बताया कि 11 माह बाद भी शासन – प्रशासन द्वारा क्षतिग्रस्त लघु जल विधुत परियोजना की सुध न लेने से साफ जाहिर हो गया है कि शासन प्रशासन की अनदेखी के कारण मदमहेश्वर घाटी उपेक्षित है। ग्रामीण मदन सिंह पंवार का कहना है कि विद्युत उत्पादन ठप होने से नौनिहालों का पठन – पाठन अधिक प्रभावित हो रहा है! वहीं दूसरी ओर उरेडा विभाग से सम्पर्क करना चाहा मगर सम्पर्क नहीं हुआ!