रघुबीर सिंह नेगी
दुःख दरिद्रता दूर करने और खुशहाली के लिए उर्गम घाटी में होती है प्रकृति की पूजा
जोशीमठ विकासखंड के आंचल में बसी उर्गमघाटी में दुःख दरिद्रता को दूर करने और खुशहाली के लिए यहां प्रकृति की भी होती है पूजा। वर्ष भर में दो बार जंगल में जानवरों को रखी जाती है सैकड़ों रोटियां। उर्गम घाटी के 12 गांवों के लोग करते हैं महाकाली एवं कालभैरव की पूजा।
लोकमान्यता है कि ऐसा करने से गांव में दुःख बीमारी नहीं आती है मां दक्षिण काली सब दुःख हर लेती है। भूमि क्षेत्रपाल घंटाकर्ण के सानिध्य में होती है पूजा। जिसे स्थानीय भाषा में सारू कहा जाता है। बदरीनाथ के कपाट खुलने के बाद और बंद होने के बाद होती है यह पूजा।
मेला कमेटी उर्गमघाटी करती है पौराणिक परम्परा का निर्वहन। तय तिथि के अनुसार उर्गमघाटी के प्रत्येक घर से दो- दो कच्ची रोटियां लाकर भूमिक्षेत्र पाल घंटाकर्ण के मंदिर में लायी जाती है।फिर श्री घंटा कर्ण एवं काली का आवाह्न किया जाता है। तब गांव के बारीगण श्री घंटा कर्ण के आदेश पर गांव की सीमा पर जंगल में सभी रोटियां एवं महाकाली की डोली को रखा जाता है।
जिससे जंगल में रहने वाली प्रकृति के रक्षक जीव जन्तु भरपेट भोजन करते हैं। आज भी इस अनोखी परम्परा को हर साल वर्ष में दो बार आयोजन होता है।