चित्रकारी से पहाड़ की संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचा रहे मुकुल बडोनी – पहाड़ रफ्तार

Team PahadRaftar

उत्तराखंड देवभूमि ऋषिमुनियों की तपस्थली होने के साथसाथ मां गंगा यमुना का उद्गम स्थल ही नही बल्कि कुछ ऐसे साधकों की जन्मभूमि और कर्मभूमि भी है जो आज इक्कसवीं सदी में भी अपनी थाती माटी प्रेम से ओतप्रोत होकर सिर्फ यहां को संस्कृति और कला को देश दुनिया में पहचान दिला रहे हैं।

उन साधकों में एक नाम है मुकुल बडोनी जो मूल रूप से कांदला बड़ेथी चिन्यालिसौड़ के एक साधारण परिवार में जन्में हैं, जिनके पिता एक निजी स्कूल में प्रधानाचार्य के पद पर हैं और माता कुशल गृहणी है। विद्यार्थी जीवन में हमेशा अव्वल रहने वाला मुकुल हमेशा अध्यापकों के चहेते विद्यार्थियों में रहा है। स्नातकोत्तर चित्रकला से करने के बाद बीएड किया व तत्पश्चात पिट्स बीएड कॉलेज उत्तरकाशी में चित्रकला प्रशिक्षक के रूप में तैनात है।
मुकुल बताते है अपनी थाती और माटी से जो उन्हे लगाव हुआ उसमें उनके परिवार का विशेष सहयोग रहा। घर में दादी और बड़ी मां (ताई जी) के स्नेह और मार्गदर्शन ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और आज मुकुल पहाड़ की विलुप्त होती हुई चीजों को अपनी पेंटिंग के माध्यम से संजोने का प्रयास कर रहे हैं।
पेटिंग की शुरुआत अपनी दादी के कैनवास से शुरू किया जिसे बहुत लोगों ने पसंद किया और आज भी जबजब किसी की नजर दादी वाली पेंटिंग पर पड़ती है तो उनकी नजरें उस कैनवास पर ही ठहर जाती है। राजधानी देहरादून के बहुत सारे होम स्टे को चार चांद लगानी वाली यही पेंटिंग आज उन जगहों पर सेल्फी प्वाइंट भी बनी हुई हैं।इसके अलावा उत्तरकाशी शहर में जगह – जगह पर बनी पेंटिंग काशी नाम को सुशोभित करती हुई बनाई गई है साथ ही हर्षिल में उत्तराखण्ड संस्कृति पर आधारित चित्रकारी देश विदेश से आए सैलानियों को अपनी और आकर्षित करती हैं और उन पेंटिंग के जरिए वो यहां की संस्कृति को समझते हैं। योग नगरी ऋषिकेश में भगवान शिव और गंगा मां के संरक्षण और संवर्धन पर भी पेंटिंग बनाई है और साहसिक खेलों को बढ़ावा देने पर भी अपनी चित्रकारी के माध्यम से संदेश देने की पुरजोर कोशिश की है। साथ ही हमारे महापुरुषों की याद की भी एक श्रृंखला बनाई जिससे आने वाली पीढ़ी उनके त्याग और बलिदान को समझ सके।भविष्य में मुकुल उत्तराखंड के मंदिरों की एक श्रृंखला बनाने जा रहे हैं। और जनजाति रीति रिवाजों को बढ़ावा देने के का काम कर रहे है। आज मुकुल पहाड़ के युवा वर्ग के लिए आइकॉन बन चुके है कि सिर्फ नौकरी से ही आजीविका नहीं चलती है बल्कि अपने अंदर के हुनर को निखार कर उससे अपने सामाजिक और आर्थिक स्तर को पहचान दिलाई जा सकती है,जिससे रोजगार बढ़ेगा और पलायन पर अंकुश भी लगेगा।

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