ऊखीमठ। प्रदेश सरकार व पर्यटन निर्देशालय की पहल पर यदि मदमहेश्वर – नन्दीकुण्ड – पाण्डवसेरा पैदल ट्रेक को यदि विकसित करने की कवायद की जाती है तो प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण नन्दीकुण्ड, पाण्डवसेरा विश्व विख्यात होने के साथ – साथ मदमहेश्वर घाटी के पर्यटन व्यवसाय में भी इजाफा हो सकता है। इस पैदल ट्रेक के विकास में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग का सेन्चुरी वन अधिनियम बाधक बना हुआ है! बता दें कि द्वापरयुग में जब पांचों पाण्डव केदारनाथ से मदमहेश्वर होते हुए बदरीनाथ गये थे तो उन्होंने कुछ समय पाण्डवसेरा में बिताये थे इसलिए मदमहेश्वर धाम से लगभग 20 किमी दूर यह स्थान पाण्डवसेरा नाम से विख्यात हुआ। पाण्डवसेरा में आज भी पाण्डवों के अस्त्र – शस्त्र पूजे जाते हैं तथा पाण्डवसेरा में आज भी धान की फसल अपनी आप उगती है।
ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर प्रवास के दौरान पाण्डवों ने धान की खेती उगाई थी तथा इस स्थान पर लम्बा प्रवास किया था। मदमहेश्वर – नन्दीकुण्ड – पाण्डवसेरा पैदल ट्रेक पर तीर्थाटन व पर्यटन की अपार सम्भावनाये तो हैं मगर केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग का सेन्चुरी वन अधिनियम इस पैदल ट्रेक के चहुमुखी विकास में बाधक बना हुआ है! आत्म चिन्तन व साधना के लिए पाण्डवसेरा व नन्दीकुण्ड स्थल सर्वोत्तम माने गये हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार पाण्डवसेरा व नन्दीकुण्ड में मानवीय आवागमन न होने पर देव कन्यायें, ऐडी आछरी आज भी इन बुग्यालों में नृत्य करती है तथा पाण्डवों के अस्त्र शस्त्र पूजते हैं। नन्दीकुण्ड को प्रकृति ने नव नवेली दुल्हन की तरह सजाया व संवारा है जबकि प्रातः काल की बेला पर नन्दीकुण्ड में चौखम्बा का प्रतिबिम्ब का दृश्य ऐसा आभास करता है कि मनुष्य स्वयं चौखम्बा के शिखर पर पहुँच गया हो!
पाण्डवसेरा में दूर – दूर तक फैले बुग्याल व धान के खेतों को निहारने से मानव के दिलो दिमाग पर ईश्वरीय शक्ति का आभास होने लगता है। गौण्डार गाँव निवासी अरविन्द पंवार बताते हैं कि मदमहेश्वर – नन्दीकुण्ड – पाण्डवसेरा पैदल ट्रेक बहुत ही कठिन है मगर प्रकृति के अनमोल खजाने को निहारने से मन को अपार शान्ति मिलती है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् बताते है कि नन्दीकुण्ड व पाण्डवसेरा को प्रकृति ने अपने वैभवो का भरपूर दुलार दिया है इसलिए मन में बार – बार इन देव स्थलों को निहारने की लालसा बनी रहती है। मन्दिर समिति के पूर्व सदस्य शिव सिंह रावत बताते है कि बरसात के समय आज भी पाण्डवसेरा में धान की फसल लहराती है तथा यहाँ का भू-भाग बहुत दूर तक फैला हुआ है। जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा , क्षेत्र पंचायत सदस्य लक्ष्मण राणा,सुदीप राणा का कहना है कि यदि प्रदेश सरकार व पर्यटन निर्देशालय मदमहेश्वर – नन्दीकुण्ड – पाण्डवसेरा पैदल ट्रेक को विकसित करने की पहल करता है तो मदमहेश्वर घाटी के पर्यटन व्यवसाय में इजाफा हो सकता है।