अपने ही मुल्क में पराया हो गया हूँ जिस सियासत पर फक्र हुआ करता था उसका नामो-निशाना ना बचा – डॉ0 दीपक सिंह

Team PahadRaftar

खुदा ने चाहा तो सब बेहतर होगा और ज़ुल्म का अंत होगा

मेहनत से बनाया था जो
मेरा ठिकाना ना बचा
सपनों से सजाया था जो
मेरा आशियाना ना बचा!
अपने ही मुल्क में पराया हो गया हूँ
जिस सियासत पर फक्र हुआ करता था
उसका नामो-निशाना ना बचा
सपनों से सजाया मेरा आशियाना ना बचा!
मुझे मेरे अपनों से जुदा कर दिया
जाने कहाँ से आया ये काफिला
कि मेरे खुदा को ही मुझसे खफा कर दिया।
अपने वजूद की खोज कर रहा हूँ
जिसका कोई अफसाना ना बचा
सपनों से सजाया मेरा आशियाना ना बचा!
वक़्त की ये कैसी साजिश है
जिंदगी ख़त्म सी हो गई है
कैसे जीऊँ? कैसे फिर एक नई शुरुआत करूँ?
बीच में ही कहीं खो गया हूँ
जैसे जिंदगी और मौत का बहाना ना रहा
सपनों से सजाया मेरा आशियाना ना रहा!
कहाँ से चलू और कहाँ थम जाऊं
किससे पूछू इस दर्द की दवा कहाँ से लाऊं
ना गोला ना बारुद ना बंदूक है जनाब
महज़ आम आदमी हूँ
एक ही सवाल पूछता हूँ
कोई है जो मदद करेगा?
कोई है जो मेरी गुहार सुनेगा?
कोई है????


परमाणु बम गिरने से राष्ट्र नहीं मिटते
उदाहरण जापान
राष्ट्र का पतन होता है संस्कृति, शिक्षा और धर्म पर आघात करने से
उदाहरणअफगानिस्तान
जिसकी संस्कृति जीवित है वो काँटो के बीच भी मुस्कराता रहता है

उदाहरण इजरायल

यही हालत होते हैं उस देश के जिस देश के लोग स्वार्थ भरी ज़िन्दगी जीते हैं। अगर ये लोग अपने राष्ट्र और राष्ट्र के लोगों के लिए लड़े होते तो शायद आज ये हालत न होते, खैर अफगान देश की नियति में सम्भवतः यही लिखा था। सिर्फ अपने और अपने परिवार के लिए जीना ही ज़िन्दगी नहीं है अपने देश, धर्म और राष्ट्र के लोगों के लिए भी जीना सीखें वरना यही हालात कभी हमारे भी हो सकते हैं। शायद आज उन लोगों के मुँह पर एक तमाचा है, जो यह बोलते हैं कि उन्हें भारत में डर लगता है। तालिबान से बचने के लिए बेताब लोगों की भीड़ के बीच काबुल में हवाई अड्डे पर दहशत और अराजकता के दृश्य । तालिबान से बचने के प्रयास में कुछ लोग विमानों के किनारों से चिपक गए, यहां तक कि एक रनवे से नीचे उतर गया।

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